नवरात्र शब्‍द पर गौर करें तो इसका मतलब दो शब्‍दों में समझ में आता है। पहला 'नव' और दूसरा 'रात्रि'। इसका मतलब है नौ रातें। हर साल अक्‍टूबर-नवंबर के महीने में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाने वाला ये सबसे बड़ा त्‍योहार है। वहीं हिंदू कैलेंडर पर गौर करें तो हर अश्‍विन शुक्‍ल पक्ष की नवीं तारीख से मां दुर्गा की पूजा शुरू कर दी जाती है। पूरे देशभर में इन नवरात्रों में मां के इन्‍हीं नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है लेकिन अलग-अलग रिवाजों से। आइए देखें कैसे भिन्‍न है उत्‍तर भारत पूर्वी भारत से इन नौ दिनों के रिवाजों में...।

पूर्वी भारत में है ढाक के साथ करते हैं शुरुआत
पूर्व भारत में बंगालियों के बीच नवरात्रों का अपना एक अलग महत्व है। ऐसा नहीं है कि इन नौ दिन यहां किसी और की पूजा होती है। पूजा यहां भी मां दुर्गा के नौ रूपों की होती है, लेकिन जरा अलग ढंग से। जगह-जगह यहां कमेटी बनाकर खास दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है। भव्य पंडालों में ये दुर्गा पूजा नौ दिन तक चलती है। खास बंगाली इन नौ दिनों को जरा अलग ढंग से मनाते हैं। इनके नौ दिनों में हर दिन की शुरुआत ढाक बजाकर होती है। ऐसा करके व मुंह से अलग आवाज निकालकर वे मां को जगाते हैं। दुर्गा पूजा को बंगाली में दुर्गोत्सव भी कहा जाता है। ये खास पांचवे दिन से शुरू होती है। हर दिन का अपना एक अलग नाम होता है। पांचवे दिन को महालया, छठे को षष्ठी, सातवें को महा सप्तमी, आठवें को महा अष्टमी और नवें दिना को महानवमी व दसवें दिन को विजयादशमी कहते हैं।

उत्तर में नौ दिनों का रंग है ऐसा
यहां नवरात्रों के शुरू होते ही कलाकारों, गायकों और खास पूजा कराने वालों की बुकिंग शुरू हो जाती है। लगभग हर घर में माता की चौकी और जागरण जैसे कार्यक्रमों का आयोजन कराया जाता है। हालांकि ऐसे कार्यक्रमों को नवरात्र के बाद भी कराया जा सकता है, लेकिन मां के इन नौ दिनों में इन आयोजनों की अपनी अलग महत्ता होती है। अब अगर बात करें इन दोनों आयोजनों के बीच अंतर की, तो पूरी रात चलने वाले मां के भजनों के कार्यक्रम को जागरण कहते हैं। वहीं 'माता की चौकी' का कार्यक्रम सिर्फ तीन घंटों का होता है। इन तीन घंटों में मां की कीर्तन-भजन करने के बाद सभी भक्तों को मां का प्रसाद देकर विदा किया जाता है।

गुजरात के खास डांडिया रास से मचती है धूम
गुजरात की खासियत, यहां का डांडिया रास नवरात्री के दिनों में अपने पूरे जोश पर होता है। इन दिनों जगह-जगह पर डांडिया जैसे उत्सवों का आयोजन किया जाता है। हर उम्र के पुरुष, महिलाएं, बच्चे व बड़े इस आयोजन में हिस्सा लेते हैं। इस मौके पर युवक और युवतियां खास परिधान में नजर आते हैं। युवक राजस्थानी लिबास कफनी-पाजामा पहनते हैं और युवतियां घाघरा-चोली। इस दौरान मां की प्रतिमा की पूजा करने के बाद सभी प्रतिभागी उनके सामने डांडिया के साथ अपने उत्साह का प्रदर्शन करते हैं। इस मौके पर गरबा और डांडिया दो तरह के नृत्यों को लेकर आयोजन कराया जाता है। डांडिया करने के लिए दो लकड़ी के डंडों का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं गरबा के लिए हाथों से तालियों का इस्तेमाल किया जाता है। आयोजन के दौरान रोशनी और फूलों से बेहतरीन सजावट की जाती है।

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Posted By: Ruchi D Sharma