- शहर में स्वाइन फ्लू के कई मामलों को रिपोर्ट ही नहीं कर रहा स्वास्थ्य विभाग

- स्वास्थ्य विभाग ने डीएम को सौंपी फर्जी रिपोर्ट, डीएम व्यवस्थाओं को बताया दुरुस्त

- आई नेक्स्ट ने हर दावे का किया पोस्टमॉर्टम, डीएम ने बिना रियलिटी चेक किए रिपोर्ट पर कर लिया विश्वास

KANPUR: एक ओर स्वाइन फ्लू लगातार जानें ले रहा है वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य विभाग आंकड़ेबाजी और फर्जी रिपोर्ट देकर शीर्ष अधिकारियों को गुमराह कर रहा है। जिसकी वजह से हालात दुरस्त होने के बजाए और खराब होते जा रहे हैं। संडे को जब शहर में स्वाइन फ्लू के तीन संदिग्ध पेशेंट्स की मौत हुई। उसी शाम डीएम ऑफिस से स्वाइन फ्लू को लेकर की गई व्यवस्थाओं और अब तक उसके असर की जानकारी देने वाला एक प्रेस नोट जारी किया गया। जिसके हिसाब से स्वास्थ्य विभाग पूरी मुस्तैदी से स्वाइन फ्लू के मामलों को काबू करने में लगा है। शहर में अब तक सिर्फ स्वाइन फ्लू के दो मामले सामने हैं। आई नेक्स्ट आज आपको प्रशासन के हर दावे का पोस्टमॉर्टम कर उसकी हकीकत से रूबरू करा रहा है। पढि़ए और फैसला कीजिए कि क्या प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इस गंभीर बीमारी से निपटने के लिए वाकई गंभीर है?

डीएम के स्पष्टीकरण और उसकी हकीकत -

क्- सरकारी अस्पतालों में क्0 बेड के आइसोलेशन वार्ड बनाए गए हैं जिसमें पेशेंट्स को पर्याप्त चिकित्सकीय सुविधाएं दी जा रही है।

हकीकत- कहने को तो उर्सला,केपीएम, कांशीराम ट्रामा सेंटर और मेडिकल कॉलेज में आइसोलेशन वार्ड बनाए गए हैं लेकिन इलाज सिर्फ मेडिकल कॉलेज के आईडीएच में ही मिल रहा है बाकी अस्पतालों के आइसोलेशन वार्ड में ताला लगा है। आखिर कोई संदिग्ध पेशेंट वहां क्यों नही पहुंच रहा है। दरअसल पेशेंट्स वहां पहुंच तो रहे हैं लेकिन उनका इलाज नहीं किया जा रहा। उन्हें आईडीएच भेजा जा रहा है। संडे को स्वाइन फ्लू के संदिग्ध पेशेंट मो। बिलाल की उर्सला में मौत इसका सबूत है।

ख्- स्वाइन फ्लू के संदिग्ध पेशेंट्स को भी टेमी फ्लू मुहैया कराई जा रही है जिले में इसकी पर्याप्त दवा उपलब्ध है। दवा नियमित तौर पर डॉक्टरों की निगरानी में दी जा रही है।

हकीकत- अगर संदिग्ध पेशेंट्स को भी समय पर पर्याप्त डोज मुहैया कराया जा रहा होता तो स्वाइन फ्लू से मरने वाली उन्नाव की मीनू का बेटा दिव्याशं आज भी आईडीएच में भर्ती होकर स्वाइन फ्लू का इलाज नहीं करा रहा होता। जिन डॉक्टरों की निगरानी में यह दवा देने का आप दावा कर रही हैं। उनमें कई डॉक्टर्स खुद बीमार पड़ चुके हैं।

फ्- संदिग्ध पेशेंट्स के फालोअप और उनके इलाज के लिए सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटलों में क्9 रिर्पोटिंग यूनिटें कार्यरत हैं।

