आगरा. ब्यूरो आगरा का ताजमहल दुनियां के सात अजूबों में शुमार है लेकिन इस शहर में ऐतिहासिक धरोहरों की कमी नहीं है. इन्ही धरोहरों में से एक है सादिक खां-सलावत खां का मकबरा. सिंकदरा स्मारक से महज दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह धरोहर ऐतिहासिक धरोहर है. एएसआई के द्वारा संरक्षित है. लेकिन इस ऐतिहासिक महत्व के स्मारक को विभाग की लापरवाही से पर्यटक ही नसीब नहीं हो रहे हैं. ना ही इसका कोई रखरखाव किया जा रहा है. हाल यह है कि स्मारक जर्जर हो चुका है आस पास अतिक्रमण हो चुका है लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है.

ये है इतिहास

-दिल्ली हाईवे पर आईएसबीटी के ठीक सामने गैलाना रोड पर मुगल दरबारी सादिक खां का मकबरा है। 1633 से 1635 के बीच दो साल में सादिक खां के बेटे सलावत खां ने अपने पिता सादिक खां का मकबरा बनवाया था। इसी मकबरे के पास ही सलावत खां का मकबरा है जो 64 खंभा के नाम से चर्चित है। सादिक खां का मकबरा सफेद गुंबद के साथ अष्ठकोणीय है। इसके ठीक सामने ही सलावत खां का मकबरा है। सादिक खां जहांगीर का दरबारी था। जिसे जहांगीर ने सन् 1623 में पंजाब का गवर्नर बनाया था। 1633 में उसका निधन हुआ तो उसके बेटे सलावत खां ने 1633 से सन 1635 के बीच आगरा-दिल्ली हाईवे पर गैलाना में मकबरे का निर्माण कराया था। सलावत शाहजहां का साला और चहेता वजीर था। 25 जुलाई 1644 को मारवाड़ के राजकुमार अमर सिंह राठौड़ ने भरे दरबार में उसका सर तलवार से कलम कर दिया था। यह मकबरा सादिक खां और सलामत खान के मकबरे के अलावा 64 खंभे के नाम से भी जाना जाता है.यह पहला ऐसा मकबरा है जहां एक ही परिसर में पिता-पुत्र दफन हैं।

स्मारक के बेसमेंट को मलबे से भरकर किया बंद

सिकंदरा स्मारक से से खंदारी की तरफ गैलाना रोड पर स्थित में सादिक खां-सलाबत खां के मकबरे का निर्माण 1644-1650 के बीच का माना जाता है। ऊंचे प्लेटफार्म पर रेड सैंड स्टोन से बनी बरादरी में 64 खंबे होने की वजह से इसका यह नाम 64 खंबा पड़ा। स्मारक में इसमें 25 वर्गाकार कंपार्टमेंट्स हैं। इसके बेसमेंट में बने कमरों को मलबे से भरकर बंद कर दिया गया है। स्मारक की ख़ास बात यह है कि इसमें कोई गुंबद नहीं है इसके चारों कोनों पर चार छोटी बुर्जियां बनी हुई हैं।

अतिक्रमण से नहीं दिखाई देता मकबरा

-यू तो ये ऐतिहासिक मकबरा हाईवे के ठीक पास है। एएसआई ने यहां गेट भी लगा रखा है। लेकिन आसपास इतने अवैध निर्माण हो गए हैं कि इनकी वजह से ये स्मारक नजर ही नहीं आता। इस मकबरे की भी सीढिय़ां और पत्थर गायब हैं। यह मकबरा अष्टकोणीय है इसके ऊपर गुंबद है। भूमिगत कक्ष में एक कब्र का पत्थर हुआ करता था जो वर्तमान में नहीं है। मकबरे का निर्माण ईंटों और चूने से किया गया था लेकिन अब चूने का सफेद प्लास्टर गिर कर जर्जर हो गया है।

जर्जर हो रहे पिलर, गिरासू दीवार

स्मारक की गुम्बदों में जगह जगह दरारें आ जाने की वजह से ये गिरासू हालत में हैं। गुम्बदों के पिलर एकदम जर्जर हो चुके हैं। लगभग गिरने के कगार पर हैं। इसके अलावा स्मारक के बाहर लगी रेलिंग टूट टूट कर गिर रही है। गुम्बदों के पत्थर दरक कर गिर रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार विभाग और अधिकारी इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। ये संरक्षित स्मारक लगभग गिरासू हालत में अपने अस्तित्व के वजूद के लिए लड़ रहा है।


स्मारक के गार्डन को अच्छे से डवलप किया जाएगा। पीने के पानी और अन्य सुविधाओं को यहां ठीक करने का प्रयास किया जा रहा है। इसके अलावा जो भी मरम्मत का कार्य है उसको कराया जाएगा।

-मुदस्सर अली
संरक्षक सहायक सिकंदरा केंद्र.

-सिकंदरा तक तो साल भर में लाखों पर्यटक आते ही हैं, लेकिन इसके अलावा भी शहर में ऐतिहासिक धरोहरों की कमी नहीं है। वावजूद इसके विभागों की लापरवाही से पर्यटक पूरे इतिहास से रूबरू हो ही नहीं पाते।

मुझे तो अब पता चला है कि ये स्मारक भी एएसआई के द्वारा सरक्षित है। पता नहीं इनके रखरखाव के लिए आने वाले बजट को कौन खा जाता है ये भी घोर लापरवाही है।


अगर पर्यटकों को इनके इतिहास के बारे में बताया जाए तो, यहां पर्यटकों की आवाजाही ही बढ़ेगी। इससे रोजगार की संभावना के साथ इन क्षेत्रों का विकास भी होता है लेकिन पता नहीं विभाग क्यों उदासीनता बरत रहा है।

Posted By: Inextlive