भगत सिंह, उनकी मां व सुखदेव की बहन यहां आती रही हैं..
- बिहार में भगत सिंह की पहली प्रतिमा मुंगेर में बनी, जहां पहुंची थी उनकी मां विद्यावती
- कई साल तक दानापुर में अपने बेटे के साथ थीं सुखदेव की छोटी बहनPATNA : आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले भगत सिंह के बारे में जब बात होती है, तो इनसे जुड़ी कई कहानियां जेहन में यूं ही आने लगती है। शहर की सड़कों पर बने भगत सिंह के स्मारकों पर जब नजर टिकती है, तो कई सवाल भी सामने आते हैं। भगत सिंह के बारे में पटनाइट्स ने जितना पढ़ा होगा वह उतना ही कम है, क्योंकि लोग पढ़ने के बाद अक्सर भूल भी जाते हैं। पटनाइट्स को शायद इस बात की भी जानकारी होगी की भगत सिंह और उनके फैमिली मेंबर की रूह आज भी यहां के आबोहवा में मौजूद है। शहादत दिवस के मौके पर जब बात भगत सिंह के बारे में हो रही हो तो राजगुरु और सुखदेव की तस्वीरें और उनसे जुड़ी कई कहानियां सामने आ जाती हैं। भगत सिंह की मां विद्यावती, भगत सिंह के शहीद होने के बाद बटुकेश्वर दत्त की मां बन गई थी। सुखदेव की छोटी बहन शकुंतला रानी सहगल ने दानापुर में अपने भाई की याद और उनकी कहानी काफी समय तक पटनाइट्स को सुनाई है। इतना ही नहीं जब भगत सिंह की जन्म शताब्दी मनाई जा रही थी तो उस समय भी उन्होंने मंच पर आकर भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और बटुकेश्वर दत्त की कई कहानी सुनाया करती थी।
भगत सिंह की मां ने किया था अनावरण जानकारी हो कि भगत सिंह की शहादत के 20 साल बाद उनकी पहली प्रतिमा का अनावरण भगत सिंह की मां ने मुंगेर में आकर किया था। जब बटुकेश्वर दत्त की हालत काफी खराब हो गई थी, तो भगत सिंह की मां ने ही दिल्ली में उसकी सेवा की थी, और आखिरी सांस तक बटुकेश्वर दत्त के साथ ही थी। रंगकर्मी अनीस अंकुर ने बताया कि ऐसा कहा जा रहा है कि कदमकुआं से हथुआ मार्केट के बीच किसी बिल्डिंग में रह रहे थे। हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है। आज भी भगत सिंह के शहादत दिवस के मौके पर बिहार सरकार के पास सिर्फ चार ही प्रतिमा है। इसमें से एक कारगिल चौक, दूसरा पटना सिटी चौक, तीसरा फुलवारी चौराहा और चौथा बिहटा मोड़ के पास। इसमें से सिर्फ कारगिल चौक और पटना सिटी चौक पर ही भगत सिंह की प्रतिमा लगी हुई है। The other sideपटनाइट्स के खून में बसे हैं भगत सिंह
भगत सिंह को लेकर यहां के युवा काफी ऊर्जावान है। इन पर लिखी गई कम से कम एक किताब गीता रामायण की तरह हर स्टूडेंट के स्टडी रूम में जरूर रहता है। यही नहीं, यहां के कलाकारों ने भी अपनी एक्टिंग में भगत सिंह को जिया है। पीयूष मिश्रा लिखित नाटक 'गगन दमामा वाज्यौ' का मंचन सबसे अधिक बिहार में ही किया गया। इसके बाद इसी नाटक के आधार पर राजकुमार संतोषी ने भगत सिंह पर आधारित फिल्म बनाई थी।