मौसम और केमिकल लोचा बढ़ा रहे सुसाइड टेंडेंसी

सात दिन में पांच लोगों ने चुन लिया ली मौत

केस-1

10 मई की रात फतेहपुर के असोथर थाना क्षेत्र के सूबेदार का पुरवा गांव निवासी 22 वर्षीय हेमंत कैथलिक ने अल्लापुर में एक किराए के मकान में फांसी लगा कर जान दे दी। प्रतियोगी छात्र हेमंत तैयारी में असफलता के चलते कई दिनों से परेशान थे।

केस- 2.

11 मई की रात करछना विधायक दीपक पटेल की चचेरी बहन डा। दिव्या सिंह ने फांसी के फंदे से लटक कर दारागंज स्थित अपने घर में जान दे दी। डा। दिव्या ने जिंदगी के बजाय मौत को इसलिए चुना क्योंकि उनके पति डा। संजय सिंह का आईएएस में सलेक्शन नहीं हो सका था।

केस-3.

6 मई को शांतिपुरम फाफामऊ स्थित रैपिड एक्शन फोर्स के 101 बटालियन में तैनात जवान मनोज यादव ने गारद में तैनात जवान की इंसास राइफल छीन कर खुद को गोली मार ली थी। बड़े भाई से चल रहे जमीनी विवाद को लेकर परेशान जवान ने तनाव में आकर आत्मघाती कदम उठाया।

केस-4.

6 मई को ही पुराने शहर के अतरसुईया इलाके की रहने वाली 13 वर्षीय बालिका अर्पिता गरीबी के साथ ही मां व परिवार की समस्याओं को नहीं झेल सकी। उसने फांसी के फंदे पर लटक कर अपनी जान दे दी।

केस-5.

6 मई को ही सराय ममरेज की रहने वाली मीना प्यार में मिले धोखे को बर्दास्त नहीं कर सकी। जिसे वह चाहती थी, उसकी शादी किसी और से होने पर वह टूट गई और फिर उसने अपनी जान दे दी।

जिंदगी में तनाव तो लोग हमेशा से झेलते चले आ रहे हैं। बगैर तनाव और समस्याओं के तो जिंदगी चल ही नहीं सकती है। लेकिन भीषण गर्मी के साथ ही केमिकल लोचा की वजह से लोगों में सुसाइड टेंडेसी बढ़ रही है। जिसका जीता जागता उदाहरण पिछले एक सप्ताह से शहर में दिखाई दे रहा है। जिंदगी की कठिनाईयों से हार मार कर हर दिन कोई न कोई मौत को गले लगा रहा है। ऐसे में डॉक्टर्स के साथ ही मनोवैज्ञानिकों की यही सलाह है कि चिंता नहीं बल्कि चिंतन करें और जरूरत महसूस हो तो डॉक्टर्स की सलाह लें। वहीं अगर आपको अपना कोई करीबी तनाव में दिखता है, चिंता में डूबा हुआ नजर आता है तो ऐसे सिचुएशन में उसके हमराज बनें और तनाव को दूर करें। नहीं तो आपके अपने को टूटने में देर नहीं लगेगा।

टेंशन को करें बाय-बाय

एक्सप‌र्ट्स का कहना है कि ब्रेन में मौजूद सेरोटोनिन, डोपामीन और नारएपिनेफरिन जैसे केमिकल मिलकर मोनो अपाइन न्यूरो ट्रांसमीटर बनाते हैं। अगर किसी कारणवश इनकी मात्रा कम हुई तो ब्रेन में केमिकल लोचा होना शुरू हो जाता है और यही से डिप्रेशन बढ़ने लगता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को कुछ नहीं सूझता और वह समस्या से छुटकारा पाने के लिए खुद को खत्म करने का निर्णय ले लेता है। इस हालात से बचना है तो टेंशन को बाय-बाय करना जरूरी है।

सुसाइडल एक्ट के कई कारण

- एडस्टमेंट डिसार्डर- इसमें व्यक्ति अपने आसपास के माहौल के हिसाब से खुद को एडजस्ट नहीं कर पाता।

- इम्पल्सिव कंट्रोल डिसार्डर- मन में तुरंत विचार आता है और व्यक्ति बिना सोचे समझे गलत कदम उठा लेता है।

- सिचुएशन रिएक्टिव- इसमें खुद के साथ घटित घटना के जवाब में व्यक्ति के मन में गंदे विचार आते हैं और वह सिचुएशन से निकलने के फेर दुनिया से निकल लेता है।

डिप्रेशन में जाने के तीन कारण

बायोलाजिकल- यह शरीर की बनावट पर निर्भर करता है।

सायकोलाजिकल- इस मॉडल में मन की बनावट यानी व्यक्ति के सोचने का ढंग उसे अच्छे-बुरे में फर्क नहीं करने देता।

सोशल- इसमें अगर कोई व्यक्ति सोशल नहीं है और अकेलेपन का शिकार है तो डिप्रेशन में जाने के अधिक चांसेज होते हैं।

अधिक गर्मी से बढ़ जाती है चिंता

मौसम अनुकूल हो तो कई बार व्यक्ति की सोच भी बदल जाती है। यही कारण है कि गर्मी की छुट्टियों में लोग हिल स्टेशन जाने की प्लानिंग करते हैं। गर्मी अधिक पड़ने, लाइट और पानी की समस्या, शरीर मे पानी की कमी आदि ऐसे कारण है जो स्ट्रेस और डिप्रेशन को बढ़ाते हैं। हालांकि, यह कारण साइंटिफिक कम और व्यवहारिक अधिक माना जाता है।

इन बातों का रखें ध्यान

- जाइए अपनों के पास- अगर डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं तो सबसे करीबी के साथ अपनी सोच को जरूर शेयर करिए।

- घर में कुत्ता पालिए- डॉग्स को एंटी डिप्रेशेंट माना जाता है। कई बार लोग परेशान होने पर अपने पालतू के साथ अधिक समय बिताते हैं। माना जाता है कि कुत्ते अपने मालिक को टेंशन में पाकर खुद उसके पास जाने की कोशिश करते हैं।

- मजाक में मत लीजिए ऐसी बातें- अगर आपका कोई करीबी सुसाइडल टेंडेंसी जाहिर करता है तो इसे मजाक में कतई न लें। क्योंकि, यह डिप्रेशन मे जाने का मुख्य लक्षण माना जाता है। उसकी सहायता करें।

वर्जन

लाइफ में स्ट्रेस बढ़ता जा रहा है। लोग जरा-जरा सी बातों को लेकर डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। अधिकतर लोग अपनी दिल की बातें सामने वाले से शेयर नहीं करते, इससे सुसाइड टेंडेंसी कहीं न कहीं जन्म लेने लगती है। लोग समस्याओं से जूझने के बजाय खुद को खत्म करने का निर्णय ले रहे हैं। यह पूरी तरह अव्यवहारिक है और ऐसे लोगों को तत्काल सोशल और मेडिकल सपोर्ट की जरूरत होती है।

डॉ। अभिनव टंडन, मानसिक रोग विशेषज्ञ

Posted By: Inextlive