पाकिस्तान में मौत की सज़ा पर बहस छिड़ी है


पाकिस्तान में फांसी देने पर लगी रोक को हटाने का फैसला टाल दिया गया है. निवर्तमान राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने इस बारे में अपनी आपत्ति दर्ज कराई है.एक अधिकारी का कहना है कि विदेश दौरे से राष्ट्रपति ज़रदारी की वापसी पर प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ इस बारे में उनसे चर्चा करेंगे.ज़रदारी मंगलवार को स्वदेश लौटेंगे.नवाज़ शरीफ़ की नई सरकार ने  मौत की सज़ा पर पांच साल से लगी रोक को ख़त्म करने का फैसला किया है. इस रोक की अवधि जून में ख़त्म हो चुकी है.ज़रदारी के प्रवक्ता फ़रतुल्लाह बाबर ने बीबीसी को बताया कि ज़रदारी को मौत की सज़ा पा चुके दो मुजरिमों की दया याचिकाएं मिली हैं, लेकिन राष्ट्रपति संविधान के मुताबिक़ इनकी सज़ाओं को ख़ुद नहीं टाल सकते हैं.


इसलिए उन्होंने इन अपीलों को सरकार के पास भिजवाया है और प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ से इस मामले पर बातचीत को कहा है, जिसके बाद सरकार ने राष्ट्रपति की वतन वापसी तक सज़ाओं पर अमल न करने का फैसला किया है.बाबर ने बताया कि इससे पहले भी राष्ट्रपति इस बारे में दो बार मुलाकात के लिए प्रधानमंत्री से कह चुके हैं, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय से आए पत्रों में इस बारे में कोई जवाब नहीं दिया गया.

"पीपीपी की पिछली सरकार का प्रयास था कि अगर देश में मौत की सज़ा को खत्म नहीं किया जा सकता है तो ऐसे अपराधों की संख्या में कमी की जाए जिनमें के लिए कानून में मौत की सज़ा का प्रावधान है."-फरतुल्लाह बाबर, ज़रदारी के प्रवक्तासात हजार को फांसी की सज़ामानवाधिकार समूहों का कहना है कि पाकिस्तान में ऐसे सात हजार कैदी हैं जिन्हें अलग अलग मामलों में फांसी की सज़ा सुनाई जा चुकी है.प्रतिबंधित चरमपंथी संगठन लश्कर-ए-झांगवी के दो सदस्यों समेत कई लोगों को आने वाले कुछ दिनों में फांसी दी जानी है.पाकिस्तान सरकार का कहना है कि मौत की सजा से कराची जैसे शहरों में और अफगानिस्तान से लगने वाले इलाकों में लोग अपराध करने से डरेंगे जहां चरमपंथी लगभग रोजाना हमले करते हैं.राष्ट्रपति जरदारी का पांच साल का कार्यकाल आठ सितंबर को खत्म हो रहा है. नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल (एन) के ममनून हुसैन पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं, जो जरदारी का स्थान लेंगे.

राष्ट्रपति के प्रवक्ता ने कहा कि पीपीपी की पिछली सरकार का प्रयास था कि अगर देश में मौत की सज़ा को खत्म नहीं किया जा सकता है तो ऐसे अपराधों की संख्या में कमी की जाए जिनमें के लिए कानून में मौत की सज़ा का प्रावधान है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh