सिंगल चाइल्ड

-अपनी बेटी में ही ये मां-बाप देख रहे हैं पूरा संसार, बेटा-बेटी में नहीं समझते हैं फर्क

-सिंगल गर्ल चाइल्ड के सहारे पूरा जीवन जीने की है अभिलाषा

VARANASI

'खालों बूंद चाहिए एक सरोवर बनाने के लिए लेकिन एक ही बेटी काफी है घर संवारने के लिए'ये लाइनें मेडिकल सेक्टर से जुडे़ एक दंपति पर फीट बैठ रही हैं। इन्होंने एक ही बेटी पाने का सपना देखा और आज उसी बेटी में अपना पूरा संसार देख रहे हैं। बीएचयू के एआरटी सेंटर में लैब टेक्निशियन ममता चक्रवर्ती और सिटी के एक नामी प्राइवेट हॉस्पिटल में लैब टेक्निशियन वीके चक्रवर्ती ने शादी के बाद सिंगल चाइल्ड की चाहत लिए बेटा-बेटी में फर्क न समझते हुए यह डिसीजन लिया था कि बेटी हुई तो सोने पे सुहागा होगा। उसकी ऐसी परवरिश करेंगे कि बेटी ही बेटा बनकर हमारा नाम रोशन करेगी।

बेटियां लहरा रही हैं परचम

बृजइंक्लेव कॉलोनी सुंदरपुर निवासी वीके चक्रवर्ती ने बताया कि पता नहीं लोग क्यों बेटा-बेटी में भेद करते हैं, आज बेटियां कहां नहीं अपनी सफलता का परचम लहरा रही हैं। हाल ही में हुए रियो ओलंपिक में बेटियां यदि पार्टिसिपेट नहीं करतीं तो इंडिया के लिए सबसे बड़ी लज्जा साबित होती। बेटियों ने अपनी मेधा से इंडिया को सिल्वर व ब्रांज मेडल दिलाया। कहने का मतलब सिर्फ यही है कि बेटों से बढ़कर बेटियां अपनी मंजिल को अचीव कर रही हैं। मेरी बेटी श्रुति चक्रवर्ती बीएचयू के केंद्रीय विद्यालय में दसवीं की छात्रा है। हमने उसे बिल्कुल टेंशन फ्री छोड़ रखा है। जिस फील्ड में उसे कॅरियर बनाने की चाहत होगी हम उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलेंगे, उसका हौसला बढ़ाएंगे।

अपनी बेटी में ही बेटा देखती हूं

श्रुति की मम्मी ममता चक्रवर्ती उन दिनों को याद कर बेहद फूले नहीं समाती हैं जब आठ सितंबर ख्000 को श्रुति ने जन्म लिया था। म्यूजिक व क्विज कॉम्पटीशन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाली अपनी बेटी श्रुति को वह हमेशा आगे बढ़कर मुसीबतों का सामना करने की प्रेरणा देती हैं। कहती हैं कि बेटी ही ऐसी होती है जो अपने पेरेंट्स की हमेशा फिक्र करती है। मैं भी एक बेटी थी मुझे अपने पेरेंट्स से कितना लगाव है इसे मैं शायद शब्दों में बयां नहीं कर सकती। इस नाते मुझे हमेशा से बेटी की ही चाहत थी। मैं अपनी बेटी में ही बेटा देखती हूं।

Posted By: Inextlive