हकीकत- स्वाइन फ्लू के संदिग्ध मामलों के फालोअप की तो बात करना ही बेमानी है। क्योंकि जिले में स्वाइन फ्लू के संदिग्ध पेशेंट्स कितने हैं यह तो तय भी नहीं हो सकता। क्योंकि आपके हिसाब से तो सिर्फ सरकारी रिपोर्ट में पुष्टि होने वाले पेशेंट्स को ही स्वाइन फ्लू का मरीज माना जाता है। प्राइवेट जांच में पॉजिटिव आने वाले आरबीआई के एजीएम को आपका विभाग किस श्रेणी में रखता है इसका जवाब देना भी जरूरी है। बाकी रही बात क्9 रिपोर्टिग यूनिटों की तो संडे को उर्सला अस्पताल में मो। बिलाल मर गया लेकिन प्रभारी डिप्टी सीएमओ तक को इसकी जानकारी नहीं थी।

ब्- संदिग्ध पेशेंट्स के सैंपल कलेक्शन के नमूने प्राथमिकता के आधार पर केजीएमयू जांच के लिए भेजे जा रहे हैं इसके अलावा प्राइवेट स्तर पर एक पैथालॉजी भी में भी जांच की सुि1वधा है.

हकीकत- यह स्पष्टीकरण तो गले उतरने वाला नहीं है कि सैंपल समय पर भेजे जा रहे हैं। अगर समय पर जांच के सैंपल भेजे जा रहे हैं तो पेशेंट्स की मौत के बाद उनकी रिपोर्ट क्यों आ रही है। शनिवार को क्क् सैंपलों की रिपोर्ट मंगलवार शाम तक क्यों नहीं आई थी। क्या आपकी जिम्मेदारी सिर्फ सैंपल भेजने तक सीमित है फिर चाहे उसके रिजल्ट्स कितने दिन बाद भी आए। जहां तक रही बात प्राइवेट पैथालॉजी की तो उसकी जांच रिपोर्ट को तो आपका विभाग मानता ही नहीं है अगर ऐसा होता तो जिले में स्वाइन फ्लू की पुष्टि के सरकारी आकंड़ा ख् तक सीमित नहीं होता।

भ्- कुल ख्ख्भ् लोगों को टेमी फ्लू दवा की एक्टिव प्रोफाइल डोज दी गई है।

हकीकत- शहर में टेमी फ्लू दवा के स्टॉक को लेकर आईडीएच से लेकर तीन प्राइवेट मेडिकल स्टोर्स आपको, दवा किसे दी गई इसका आंकड़ा भी दे रहे हैं। लेकिन हैलट के सामने स्थित एक मेडिकल स्टोर से हैलट में ली गई ब्00 टेमी फ्लू की गोलियां कहां गई। क्या इसकी जानकारी स्वास्थ्य विभाग काे है।

म्- संदिग्ध मामलों के सर्विलांस के लिए आईडीएसपी की रैपिड रिस्पांस टीम सक्रिय की गई है।

हकीकत- आईडीएसपी की यह टीम संदिग्ध मामलों को कहां तलाश कर रही हैं और इसका रैपिड रिस्पांस टाइम क्या है। यह तो आप ही जानें, लेकिन आपके स्वास्थ्य विभाग को स्वाइन फ्लू के संदिग्ध पेशेंट्स किसे माना जाए उसे भी परिभाषित करना चाहिए।

7- अस्पतालों में संक्रमण को रोकने के लिए पर्सनल प्रोटेक्शन एक्यूपमेंट किट पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। इसके अलावा स्वाइन फ्लू पेशेंट्स के इलाज के दौरान निकलने वाले मेडिकल वेस्ट का उचित निस्तारण किया जा रहा है.

