- मरीजों और रेजीडेंट डॉक्टर्स की समस्याएं न सुधरी तो होगा आदांलन

- प्रदेश भर के रेजीडेंट डॉक्टर अपनी एसोसिएशन बनाने की तैयारी में

LUCKNOW: मरीजों की सुविधाओं और रेजीडेंट डॉक्टर्स के काम के घंटों को लेकर अब रेजीडेंट डॉक्टर आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। केजीएमयू में प्रशासन द्वारा एसोसिएशन बनाने से मना करने पर अब रेजीडेंट डॉक्टर यूपी लेवल की एसोसिएशन बनाकर अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगे। अभी कई कॉलेजों में जूनियर रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन नही है।

एसोसिएशन न बनाने का दबाव

केजीएमयू के रेजीडेंट डॉक्टर्स ने बताया कि लगभग दो हफ्ते पहले उन्होंने वाइस चांसलर से मिलकर मरीजों को सुविधाएं देने और जेडीए बनाने की अनुमति मांगी थी। इस पर वीसी ने मरीजों की सुविधाओं पर विचार करने का आश्वासन दिया था, लेकिन जेडीए बनाने की मांग को ठुकरा दिया था। जबकि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की गाइडलाइंस के तहत हर सरकारी कॉलेज में जेडीए होनी चाहिए। ताकि वह अपनी और मरीजों की मांगों को प्रमुखता से प्रशासन के सामने रख सकें, लेकिन केजीएमयू में इसके लिए मना कर दिया गया।

संपर्क में अन्य शहरों के रेजीडेंट डॉक्टर्स

जिसके बाद रेजीडेंट डॉक्टर्स ने इसको सिर्फ केजीएमयू ही नहीं, बल्कि यूपी लेवल पर जेडीए बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। केजीएमयू में तो अपनी जेडीए होगी ही, साथ में प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेजों के रेजीडेंट डॉक्टर्स की एसोसिएशन होगी। ताकि दिल्ली के डॉक्टर्स की तरह प्रदेश भर में अपनी मांगों के लिए मजबूती से बात रख सकें। मेरठ, झांसी, गोरखपुर, इलाहाबाद और कानपुर के रेजीडेंट डॉक्टर केजीएमयू के डॉक्टर्स के सम्पर्क में हैं। जल्द वे इस पर निर्णय ले सकते हैं। रेजीडेंट्स का दावा है कि दिल्ली जैसी ही समस्याओं का सामना केजीएमयू व अन्य मेडिकल कॉलेजों के मरीजों और रेजीडेंट डॉक्टर्स को करना पड़ रहा है। इमरजेंसी दवाओं के लिए भी मरीजों को समस्याएं हो रही हैं।

अन्य कॉलेजों में और भी बुरे हालात

रेजीडेंट डॉक्टर्स का कहना है कि केजीएमयू में तो हालात फिर भी बेहतर हैं, लेकिन कुछ मेडिकल कॉलेजों में इससे भी खराब स्थिति है। मरीजों को हर चीज बाहर से लानी पड़ती है। इमरजेंसी दवाओं से लेकर एक्विपमेंट्स तक की किल्लत रहती है। मरीजों के लिए पीने का साफ पानी नहीं है। ग्लव्स जैसी जरूरी सुविधाएं भी नहीं हैं। मरीज पहुंचने पर जरूरी दवाओं से लेकर ग्लव्स तक मरीजों के परिजनों से मंगाया जाता है। दवाएं और एक्विपमेंट आने के बाद ही इलाज शुरू होता है। रेजीडेंट्स का कहना है कि इमरजेंसी में मरीजों के लिए यह दवाएं नि:शुल्क उपलब्ध होनी चाहिए। यह दवाएं ओर उपकरण ही अक्सर परिजनों और रेजीडेंट डॉक्टर्स के बीच के झगड़े का कारण बनते हैं।

40 घंटे लगातार काम

रेजीडेंट डॉक्टर्स की दूसरी सबसे बड़ी शिकायत उनके काम के घंटे न तय होने की है। जबकि वीसी प्रो। रविकांत ने कुछ माह पहले सभी विभागाध्यक्षों को रेजीडेंट डॉक्टर्स से एक बार में 12 घंटे से अधिक काम न कराए जाने को कहा था। लेकिन पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट के अलावा किसी विभाग में हालात नहीं बदले। जिसके कारण रेजीडेंट डॉक्टर नाराज हैं। कई ऐसे विभाग हैं जहां एक बार में 48 से 72 घंटे तक लगातार रेजीडेंट डॉक्टर्स को काम करना पड़ता है।

Posted By: Inextlive