आगरा. ब्यूरो जूता दस्तकार व्यापारी और खरीदार एक ही छत के नीचे आ जाएं. इसी मंशा के साथ शहर में जूता मंडी प्रदर्शनी प्रशिक्षण एवं कल्याण केंद्र की नींव रखी गई. निर्माण के 14 वर्ष बाद भी ये वीरान हैं. इसको आबाद करने के कई बार प्रयास किए गए. दुकानों के आवंटन में आकर्षक स्कीम्स लेकर ओडीओपी योजना को भी सम्मलित किया गया लेकिन शू कारीगर और व्यापारियों का जूता मंडी से मोह भंग ही रहा.

आधी से ज्यादा दुकानें खाली पड़ीं
आगरा विकास प्राधिकरण द्वारा पंचकुइयां स्थित नॉर्मल कंपाउंड में बनाई गई जूता मंडी का वर्ष 2010 में लोकार्पण हुआ था। 6870 वर्ग मीटर में बनी जूता मंडी पर 21 करोड़ रुपए की लागत आई थी। यहां 280 दुकानें जूता दस्तकारों के लिए बनाई गई थीं। जूता दस्तकारों ने जूता मंडी में रुचि नहीं ली। यहां अब भी 147 दुकानें और 22 गोदाम खाली पड़े हैं। एडीए ने वर्ष 2021 में इनकी बिड खोली थी, लेकिन किसी ने रुचि नहीं ली। एडीए ने खाली पड़ी दुकानों को ओडीओपी योजना में शामिल लेदर प्रोडक्ट््स के लिए आवंटित करने की योजना शुरू की। जूता मंडी में ग्राउंड फ्लोर जूता दस्तकारों के लिए रिजर्व किया गया। फस्र्ट व सेकेंड फ्लोर लेदर प्रोडक्ट््स के लिए ओपन किए गए। इनमें लेदर से तैयार होने वाले शू के साथ अन्य प्रोडक्ट्स भी शामिल हैं। इनमें लेदर बेल्ट, पर्स, बैग आदि शामिल हैं। इसके लिए सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग का सहयोग भी लिया गया। बावजूद इसके व्यापारियों का जूता मंडी से मोह भंग ही रहा।


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जूूता मंडी पर नजर
21 करोड़ से कराया गया निर्माण
6870 स्क्वायर मीटर एरिया में बनाया गया
280 दुकानें हैं
147 दुकानें अब तक जूता मंडी में पड़ी हैं खाली
6-18 लाख तक दुकान की कीमत
01 रेस्टोरेंट
01 बैंक कार्यालय
22 गोदाम
01 प्रदर्शनी हॉल
06 फूड कोर्ट
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3 लाख लोग शहर में जूता कुटीर उद्योग से जुड़े हैं
8 हजार छोटी जूता ईकाईयां शहर में संचालित हैं

वर्ष 2008 में रखी गई नींव
आगरा के जूता को देश विदेशों तक पहुंचाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 2008 में जूता मंडी की नींव रखी थी। जूता प्रदर्शनी का इस्तेमाल शहर के बिल्कुल सेंटर में किया गया, जहां से आसानी से दूसरे शहरों व राज्यों से व्यापारी जूता मंडी तक पहुंच सके। इस प्रदर्शनी को आगरा में स्थापित करने का उद्देश्य इतना था कि छोटे और बड़े जूता कारोबारी एक छत के नीचे आकर व्यापार कर सकें। हर वैरायटी हर क्वॉलिटी का जूता व्यापारियों को एक ही छत के नीचे उपलब्ध हो। इस वजह से आगरा को एक नई पहचान मिले, लेकिन जूता मंडी का ये उद्देश्य साकार नहीं हो सका। निर्माण पूरा होने के 14 वर्ष बाद भी सभी दुकानों का आवंटन नहीं हो सका।


ये बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण रहा है कि जूता दस्तकारों को स्वावलंबी बनाए रखने के लिए ये जूता मंडी बनाई गई। उद्देश्य था कि घरों पर बैठकर जूता बनाने वाले दस्तकारों को जूता मंडी में लाया जाए। उनके यहां काउंटर बनाए जाएं। जो व्यापारी हींग की मंडी में आते हैं। वह जूता मंडी में आकर जूता दस्तकारों से जूता खरीद सकें। लेकिन, एडीए ने इसे अपने लाभ की योजना बना लिया। दुकानों की कीमत करीब पांच हजार रुपए स्क्वायर फीट के हिसाब से निर्धारित की। दुकानों की कीमत अधिक होने के बाद भी कोई सुविधा नहीं थी। जनप्रतिनिधियों ने भी इस ओर बेरुखी दिखाई। इस जूता मंडी को भारी षडय़ंत्र के तहत फेल कराया गया। हमारी मांग अब भी है कि उचित कीमत पर जूता मंडी में दुकानों का आवंटन किया जाए।
देवकी नंदन सोन, महामंत्री, उत्तर प्रदेश चर्म विकास उत्पादन समिति

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जिस उद्देश्य के साथ जूता मंडी का निर्माण कराया गया था, उस हिसाब से इसका नक्शा ही नहीं बना है। इसे मॉल टाइप का बना दिया है। इसमें दुकान भी बहुत महंगी हैं। इसलिए यहां न तो जूता दस्तकार ही और न ही व्यापारी ही यहां पहुंचे। अब भी ये जूता मंडी सक्सेस हो सकती है, अगर सरकारी विभाग सही मंशा के साथ कार्य करें।
धर्मेंद्र सोनी, अध्यक्ष, आगरा जूता कुटीर उद्योग उत्पादक समिति
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जूता मंडी प्रोजेक्ट को बोर्ड बैठक में ले जाया गया था। जहां इस पर अन्य व्यापार के लिए भी दुकानों के आवंटन पर चर्चा की गई। इसका प्रस्ताव शासन को भेजा गया है।
सोमकमल सीताराम, संयुक्त सचिव, आगरा विकास प्राधिकरण
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जूता मंडी हींग की मंडी बाजार से काफी दूर है। और यहां एक ही समाज के व्यापारियों को तवज्जो दी गई, जिसके चलते अन्य व्यापारियों ने इससे दूरी बना ली।
पंकज कपूर, शू कारोबारी

जूता मंडी फेल होने के पीछे सबसे बड़ी वजह तत्कालीन सरकार की नीतियां रहीं। सर्वसमाज के व्यापारियों को एक जैसा मौका नहीं दिया गया। जिसके चलते ये वीरान पड़ी है।
जतिन साहनी, फुटवियर व्यापारी

Posted By: Inextlive