शर्ट तो हम सभी पहनते हैं क्या पुरुष या महिला और आजकल तो ज्यादातर वर्किंग वुमन पुरुषों जैसे कपड़े ही पहनती हैं। पर क्या आपने यह बात नोटिस की महिलाएं भले ही पुरुषों जैसी शर्ट पहनें लेकिन उनकी शर्ट पर बटन हमेशा बाईं ओर लगी होती हैं जबकि पुरुषों के कपड़ों जैसे शर्ट में बटन हमेशा दाईं ओर होती हैं। यह बात सालों से हम देखते आ रहे हैं लेकिन बहुत कम लोगों ने इस पर ध्यान दिया होगा कि आखिर इसके पीछे क्या वजह है। वैसे भी दुनिया में लेफ्ट हैंडेड लोगों की तुलना में राइट हैंडेड लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है ऐसे में सिर्फ महिलाओं के कपडों में बाईं ओर बटन लगा कर क्‍या उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है या फिर ये सब उनकी सहूलियत के लिए किया गया है? चलिए जानते हैं बाईं ओर बटन लगाने के पीछे आखिर कौन सा लॉजिक काम कर रहा है।

सच तो यह है कि ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं है जो बताता हो कि महिलाओं की शर्ट पर या उनके कपड़ों में बटन बाईं ओर क्यों लगाए जाते हैं, लेकिन फिर भी तमाम ऐसे लॉजिक मौजूद हैं जिन्हें जानकर आप कहेंगे कि वाकई बाईं ओर बटन लगा कर महिलाओं का खास ख्याल रखा गया है।


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दूसरा लॉजिक - बच्चों को दूध पिलाने में आसानी

पिछले कुछ सालों में विकसित हुई यह नई सोच बताती है कि महिलाओं के कपड़ों में बाईं ओर बटन लगाने से उन्हें अपने बच्चों को स्तनपान कराने में ज्यादा आसानी होती है। ज्यादातर महिलाएं राइट हैंडेड होती हैं ऐसे में अपने बच्चों को दूध पिलाने या उन्हें संभालने के लिए वो बच्चे को बाएं हाथ में पकड़तीं और अपने दाहिने हाथ खाली रखती हैं। ऐसे में कपड़ो में लगे बाईं ओर के बटन एक हाथ से खोलना उनके लिए आसान रहता है। बच्चों को दूध पिलाने के लिए शर्ट में बाईं ओर बटन लगाने का यह लॉजिक भी काफी पॉपुलर है और कुछ लोग इसे ही सच मानते हैं।

 

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तीसरा लॉजिक - पुराने दौर के सोशल कल्चर का परिणाम

महिलाओं के कपड़ों में बाईं ओर लगाए जाने वाले बटन को लेकर एक और हाइपोथिसिस मानी जाती है, जिसके हिसाब से विक्टोरिया कॉल में बाएं हाथ को दाहिने हाथ की अपेक्षा निचले स्तर का माना जाता था। ऐसे में महिलाओं के कपड़े डिजाइन करने वाले लोगों ने जानबूझकर उनके कपड़ों में बाईं ओर बटन लगाए, ताकि महिलाओं को एहसास रहे कि वह समाज में दूसरे दर्जे की हैं। यह सोच काफी दकियानुसी लगती है और इसकी सच्चाई को परखना लगभग नामुमकिन है।

 

 

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महिलाओं के कपड़ों में बाईं ओर बटन को लेकर ऐसे ही कई और भी लॉजिक बताए जाते हैं, हालांकि इनमें से शुरुआती एक या दो लॉजिक ही ज्यादा प्रैक्टिकल सही नजर आते हैं, लेकिन फिर भी ऐसी परंपरा कैसे और कब शुरू हुई इसे पक्के तौर पर बता पाना बहुत मुश्किल है।

Posted By: Chandramohan Mishra