भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी गुरुवार को लोकसभा चुनाव के लिए वाराणसी से अपना नामांकन परचा भरेंगे.


बनारस में इस वक़्त कई जगह भाजपा की टोपी और झंडे ही दिखाई दे रहे हैं. शहर में रैली के मद्देनज़र बंद जैसा माहौल है. ज्यादातर दुकानें बंद रखी गई है.ऑटो भी कम चल रहे हैं. रैली से होने वाली परेशानियों की वज़ह से कई निजी शिक्षण संस्थान भी हैं.उधर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल जो पहले से ही वाराणसी में हैं, वो शहर के अस्सी घाट पर 'प्रार्थना और साधना' कर रहे हैं.क़रीब 40-50 समर्थकों के साथ अरविंद केजरीवाल घाट पर सोमनाथ भारती के साथ हुई मार-पीट के प्रतीकात्मक विरोध के तौर पर ध्यान-साधना कर रहे हैं.यहाँ तीन पार्टियाँ मुकाबले में हैं, भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी. लेकिन तीनों पार्टियों का प्रचार का तरीक़ा बिल्कुल अलग है.


आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल दिल्ली में आजमाए हुए तरीक़े से गली-गली घूम कर, घर-घर जाकर, स्थानीय स्तर पर मोहल्ला चौपाल लगाकर कर प्रचार कर रह रहे हैं.प्रचारभाजपा के नेताओं का प्रचार का तरीक़ा थोड़ा अलग है. स्थानीय पत्रकार नीलांबुज तिवारी के अनुसार भाजपा के कार्यकर्ता और स्थानीय नेता छोटी-छोटी टोलियाँ बनाकर लोगों से मिल रहे हैं.

नीलांबुज कहते हैं, "भाजपा का प्रचार अभी चाय-पान की दुकानों तक ही सीमित है. अभी उसके बड़े नेता घर-घर जाकर वोट नहीं मांग रहे हैं."

केजरीवाल की रैलियों में स्थानीय मुस्लिमों की उपस्थिति को भी रमेश कुमार सिंह स्वीकार करते हैं. लेकिन वो इस बात से इनकार करते हैं कि कुछ लोगों के झुकाव से सभी मुस्लिमों के बारे में अभी कोई राय बनाई जा सकती है.वामपंथी पार्टी सीपीआई-एमएल ने अरविंद केजरीवाल को समर्थन दिया है. पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य और उत्तर प्रदेश के प्रभारी रामजी राय भी मानते हैं कि अभी अल्पसंख्यकों के वोट के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन उनका आंशिक झुकाव केजरीवाल की तरफ दिख रहा है.रामजी राय मानते हैं कि मोदी का जनाधार तथाकथित उच्च जातियों तक ही है. वो कहते हैं, “मोदी जितना भी विकास की बात कर रहे हैं, सतह के नीचे उनका प्रचार सांप्रदायिक है. उच्च वर्ग और कथित अगड़ी जातियों में उनका समर्थन है लेकिन पिछड़ी मानी जानी वाली जातियों में उनकी कोई लहर नहीं दिख रही है.”ग्रामीण वोटों की चुनौती
भाजपा के लिए दूसरी बड़ी चुनौती ग़ैर शहरी वोटों का हैं. रमेश कुमार सिंह कहते हैं, “शहरी क्षेत्र में भाजपा हमेशा से अच्छा करती रही है लेकिन गांव के इलाक़ों में मोदी का प्रभाव अभी उस तरह नहीं दिख रहा है.”मोदी के लिए एक चुनौती मतदान का प्रतिशत भी हो सकता है. कम मतदान होने पर मोदी के लिए जीत की राह कठिन हो सकती है. रमेश कुमार कहते हैं, “अगर 45 प्रतिशत तक मतदान होता है तो मोदी के लिए मुश्किल बढ़ सकती है. लेकिन यदि मतदान 50-55 प्रतिशत हुआ तो मोदी की संभावना बहुत बढ़ जाएगी.”चूंकि अभी तक जितने चरणों के चुनाव हुए हैं उनमें मतदान का प्रतिशत 2009 की तुलना में आमतौर पर ज़्यादा रहा है. इसलिए वाराणसी में संभावना है कि वोट प्रतिशत बढ़े और ऐसा हुआ तो इसका फ़ायदा सीधे नरेंद्र मोदी को मिलने की उम्मीद जताई जा रही है.बनारस में चुनाव आख़िरी चरण में 12 मई को है. माना जा रहा है कि आख़िरी चरण में चुनाव होने के कारण सभी पार्टियाँ अपनी पूरी ताकत झोंक देंगी. तो क्या अभी बनारस में चुनाव के समीकरण बदलने की काफ़ी संभावनाएं हैंयहाँ चुनाव होने में तक़रीबन 18 दिन अभी बाकी हैं, 18 दिन की महाभारत हुई थी तो लगता है अभी बनारस में चुनावी महाभारत होनी बाक़ी है.

Posted By: Subhesh Sharma