Perhaps a tad longer and slower than it should ideally have been but Paan Singh Tomar is unmissable. In this cricket-obsessed country many talented men who excelled in other forms of sports have died lonely and penniless.

बायोपिक्स एक ट्रिकी फील्ड है. हालांकि फिल्ममेकर के पास एक खूबसूरत कहानी कहने का एडवॉन्टेज होता है, मगर इसे बीयर करना भी एक बर्डन है. सोल्जर और मास्टर एथलीट-टन्र्ड-डकैत पान सिंह तोमर की कहानी काफी इंट्रेस्टिंग है और शुक्र है ये तिग्मांशु धूलिया के सही हाथों में थी. पान सिंह तोमर एक आर्मी मैन थे जिन्होंने 1958 में इंडिया को रिप्रेजेंट किया और स्टीपल्चेस में सात बार नेशनल विनर रहे.


तोमर एक आम इंसान है जो आर्मी में गया अपनी मातृभूमि के लिए और स्पोट्र्स में फूड के लिए अपने प्यार के चलते. जब उसके कजन उसकी जमीन हड़पने के लिए एक साथ हो जाते हैं और लोकल पुलिस उसकी मदद करने से इन्कार कर देती है, तो पान सिंह डकैत बनने पर मजबूर हो जाते हैं.


तिग्मांशु धूलिया, जो शेखर कपूर के साथ बैंडिट क्वीन में बतौर असिस्टेंट चम्बल से अच्छी तरह वाकिफ हो चुके हैं, उन्होंने ये फिल्म बनाते वक्त पान सिंह पर काफी रिसर्च की. शायद यही वजह है कि वह उनकी लाइफ इतनी कॉन्फिडेंट राय सबके सामने रख सके. फिल्म ज्यादातर चम्बल की लोकेशन में शूट हुई है. और रुडक़ी में दिखाई गई एक्चुअल आर्मी बैरेक्स भी बेहतरीन है. यहां तक कि फिल्म में ह्यïूमर भी जमीन से जुड़ा हुआ और रीयल है. लोकल भाषा फिल्म को और ऑथेंटिक बनाती है क्योंकि इसे समझना जरा मुश्किल है, इसलिए इसे कुछेक जगहों पर फिल्म की स्पीड थोड़ी कम होनी चाहिए थी.


क्र इरफान खान ने जबरदस्त एक्टिंग की है. एक सिम्पल, प्यारे मगर कहीं-कहीं जिद्दी बंदे से एक कॉन्फिडेंट एथलीट और एक एग्रेसिव डकैत तक, इरफान ने कैरेक्टर को ऐसे प्ले किया जैसे सब उन्हीं पर बीत रहा हो. उन्होंने एक जोशीले सोल्जर से एक काबिल स्पोट्र्समैन फिर एक मजबूर किसान से फाइनली डकैत तक, अपने कैरेक्टर को बहुत ही स्मूदनेस और कॉन्फिडेंस से प्ले किया. माही गिल बतौर तोमर की वाइफ और बाकी कैरेक्टर्स के लिए कुछ ज्यादा करने को नहीं था, मगर इससे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि इरफान के बेहतरीन परफॉर्मेंस ने उनसे आंखें हटाने का मौका ही नहीं दिया.


फिल्म शायद थोड़ी लम्बी है मगर पान सिंह तोमर एक मिस ना की जाने वाली फिल्म है. इस क्रिकेट-ऑब्सेस्ड कंट्री में कई टैलेंटेड बंदे जो कई दूसरे स्पोट्र्स में बेहतरीन हैं, अकेले और गरीबी में मर जाते हैं. धूलिया की तरफ से ये उनके लिए परफेक्ट ट्रिब्यूट है और शायद हम सब के लिए एक वेकअप कॉल भी.

Posted By: Garima Shukla