लोग कार से दफ़्तर जाते हैं। बस से जाते हैं। मेट्रो से ऑफ़िस तक का रास्ता तय करते हैं। बहुत से लोग रेल से दफ़्तर जाते हैं। तो कई लोग साइकिल या बाइक से भी ऑफ़िस जाते हैं। लेकिन दुनिया में एक शख़्स ऐसा भी है जो रोज़ाना तैर कर अपने दफ़्तर पहुंचता है। उनका नाम है बेंजामिन डेविड।

बेंजामिन, जर्मनी के म्यूनिख शहर में रहते हैं। वो रोज़ाना इसर नदी में दो किलोमीटर तैर कर अपने दफ़्तर पहुंचते हैं।

पहले, बेंजामिन भी कार से ही अपने ऑफ़िस जाया करते थे। उनका रास्ता इसर नदी के पास से ही होकर गुज़रता था।

अक्सर बेंजामिन ट्रैफ़िक जाम में फंस जाते थे। नदी के बगल से गुज़रते हुए ही बेंजामिन को तैर कर दफ़्तर जाने का ख़याल आया।

 

डिज़ाइनर बैग रखता है सुरक्षित
उन्होंने इसके लिए अपनी तैराकी की पोशाक निकाली। वो घर से अपना लैपटॉप और दूसरा सामान रबर के एक बैग में सुरक्षित बंद कर लेते हैं।

फिर तैरने वाले कपड़े और रबर का सैंडल पहनकर तैरते हुए अपने दफ़्तर पहुंचते हैं।

बेंजामिन बताते हैं कि गर्मियों के तीन महीनों में उनका बिग कल्चर प्रोजेक्ट शुरू होता है। इस दौरान वो रोज़ ही तैर कर दफ़्तर जाते हैं।

कई दिन तो वो दो-दो बार तैर कर आते-जाते हैं। हां, सर्दियों में बेंजामिन नियमित रूप से तैर कर दफ़्तर नहीं जाते।

उनके पास जो बैग है उसे बेसल के एक डिज़ाइनर ने तैयार किया था। वो ख़ुद भी तैर कर दफ़्तर जाते वक़्त अपना सामान सुरक्षित रखना चाहता था। उसने ऐसा बैग डिज़ाइन किया, जिसमें रखा सामान पानी में भीगता नहीं।

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कहां से आया आइडिया?
बेंजामिन बताते हैं कि उनकी देखा-देखी कई और लोग भी तैर कर दफ़्तर जाने लगे हैं।

हालांकि वो बेंजामिन की तरह रोज़ाना ऐसा नहीं करते। जब वो तैर कर स्विम सूट पहने हुए नदी के किनारे पहुंचते हैं, तो, उन्हें देखकर लोग मुस्कुराते हैं।

उनके ज़्यादातर साथी, बस या कार से ऑफ़िस आते हैं।

बेंजामिन कहते हैं कि उन्हें ये ख़याल ये जानकर आया कि क़रीब डेढ़ सौ साल तक इसर नदी के ज़रिए लोग आवाजाही किया करते थे।


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पुराना तरीक़ा
इसके ज़रिए इटली की राजधानी रोम से लोग ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना तक आया करते थे।

लेकिन पिछले सौ सालों में लोग नदी के ज़रिए सफ़र का ये तरीक़ा भूल ही चुके हैं।

आज कोई भी इसर नदी से आवाजाही नहीं करता।

बेंजामिन कहते हैं कि इसीलिए उन्होंने नदी के ज़रिए दफ़्तर आने-जाने की सोची।

शायद उन्हें देखकर लोग सफ़र के इस पुराने माध्यम को इस्तेमाल करने लगें। ये सस्ता भी है और पर्यावरण के लिहाज़ से भी ठीक है।

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Posted By: Chandramohan Mishra