विक्रम भट्ट ने पूर्व में दर्शकों को कई बेहतरीन हॉरर व थ्रिलर फिल्में दी हैं। 'राज' 'कसूर' उनमें से एक हैं। दोनों में की गई किस्सागोई तत्कालीन दौर के हिसाब से आगे की थी। अब उन्होंने 'भाग जॉनी' लिखी है। जो थोड़ी इंट्रेस्‍टिंग लगती है। तो आइए पढ़ें क्‍या कहता है भाग जॉनी का रिव्‍यू....

चूहे-बिल्‍ली को खेल
विक्रम ने निर्देशक शिवम नायर के संग मिलकर इनोवेटिव किस्सागोई की है। उससे वैम्प व नायक-नायिका के दरम्यान चूहे-बिल्ली का खेल रोचक व रोमांचक बना है। सीधे-सरल शब्दों में कहें तो नायक एक साथ डबल रोल और स्पिल्ट पर्सनैलिटी यानी खंडित व्यक्तित्व जीता है। विक्रम भट्ट ने फिल्म में जिन्न की भूमिका भी निभाई है। किरदारों के जरिए प्यार, पैसा, पॉवर, वासना, धोखा व बदला के कार्य-कारण व परिणामों की पड़ताल है। फैसलों के दूरगामी प्रभावों का विश्लेषण है। वह जाहिर करती है कि भविष्य का सारा दारोमदार वर्तमान में लिए गए सही-गलत, अच्छे-बुरे फैसलों पर पूरी तरह निर्भर करते हैं। सही वक्त पर लिए गए सही निर्णय ही मुश्किलों व चुनौतियों से उबारने में काम आते हैं।
निर्माता : विक्रम भट्ट, भूषण कुमार
निर्देशक : शिवम नायर
संगीत : मिथुन, यो यो हनी सिंह, देवी श्री प्रसाद, आर्को, साजिद-वाजिद
कलाकार : कुणाल खेमू, ज़ोया मोरानी, मंदाना करीमी, उर्वशी रौतेला



और मिलती है दो जिंदगियां

जर्नादन अरोड़ा ऊर्फ जॉनी बैंकॉक में रहता है। वह दिल का बुरा नहीं है, पर दिलफेंक व खुदगर्ज है। वह अस्पष्ट है। कमाई के शॉर्टकट तरीकों में यकीन रखता है। उसकी जिंदगी मजे में कट रही है। उसकी बॉस रमोना बख्शी उसे वह इनसाइडर ट्रेडिंग करते हुए रंगे हाथों पकड़ लेती है। वह बदले में जॉनी को तान्या को कत्ल करने को कहती है। मजबूर जॉनी को उसकी बात माननी पड़ती है। परेशान जॉनी की मदद को जिन्न आता है। वह उसे अगले ७२ घंटे दो जिंदगियां जीने को कहता है। एक में नेकदिल, मददगार इंसान तो दूजे में खुदगर्ज और बेचैन शख्स बनकर। उन दोनों को जीते हुए जॉनी को जिंदगी का सार पता चलता है।
फिल्‍म लगती है विश्‍वसनीय
जॉनी की भूमिका के साथ कुणाल क्येमू ने न्याय किया है। उन्होंने जॉनी की खूबी-खामियों व असुरक्षाओं को पर्दे पर बखूबी पेश किया है। एक्शन व स्टंट के दृश्यों में वे विश्वसनीय लगे हैं। फिल्म में वे खूब भागे हैं, पर कहीं भी फिल्म को एकरस नहीं होने दिया है। तान्या को जोया मोरानी ने प्ले किया है। भाग जॉनी उनकी दूसरी फिल्म है। तान्या के ग्रेस को उन्होंने मेंटेन किया है। रमोना बख्शी की भूमिका में मंदाना करीम फिल्म की खोज हैं। इस फिल्म से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को टिपिकल वैम्प मिली है। फिल्म का संगीत युवाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसलिए यह काफी अच्‍छा लगता है। बैंकॉक की खूबसूरती उभरकर सामने आई है। कुल मिलाकर शिवम नायर ने एक अच्‍छी थ्रिलर दी है।
Review by: Amit Karn

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari