Socially sensitive! The tag may go well with Prakash Jha’s name. While the man is busy working on another sensitive topic an open forum held in Delhi recently saw him at his wittiest best. Excerpts...

प्रकाश झा की मूवी दामुल को देखने के बाद उनकी वाइफ का रिएक्शन कुछ अलग ही था. वह उन्हें डॉक्यूमेंट्री फिल्म ज्यादा लगी. हमने प्रकाश से इस मूवी और फिल्मों से जुड़े दूसरे एक्सपीरियंस पर उनसे कुछ बातें की...
आपने शुरुआत डॉक्यूमेंट्री फिल्मों से की थी. अब माना जाता है कि उनके व्यूअर्स बहुत ज्यादा नहीं रह गए...
हां, मैंने शुरुआत ही डॉक्यूमेंट्री फिल्मों से की है. 27 डॉक्यूमेंट्री. एक इंट्रेस्टिंग बात ये है कि मुझे मेरे पैरेंट्स से फिर से मिलाने में डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का ही हाथ था.
कैसे?
मैं चंपारण से हूं. घर में उम्मीद की जा रही थी कि आईएएस बनूं और मुझे फिल्ममेकर बनना था. मेरे पिता से मेरे ख्याल अलग ही रहे और फिल्मों के चक्कर में मैंने घर छोड़ दिया. मैं मुंबई आ गया. स्ट्रगल जारी रहा. इस दौरान मैं डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाता रहा. पांच साल हो गए. उस दौरान सिंगल स्क्रीन थिएटर होते थे और फिल्म के शुरू होने के पहले एक फिल्म डिवीजन डॉक्यूमेंट्री दिखानी जरूरी होती थी. एक बार मेरे पिता, मां के साथ पिक्चर देखने गए. ये थोड़ा पहले पहुंच गए. उस वक्त मेरी डॉक्यूमेंट्री चल रही थी. उसमें नाम आया प्रकाश झा. वह हैरान हो गए. दोनों बिना फिल्म देखे ही वापस आ गए. पता लगाने के लिए दोनों मुंबई जा पहुंचे कि ये उनका ही प्रकाश झा है या कोई और इस तरह पांच साल बाद हम मिले.
मेनस्ट्रीम की शुरुआत कैसी रही?
मेरी पहली फिल्म थी दामुल जिसमें मैंने माधुरी को कास्ट किया. दामुल कभी रिलीज ही नहीं हुई क्योंकि कोई भी ऐसे सब्जेक्ट की फिल्म के कैसेट्स बनाकर रिलीज करने या उसे सिनेमा हॉल तक पहुंचाने का खर्चा उठाने को तैयार नहीं था. शुक्र है दूरदर्शन का, जो मेरी फिल्म टीवी पर आई और वह सबकी नजर में आ गई. और आखिरकार मैं अपने लोन चुकाने की हालत में आ गया.
बड़े स्टार्स फिल्म चला सकते हैं. आप इस थॉट को काफी फॉलो करते हैं?
किसी से पिक्चर की बात करो तो पहला सवाल क्या होता हैï? फिल्म में है कौन, फिर स्टारकास्ट तो मैटर करती ही है. डायरेक्टर कौन है, ये दूसरा सवाल है. अधिकतर ऑडियंस स्टार के नाम से खिंचती है.
अब तो कई ट्रेंड बदल गए हैं. किसी एक रेसिपी को ही बढिय़ा नहीं कहा जा सकता...
ऑडियंस के लिए सिर्फ एक चीज काम करती है, ‘कनेक्ट’. वो कनेक्ट कई लोग स्टार्स में ढूंढ़ते हैं. कोलावेरी डी क्या है? कनेक्ट मिल गया ऑडियंस को बस. डर्टी पिक्चर ने कितना कमाया जबकि ना उसमें हीरो है, ना कोई ऐसा एंगल जो कई और फिल्मों में ना हो. मगर
फिल्म ने रिलीज होते ही कमाल कर दिया.
फिल्म में कोई बहुत बड़ा हीरो हो या नहीं, आपको नहीं लगता कि फिल्म की लीड स्टार इंडस्ट्री के कई मेल स्टार्स से बेहतर एक्टर है?
पॉसिबल है. वही कहा ना मैंने, कनेक्ट काम करता है. हो सकता है ऑडियंस फीमेल लीड को हीरो की तरह ले ले. हो सकता है स्टोरी हीरो बन जाए. कोई स्क्रिप्ट फाइनल करने से पहले मैं कुछ बच्चों को इक_ïा कर लेता हूं और उन्हें कहानी सुनाता हूं. बच्चों का अटेंशन स्पैन
कम होता है. अगर मेरा कनेक्ट फैक्टर उनके लिए काम कर गया तो मैं मानता हूं कि ये ऑडियंस के लिए भी काम कर जाएगा.
आपके मुताबिक आपके फेवर में किन चीजों ने काम किया है...
इंडस्ट्री के बड़े स्टार्स भी मुझ पर यकीन करते हैं. ये उनका मेरी फिल्मों पर यकीन है जो वे मेरी तरह काम कर पाते हैं. राजनीति में 8000 लोगों की जो भीड़ दिखी है उसे भी एक साल पहले से ट्रेन किया जाना शुरू कर दिया था जिससे उन्हें पता हो कि जब राजनेता की जीप निकले तो उन्हें कैसे रिएक्ट करना है. राजनीति में मैंने एक्टर्स से कहा 100 सवाल लेकर आओ. मैं कहता हूं अगर आपको पता ही नहीं है कि हम कर क्या रहे हैं तो आप उसे कर कैसे पाएंगे. उन्हें काम का ये तरीका पसंद आता है. कई स्टार्स को पता नहीं होता कि मैं क्या बताने की कोशिश कर रहा हूं. ये भी कभी-कभी मेरे फेवर में काम करता है.

इतने साल में काफी पीआर एक्सरसाइज फिल्म में इंवॉल्व हो गई है.

तेरे बिन लादेन फिल्म का बजट पीआरए के लिए 9 करोड़ था. मेरी फिल्म राजनीति का पीआरए बजट 18 करोड़ था. अगर कोई चीज चलन में आ गई है तो उसके होने से आप इंकार नहीं कर सकते.

Posted By: Garima Shukla