हकीकत- स्वाइन फ्लू पेशेंट्स का इलाज करने वाले डॉक्टर्स को अगर पर्याप्त पर्सनल प्रोटेक्शन एक्यूपमेंट किट मिल रहे होते तो आपके स्वास्थ्य विभाग के डॉ। आशीष श्रीवास्तव और डॉ। नवनीत चौधरी क्यों बीमार पड़े। और अस्पताल में साफ सफाई की बात तो ठीक है लेकिन आईडीएच के बाहर टहलने वाले सुअरों को पकड़ने के लिए क्या कार्रवाई हुई इसकी भी जानकारी देनी चाहिए।

8- जागरूकता के लिए स्कूलों के प्रधानाचार्यो के साथ बैठक कर बच्चों में पर्सनल हाईजीन के बारे में जानकारी देने के निर्देश दिए जा चुके हैं

हकीकत- इसका खुलासा तो आई नेक्स्ट पहले ही कर चुका है कि कैसे सभी स्कूलों में बस एक नोटिस भिजवा कर जिला प्रशासन ने काम को निपटा दिया। वैसे प्राइवेट स्कूलों की बात छोड़ दें तो सरकारी स्कूलों में बच्चों को पर्सनल हाईजीन की जानकारी कभी दी गई या नहीं, आपको इसकी पड़ताल जरूर कर लेनी चाहिए।

9- कानपुर से अब तक सरकारी जांच के लिए भ्म् सैंपल भेजे जा चुके हैं। जिसमें से ब्भ् की रिपोर्ट आ चुकी हे। ख्ब् की रिपोर्ट निगेटिव है, क्0 में संक्रमण पाया गया है। इनमें से कानपुर जिले के दो पेशेंट्स ही हैं। पीडि़तों के परिजनों और उनके निवास स्थान के आसपास मेडिकल टीम ने परीक्षण किए हैं। पूरे प्रदेश में अब तक मिले ख्भ्ख् संदिग्ध मामलों में कानपुर का प्रतिशत .79 फीसदी ही है।

हकीकत- आपका विभाग सिर्फ सरकारी रिपोर्ट में पॉजिटिव आने वालों को ही स्वाइन फ्लू का पेशेंट क्यों मान रहा है। आईडीएच में क्या प्राइवेट जांच में पॉजिटिव आने वाले पेशेंट्स का सरकारी जांच में पॉजिटिव आने वाले पेशेंट्स से अलग ट्रीटमेंट किया जा रहा है। और आपका पूरे प्रदेश में स्वाइन फ्लू के मामले में हिस्सेदारी एक फीसदी से कम होना लाजमी है क्योंकि आपका विभाग सारे पेशेंट्स को रिपोर्ट ही नहीं कर रहा है।

क्0- निजी पैथॅालाजी को भी उनके यहां हो रही जांचों की जानकारी सीएमओ ऑफिस में बनाए गए कंट्रोल रूम में सूचना देने के निर्देश हिए हैं। कंट्रोल रूम नंबरों पर भी उचित सलाह दी जा रही है।

हकीकत- अगर निजी पैथॉलाजी की जांच में पॉजिटिव आने वाले पेशेंट्स को स्वाइन फ्लू का पेशेंट मान ही नहीं रहे हैं तो उसकी रिपोर्ट का आप आखिर कर क्या रहे हैं। इसके अलावा कंट्रोल रूम के जिन दो नंबरों पर आप जानकारी मिलने का दावा कर रहे हैं। वह उनमें से एक डॉक्टर तो खुद बीमार पड़े हैं।

क्क्- आईडीएच में लगाए गए ख् वेंटीलेटर बिल्कुल सही हैं इस बाबत भ्रामक और असत्य सूचनाएं फैलाई जा रही हैं।

हकीकत- आईडीएच में स्वास्थ्य विभाग की ओर से दो वेंटीलेटर लगाए तो गए हैं लेकिन दिन के बाद रात में जरूरत पड़ने पर उसे मॉनिटर करने वाले एनीस्थिसिया के डॉक्टर्स की ड्यूटी सोमवार से लगना शुरू हुई है। एक्सप‌र्ट्स की गैरमौजूदगी में वेंटीलेटर पर रखे जाने वाले पेशेंट्स को अगर ठीक से मॉनीटर किया जाता तो कई पेशेंट्स की जान बच सकती थी।

------------------------

Posted By: Inextlive