- हॉस्पिटल्स में कम पहुंचे केसेज

- लोग रहे अवेयर, नहीं किया रंगों का इस्तेमाल

- स्किन प्रॉब्लम्स और आंखों में दिक्कत हुई रंगों से

AGRA। इस होली हुड़दंग भी रहा, मस्ती भी रही, उत्साह भी रहा और रंग भी उड़े। लेकिन इन रंगों के कई लोगों के उत्साह को बेरंग करने की कोशिश भी की। रंगों से लोगों की स्किन पर प्रॉब्लम्स भी हुई और आंखों में भी दिक्कत हुई। लेकिन इस होली लोगों की अवेयरनेस ने हॉस्पिटल्स में कम केसेज पहुंचे।

रंगों से स्किन पर हुए रैशेज

हर साल की तरह इस साल भी होली पर कई लोगों को रंगों की वजह से स्किन प्रॉब्लम्स हुई। रंगों में मिले हुए केमिकल्स की वजह से लोगों को रैशेज हुए, स्किन छिल भी गई। जलन भी हुई। कई लोगों को स्किन में काफी रूखापन भी आ गया। यह सब रंगों में मौजूद केमिकल्स की वजह से होता है। हॉस्पिटल्स में और प्राइवेट डॉक्टर्स के पास पहुंचे लोगों को स्किन में रूखेपन की दिक्कत सबसे ज्यादा सामने आ रही है। इसके अलावा रंगों के कारण लोगों को बाल ज्यादा टूटने की समस्या भी सामने आई।

आंखों में फूटा गुब्बारा

होली के दौरान आई एलर्जी, अस्थायी या स्थायी अंधापन, दृष्टि दोष, आंखों की रोशनी कम होना, कंजक्टिवाइटिस, कॉर्निया में जामुनी रंग और आंख में सूजन वगैरह हो सकती है। चूंकि आंखें बेहद ही नाजुक होती हैं, इसलिए होली पर इन पर चोट लगने की ज्यादा संभावना होती है। बाजार में मिलने वाले सस्ते गुलाल में कांच का चूरा होता है, जो आंख में जाने से कॉर्निया और रेटिना के कई हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकता है। बच्चों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बैलून भी आंखों में लगने के कुछ केसेज सामने आए।

लोग हो गए हैं अवेयर

हर साल जितने केस सामने आते थे। उनके मुकाबले इस साल कम केस आए हैं। डॉक्टर्स का मानना है कि लोग अब अवेयर हो गए हैं। वे सस्ते रंगों की बजाय हर्बल और अच्छी क्वालिटी के रंग इस्तेमाल करते हैं। इसलिए इस बार डॉक्टर्स के पास कम केसेज पहुंचे।

गुलाल का किया ज्यादा इस्तेमाल

इस बार लोगों ने होली खेलने के लिए गुलाल का ज्यादा इस्तेमाल किया। जिस वजह से उन्हें रंगों से होने वाले नुकसान नहीं उठाने पड़े। डिब्बा बंद और ब्रांडेड गुलाल की बिक्री ज्यादा हुई।

'हर साल मेरे पास स्किन प्रॉब्लम्स की शिकायत के साथ कई लोग आते थे। इस बार उनकी संख्या काफी कम रही। इस बारे मेरे पास ख्0 से ज्यादा पेशेंट नहीं आए हैं। लोग अवेयर हो गए हैं।

- डॉ। पीके सिंह, प्रोफेसर स्किन डिपार्टमेंट, एसएन मेडिकल कालेज

'लोग इस साल काफी कम आए हैं। मेरे पास तो इक्का-दुक्का ही लोग आए। कुछेक लोगों ने फोन पर ही बात कर ली। रंगों के इस्तेमाल को लेकर लोगों में इस साल काफी अवेयरनेस दिखी है.'

- डॉ। शैलेंद्र जैन, स्किन स्पेशलिस्ट

'हर साल होली पर हमारे हॉस्पिटल में आंखों में रंगों के कारण हुए नुकसान के पेशेंट्स काफी संख्या में पहुंचते थे। लेकिन इस साल हम भी हैरान थे। मरीजों की संख्या काफी कम रही। लोग समझदार हो गए हैं.'

- डॉ। गुंजन प्रकाश, प्रोफेसर, आई डिपार्टमेंट, एसएन मेडिकल कालेज

Posted By: Inextlive