धर्मेंद्र के पोते और सनी देओल के बेटे अगर फिल्म जगत में कदम रख रहे हैं तो लोग बड़ी आशा लगा कर फिल्म देखने जाएंगे और अगर फिल्म रद्दी निकले तो निश्चित ढाई किलो गालियां देकर ही निकलेंगे। इसी बात पर आइये आपको बताते हैं कि कैसी है ये फिल्म ।

रेटिंग : 1.5 स्टार

कहानी
हीरो को हीरोइन मिली, तकरार हुई प्यार हुआ, हीरोइन ने अपने लवर को हीरो के लिए छोड़ दिया। एक्स लवर विलेन है और आगे भगवान ही मालिक है।

कभी जब नदियां पहाड़ों पर जम जाती हैं तो उसके ऊपर बर्फ की एक परत जम जाती है, उसपर हल्के से चल के नदी पार तो की जा सकती है पर जब उस पर किसी चंद्रयान टाइप रॉकेट के लांच का भारी भरकम प्रेशर दिया जाता है तो ऊपर की बर्फ टूटने के बाद चंद्रयान नीचे नदी में बह जाता है और ढूंढने पर भी नहीं मिलता। ऐसा ही कुछ इस फिल्म के बारे में कह सकते हैं। वही लीचड़ सी कहानी और घिसे पिटे तरीके जिनसे इस घिसी पीटी कहानी को महान बताने की कोशिश की जाती है।

हीरो आपको पहले ही भा जाए इसलिए जिस चीज से उसके लिए सिम्पथी बटोरी जा सकती है, हर वो ट्रिक इन द बुक इस्तेमाल कर ली जाती है फिर भी किरदार इतना रूटीन और बौड़म है हीरो का कि पूछिये मत। ऊपर से बेकार सी कहानी और उससे भी बोरिंग डाइलॉग जो ना ही लवस्टोरी को कोई फायदा पहुंचाते हैं और न ही फिल्म को। बगल के लोग थोड़ी ही देर में या तो खर्राटे भरने लगते हैं या फर्राटे से भागने लगते हैं। ऐसे में अंत तक फिल्म में बैठना एक टास्क हो जाता है ऊपर से फ़िल्म के गाने...तौबा।

क्या है अच्छा
सिनेमेटोग्राफी और बस वही

 

अदाकारी
करण अभी तैयार नहीं है उनको एक्टिंग सीखने की और भाव भंगिमा पर काम करने की सख्त जरूरत है। इस फिल्म के बाद उनको ब्रेक लेना चाहिए और सब सीख के फिर से एक लांच लेना चाहिए। सहर बाम्बा के पास करने के लिए कुछ खास था नहीं फिर भी वो करण से बेहतर हैं। आकाश आहूजा का काम ठीक ठाक है। कुल मिलाकर बहुत ही बोर फिल्म है। पल पल भारी हो जाता है। लगता है कि कब खत्म होगी। फिर भी आपके घर का एसी न काम कर रहा हो तो जाकर देख सकते हैं पल पल दिल के पास।

बॉक्स ऑफिस प्रेडिक्शन : अगर लागत ही निकाल ले तो बहुत है।

Review by: Yohaann Bhaargava

Posted By: Chandramohan Mishra