ब्रिटेन के इतिहास में शायद ही कभी हुआ हो कि एक विदेशी प्रधानमंत्री को सुनने-देखने 50000 से ज़्यादा लोगों के आने की उम्मीद हो।


लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश में होने वाले ऐसे जलसे बड़े होते जा रहे हैं।हालाँकि खुद मोदी भी ब्रिटेन आने की अपनी टाइमिंग पर अफ़सोस कर रहे होंगे क्योंकि हाल ही उन्हें बिहार चुनाव में पटखनी मिली है।उनके मन में इस बात का मलाल ज़रूर होगा कि बिहार जीतकर ब्रिटेन जाते तो बात कुछ और होती।तो शुक्रवार यानी 13 नवंबर को जब नरेंद्र मोदी लंदन के वेम्ब्ली स्टेडियम में पचास हज़ार से ज़्यादा समर्थकों को संबोधित कर रहे होंगे तो उनके ज़ेहन में बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे भी दौड़ रहे होंगे।भाजपा में विदेश और ओवरसीज़ फ्रेंड्स नामक यूनिट के प्रमुख विजय चौथाईवाले खुद वेम्ब्ली पहुंचकर इंतज़ामों को देख रहे है।
वैसे बिहार चुनावों में भाजपा को मिली शिकस्त पर उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री जब बाहर जाते हैं तो वे देश का प्रतिनिधित्व करते है और वे कोई बिहार के मुख्यमंत्री नहीं होते इसलिए बिहार के चुनावों के नतीजों का इस यात्रा पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वैसे भी चुनावों में उतार-चढ़ाव आता रहता है।"


बहरहाल, ख़ुद नरेंद्र मोदी ने बिहार चुनावों में नीतीश कुमार और लालू यादव के ख़िलाफ़ पूरा दम लगा दिया और शायद इसीलिए नतीजों के बाद उनके लिए गए फैसलों पर सवाल भी उठ रहे हैं।ज़ाहिर है ऐसे में लंदन के अख़बार भी चूकने से रहे। प्रतिष्ठित अख़बारों में से एक 'गार्डियन' ने तो यहाँ तक लिख डाला कि "पार्टी की हार से ज़्यादा बिहार का नतीजा मोदी की निजी हार है।"इसी तरह 'द इंडिपेंडेंट' अख़बार ने कहा, "स्थानीय नेताओं पर भरोसा करने से ज़्यादा नरेंद्र मोदी ने अपनी ज़बरदस्त लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश की।"अब सवाल ये उठता है कि जब मोदी अपनी ब्रिटेन यात्रा पर उतरेंगे तो बिहार में हुए चुनाव और उसके नतीजों पर जवाब देने से कब तक कतरा सकेंगे।भारत में ज़्यादातर लोगों ने पिछले दो महीनों में पढ़ा-देखा या सुना है कि "आरक्षण पर भाजपा की नीति क्या है, गोमांस खाने या कथित तौर पर रखने वाले को 'अपराधी' कैसे मान लिया गया और 'बिहार और बाहरी' के संवाद में बिहारी ही जीता।'

Posted By: Satyendra Kumar Singh