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-अभिभावकों की फटकार से नाराज होकर घर तक छोड़ दे रहे हैं नाबालिग

-दर्ज गुमशुदगी केस की जांच में बरामद बच्चों ने पुलिस को बताई ऐसी वजह

72 बच्चों के गायब होने की गुमशुदगी

18 साल से कम है इनकी आयु

08 महीने का है आंकड़ा

28 बालक हुए हैं गुम

44 बालिकाएं हुई गायब

31 बच्चों को किया गया बरामद

mukesh.chaturvedi@inext.co.in

PRAYAGRAJ: पैरेंट्स की फटकार लाडले बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। हाल ही में बरामद हुए गुमशुदा बच्चों ने यह दर्द बयां किया है। बच्चों ने ऐसा कदम क्यों उठाया, इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं। मनोचिकित्सकों का कहना है कि मोबाइल और टीवी एक अहम वजह है। इस सिचुएशन में पैरेंट्स को अलर्ट रहने की जरूरत है। जरूरी है कि बच्चों का डांटे-फटकारें तो उन्हें प्यार और दुलार भी भरपूर दें। ताकि मासूम मन गुस्से में कोई गलत कदम न उठा बैठे।

नाबालिग ले रहे खतरनाक डिसीजन

जिले के विभिन्न थानों में अभिभावकों द्वारा 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के गुम होने के केस दर्ज कराए गए हैं। कुल 72 बच्चों के गायब होने की गुमशुदगी दर्ज हुई है। बरामद किए गए 31 बालक एवं बालिकाओं से पुलिस ने प्यार से पूछताछ की। पुलिस के मुताबिक ज्यादातर केस में बच्चों ने डांट की वजह से घर छोड़ने की बात बताई। यह तथ्य सामने आने के बाद पुलिस के कान खड़े हो गए। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पुलिस अभिभावकों को अलर्ट करने में जुटी है।

बढ़ती समस्या के ये हैं कारण

-मोबाइल व टीवी से नाबालिगों में चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है।

-अब डांट-फटकार के बाद गलत कदम उठाने से नहीं हिचकिचा रहे।

-मनोचिकित्सकों के मुताबिक दूसरी बड़ी वजह सिंगल फैमिलीज की बढ़ती संख्या है।

-ज्वॉइंट फेमिली में बच्चे डांट के बाद अपनी बात किसी न किसी से कह लेते थे

-उनकी शिकायत पर बड़े बुजुर्ग पिता या मां को उनके सामने डांट दिया करते थे

-इससे बच्चों के मन में पल रहे गुस्से का प्रभाव समाप्त हो जाया करता था

-एकल परिवार में डांट के बाद बच्चे अंदर ही अंदर कुढ़ते रहते हैं

-क्योंकि डांट के बाद वह अपनी बात किसी से शेयर नहीं कर पा रहे

वर्जन

आज अभिभावक बच्चों को समय नहीं दे पा रहे। ऊपर से एकल परिवार का दायरा बढ़ता जा रहा है। ऐसे में बच्चे खुद को तन्हा महसूस करने लगते हैं। अपने काम के तनाव से थके-हारे पैरेंट्स उनकी बात को तवज्जो नहीं देते, ऊपर से डांट देते हैं। ऐसे हालात में बच्चे घर से जाने का निश्चय कर लेते हैं।

-डॉ। राकेश पासवान, मनोचिकित्सक

तहरीर में कोई डांट-फटकार की बात तो थाने में लिख कर देता नहीं। पकड़े जाने के बाद ही सही स्थिति का पता चलता है। वह भी थाना पुलिस जब बच्चों से खुद प्यार से पूछती है। बरामद बच्चों में कई ऐसे हैं जिन्होंने डांट की वजह से घर छोड़ने की बात कुबूल की है।

-संतोष कुमार सिंह, प्रभारी गुमशुदा प्रकोष्ठ

Posted By: Inextlive