आगरा. ब्यूरो विश्व भर में आगरा शहर की पहचान मुगलकाल के इतिहास और मुग़लकालीन इमारतों से है. ये शहर 1526 से 1658 तक मुग़ल साम्राज्य की राजधानी भी रहा. यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल तीन इमारतें ताजमहल लाल किला और फतेहपुर सीकरी भी इस शहर में हैं. इसके अलावा 154 ऐतिहासिक धरोहरें भी इस शहर में हैं जो एएसआई भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हैं. एएसआई इन स्मारकों का रखरखाव और संरक्षण करता है. प्रतिवर्ष इसके लिए बजट भी जारी होता है. लेकिन विभाग के जिम्मेदार लोगों द्वारा इन स्मारकों की अनदेखी से ये स्मारक जर्जर होते जा रहे हैं. कुछ संरक्षित स्मारक अवैध कब्जे का शिकार हैं तो कुछ अपने वजूद के लिए ही संघर्ष कर रहे हैं. अगर यही हालत रहे तो इनमें से कुछ स्मारक जल्दी ही अपना ऐतिहासिक महत्व खो देंगे.


अकबर टॉम्ब से 400 मीटर की दूरी पर स्थित है मरियम टॉम्ब.

इसको मरियम के मकबरे के नाम से भी जाना जाता है जिसका निर्माण सन् 1495 में सिकंदर लोदी ने बारादरी के रूप में कराया था। मरियम उज जमानी के निधन के बाद इसको मकबरे में बदल दिया गया था। यह स्मारक मुगल काल नहीं बल्कि लोदी काल की विरासतों को सहेजे हुए हैं। स्मारक एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारकों की लिस्ट में है और एएसआई इसकी देखरेख करता है। यहां ऑनलाइन टिकट की व्यवस्था भी है। लेकिन प्रचार प्रसार के अभाव में यहां सिर्फ घरेलू पर्यटक ही पहुंच पाते हैं। संरक्षित स्मारक अकबर टॉम्ब अब अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।

दरक रहीं दीवारें टूट रहे पत्थर।

मरियम के मकबरे की दीवारें अपना वजूद बचाने के लिए ही जद्दोजहद कर रही हैं। मकबरे के पीछे और अंदर की दीवारों के पत्थर टूट टूट कर गिर रहे हैं। दीवारों में जगह जगह से गैप बना हुआ है ऐसा लगता है। इसकी मरम्मत सालों से नहीं हुई हो। जबकि एसआई संरक्षित स्मारकों पर बजट जारी करता है। इसके लिए बजट जारी किया जाता है। लेकिन देख रेख के अभाव में ये ऐतिहासिक स्मारक जर्जर होता जा रहा है।

दीवारों पर इतिहास नहीं बल्कि फूहड़ता है।

कहने को तो ये मकबरा अपने आप में इतिहास को सहेजे हुए हैं। इनकी दीवारों पर नक्काशी के साथ लोदी काल का इतिहास हुआ करता था। अब यहां स्थानीय पर्यटकों ने जगह जगह पत्थरों से नाम लिख कर अपने नाम लिख दिए हैं। टॉम्ब की दीवारों की हालत यह है कि यहां सिर्फ युवक युवतियों के नाम ही दिखाई पड़ते हैं। स्थानीय पर्यटक पत्थरों से इन ऐतिहासिक दीवारों पर अपने नाम उकेर जाते हैं। जिससे कि इन दीवारों का वजूद ही खतरे में हैं।

लोदी काल की बाबड़ी की हालत है जर्जर।

मकबरे से ठीक बगल में सदियों पुरानी एक कुआनुमा बाबड़ी है, जिसमें लोहे की सीढिय़ां लगी हुई हैं। एएसआई संरक्षित होने के बाद भी इस कुएं को कूड़ा डाल कर लगभग आधे से ज्यादा दूरी तक तो बंद ही कर दिया गया है। इसी कुएं पर अंदर जाने के लिए जो लोहे की सीढ़ी लगाई गई है। एक भी बार उस पर पेंट नहीं किया गया। जिसकी वजह से वो आधे से अधिक गल गई है। कोई भी पर्यटक इनकी तरफ जा कर इसके आस पास न जाए ना तो इसके लिए कोई साइनबोर्ड है न ही इस कुएं को कवर किया गया है। इससे कभी भी कोई भी हादसा हो सकता है।

40 से 50 पर्यटक प्रतिदिन यहां पहुंचते हैं। प्रचार प्रसार के अभाव की वजह से अधिकांश पर्यटकों को इसकी जानकारी नहीं है। इस कारण विदेशी पर्यटक यहां कम पहुंच पा रहे हैं। हाल ही में ये स्मारक मेरे अधिकार क्षेत्र में आए हैं जल्दी ही कमियों पर काम कर इनकी रिपोर्ट भेजी जाएगी।

-मुदस्सर अली संरक्षण सहायक सिकंदरा केंद्र।


-आगरा का महत्व ही मुगलकाल के इतिहास से है। प्रशासन सिर्फ बड़े बड़े स्मारकों पर ही ध्यान दे रहा है। अगर इन सभी स्मारकों का प्रचार प्रसार किया जाए तो इनसे आय भी बढ़ेगी और ये इमारतें संरक्षित भी रहेंगी।


अधिकांश मुगल काल की इमारतें जर्जर हो चुकी हैं। इनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है पता नहीं एएसआई को ये क्यों नहीं दिखाई देती। स्मारक अपना महत्व खोते जा रहे हैं।


मरियम टॉम की तो दीवार ही नहीं दिखती जो युवाओं ने पूरी तरह बेकार कर दी हैं। एएसआई को यहां इसके लिए गार्ड नियुक्त कर देने चाहिए जिससे कि पर्यटक इन दीवारों को खराब न करें।

Posted By: Inextlive