कुछ ऐसे थे बचपन के वो दिन जब आप सब कुछ छोड़कर टीवी में 'मोगली' 'छोटा चेतन' 'टॉम एंड जैरी' जैसे कार्टून्‍स को देखने में घंटों के लिए मशगूल हो जाते थे. उसी समय कमरे में एंट्री होती है मां की और फ‍िर शुरू हो जाती है मां की फटकार. मसलन 'कितना समय हो गया है अब तक टीवी देख रहे हो पढ़ाई कब करोगे...' वगैरह-वगैरह. उसपर आपका चिड़चिड़ा जाना और दोनों की ऐसी ही प्‍यारी सी बहस के बीच में कुछ ऐसा रास्‍ता निकल आना कि मां के ऑर्डर का भी मान रह जाए और आपकी भी इच्‍छा पूरी हो जाए. कुछ इस तरह से बचपन में कार्टून्‍स व टीवी से मोह और मां के प्‍यार व उनकी फटकार से भरे वो दिन तो आप सबको ही याद होंगे. मां-बच्‍चे के बीच रिश्‍ते के ये पल उम्र के किसी पड़ाव पर भी भुलाए नहीं जा सकते लेकिन मां-बच्‍चे के बीच इस बातचीत के दौरान आखिर क्‍या ऐसी बात होती थी कि अचानक बीच का सुलझा हुआ रास्‍ता बेहद आसानी के साथ निकल आता था. याद है आपको? क्‍या वही रास्‍ता मां-बच्‍चे के बीच का असली प्‍यार है दोनों के बीच का अटूट बंधन है. आइए जानते हैं इस रास्‍ते के बारे में आपके ही बचपन सरीखी मां-बेटे के बीच बातचीत के जरिए. कहीं ये बातचीत आपके बचपन से तो जुड़ी नहीं..

कुछ ऐसे शुरू हो जाती थीं मां, हमारी हरकतों पर
मां - हर समय तुम सिर्फ टीवी देखते रहते हो. क्या तुम नहीं जानते कि अगले हफ्ते से तुम्हारे एग्जाम्स शुरू होने वाले हैं.
बेटा - (कुछ चिढ़ते हुए लहेजे में) हां, मैं जानता हूं, लेकिन हर वक्त मैं पढ़ नहीं सकता.  
मां - कौन तुमको हर वक्त पढ़ाई करने को कहता है, लेकिन अपनी पढ़ाई को सफीशियंट टाइम तो दो.  
बेटा - मैं 2 बजे स्कूल से घर आऊं. उसके बाद 4 बजे ट्यूशन जाऊं और फिर उसके बाद आप चाहती हो कि मैं फिर से पढ़ाई करने बैठ जाऊं.  
मां - (डांटते हुए) क्या समय हुआ है अब.
बेटा - 9 बज रहा है.
मां - तो तुम तीन घंटे से क्या कर रहे हो?
बेटा - क्या मेरी अपनी कोई जिंदगी नहीं है?
मां - जब अपनी जिंदगी में तुम सैटेल हो जाना तो उस समय तुम फ्री होगे, उस तरह से जीने के लिए जैसा कि तुम चाहते हो. उस समय हम तुम्हारी जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन तब तक तुम्हे उस तरह से काम करना होगा, जैसा कि हम तुम्हे कहेंगे.  
बेटा - लेकिन क्यों? मुझे मेरे हिसाब से जीने का हक है.
मां - हां, तुम्हे अपने हिसाब से जीने का हक है. तुम वही पहनते हो, जो तुम चाहते हो. हम हर वो चीजें खरीद कर तुम्हें देते हैं, जो भी कुछ तुम्हे चाहिए होता है. तुमने वही सब्जेक्ट्स लिए, जो तुम्हे चाहिए थे. हमने तुम्हें वो सबकुछ दिया जो भी तुम्हें चाहिए था, तो इस तरह से तो तुम अपने हिसाब से ही जी रहे हो, लेकिन जब बात तुम्हारे भविष्य की आती है, तो तुम्हें हमारे हिसाब से ही काम करना होगा.  
बेटा - ऐसा नहीं होता. क्योंकि ये मेरी जिंदगी है, तो मैं इसे अपने हिसाब से ही जियूंगा.
मां - ओके बेटा, सही है, ये तुम्हारी ही तो जिंदगी है. तुम अपने हिसाब से जियो, लेकिन हमें अपनी जिंदगी से निकाल दो.
बेटा - (चौंकते हुए) क्यों?
मां - क्योंकि तुम अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहते हो.
बेटा - मेरे कहने का ये मतलब नहीं था. मैं आपको भी अपनी जिंदगी में हमेशा चाहता हूं. आपके बिना तो मैं कुछ भी नहीं हूं.
मां - लेकिन हम तो तुम्हारी जिंदगी में इंटरफेयर करते हैं, तो... हम तो बुरे हैं न. आखिरकार हम तुम्हे खुश जो देखना नहीं चाहते.
बेटा - (धीरे से सांस को खींचते हुए) ओके, मैंने मान लिया. जो भी कुछ आप मुझसे कह रही हो, वो मेरे भले के लिए ही है. मैं 10 बजे से पढ़ाई करने बैठ जाऊंगा, लेकिन तब तक के लिए मुझे टीवी देख लेने दीजिए.   
मां - ओके... ठीक है, अब अपना वादा याद रखना.

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Posted By: Ruchi D Sharma