कुंभ को भारतीय संस्‍कृति में बहुत ही पवित्र पर्व माना गया है। कुंभ 12 साल में एक बार ही आता है। देश में कुंभ चार स्‍थानों पर पड़ता है जिसमें से एक स्‍थान है उज्‍जैन की शिप्रा नदी का तट। यहां भगवान शिव के 12 स्‍वरूपों में से एक महाकालेश्‍वर ज्‍योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है। सूर्य के सिंह राशि में होने के कारण इसे सिंहस्‍थ कहा जाता है। सभी अखड़े अपने प्रमुखों के साथ पेशवाई निकालते हैं। इसके उपरांत शुरु होता है शाही स्‍नान जिसमें अखाड़ों के प्रमुख और नागा साधू सर्वप्रथम स्‍नान करते हैं।


संत-मानव मिलन का माध्यमभूखे को भोजन और श्रोताओं को ज्ञान यही तो अमृत है। आपसी कटुता को भुलाकर लोग मोक्षदायिनी मां शिप्रा की गोद में अठखेलियां करते दिखाई देते हैं। मेरी नजर में सिंहस्थ संत और मानव मिलन का माध्यम है।-स्वामी अवधेशानंद गिरिजी, आचार्य महामंडलेश्वर, जूना अखाड़ासिंहस्थ का विशेष महत्वभिन्न-भिन्न जाति एवं समुदाय के मानव का एकत्र होना ही एकता का प्रतीक है। कुंभ में सिंहस्थ और द्वादश ज्योतिर्लिग में महाकाल का विशेष महत्व है।-देव प्रभाकर दद्दाजीजाति-धर्म से परे है कुंभसिंहस्थ जाति-धर्म से परे हैं। देश-दुनिया और भाषाई ज्ञान न होने के बाद भी सभी लोग परस्पर मिलते हैं। ज्ञान रूपी अमृत की वर्षा संतों के शिविरों में होती है, भक्त उसे ग्रहण करते हैं।-महंत परमानंद पुरी महाराज, गादीपति, दत्त अखाड़ा जूनाहरि और हर का मिलन कुंभ


हरि और हर के मिलन से मानव हरिहरात्मक हो जाता है। सिंहस्थ में हरि और हर का मिलन होता है। कालगणना की शुरुआत इसी नगरी से हुई। यहां आने वाला प्रत्येक मानव सौभाग्यशाली है।-स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, शंकराचार्य, द्वारिका पीठकुंभ में खुलते है मुक्ति के द्वारमहाकाल की नगरी के सिंहस्थ का अलग महत्व है। महाकाल के सानिध्य में जप-तप करने वाले के लिए मुक्ति के द्वार खुल जाते हैं।

-स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती, शंकराचार्य. काशी सुमेरूपीठदेश का नाभि स्थल उज्जैनसिंहस्थ का पौराणिक व खगोलीय महत्व है। उज्जैन से कर्क रेखा गुजरती है। जिस तरह मनुष्य के शरीर का मध्य भाग नाभि होता है, ठीक उसी तरह देश का मध्य भाग उज्जैन है। यह स्नान, ध्यान और दान के लिए सिद्ध स्थान है। विक्रमादित्य और कालिदास की आराध्य देवी गढ़कालिका, जागृत श्मशान चक्रतीर्थ इसकी शोभा बढ़ा रहे हैं।-महंत नरेंद्र गिरी महाराज, अध्यक्ष, अभा अखाड़ा परिषदकुंभ में होती है मोक्ष की प्राप्ति अमृत योग में लगने वाले सिंहस्थ में मोक्षदायिनी शिप्रा में स्नान करने वाला मानव मोक्ष को प्राप्त करता है। भगवान योगेश्वर (श्री कृष्ण) ने सबसे पहले योग की शिक्षा दी। इसलिए उज्जैन का महत्व ज्यादा है।-आनंद शंकर व्यास ज्योर्तिविद

Posted By: Prabha Punj Mishra