Mathura: जवाहर बाग में रामवृक्ष यादव 25 रुपये किलो चीनी ऐसे ही नहीं बेच देता था. उसने ढाई साल में बाग के फलों से ही करीब पच्चीस लाख रुपए की भारी-भरकम की कमाई की थी खुद भी फसलें कीं और बेची. बाहरी रसद तो उसे मिल ही रही थी. अंदरूनी कमाई के लिए उसने जवाहर बाग की प्राकृतिक संपदा को जमकर लूटा. ताज्जुब की बात यह है कि आंवला आम बेर और जामुन की फसलें बाहर की मंडियों में बिकने जाती रहीं और प्रशासन बेखबर बना रहा.

नर्सरी पर तैनात अधिकारियों-कर्मचारियों पर लगा दिया था प्रतिबंध
उद्यान विभाग ने अप्रैल 2014 में ही जिला प्रशासन को रिपोर्ट दी कि कथित सत्याग्रहियों ने साढ़े सात लाख का राजकीय संपत्ति का नुकसान कर दिया है। उसने दबंगई के बल पर बाग के ठेकों की नीलामी भी नहीं होने दी, जबकि हर साल आम, आंवला, बेर और जामुन के लिए ठेका उठता था। इसी साल उद्यान अधिकारी ने रामवृक्ष यादव समेत छह लोगों को नोटिस दिए तो इससे वह और बौखला गया और फसलों की नीलामी होने से ही रोक दी। नर्सरी पर तैनात अधिकारियों-कर्मचारियों के आने-जाने पर ही प्रतिबंध लगा दिया। उसके आदमी कर्मचारियों को इस कदर उत्पीडि़त करते थे कि वे स्वयं ही अन्यत्र चले जाएं।

फलों की लोडिंग पर जिला प्रशासन हमेशा मूक बना रहा
विभागीय सूत्र बताते हैँ कि रामवृक्ष ढाई साल में इस तरह पच्चीस लाख से ज्यादा के फल बाग से तोड़े और अपने आदमियों से मंडियों में बेच दिए। फलों की लो¨डग होने से लेकर ट्रकों के बाग से बाहर जाने तक जिला प्रशासन हमेशा मूक बना रहा। हालत यह थी कि उद्यान विभाग की शिकायतों और पत्रों को फाइलों में दबा दिया जाता था। इस दौरान तैनात रहे जिलाधिकारी शिकायतें सुनने तक को तैयार नहीं होते थे। इससे जहां विभागीय अधिकारी व कर्मचारियों के हौसले पस्त होते गए, वहीं राम वृक्ष यादव की दबंगई बढ़ती चली गयी। कब्जा धारियों ने उक्त फसलें बेचकर तो अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत की ही, साढ़े तीन हजार पेड़ों को काट कर भी बाग को नुकसान पहुंचाया।

राशन कार्ड भी बनवा लिए थे
जवाहर बाग में ढाई साल चली समानांतर सरकार को मजबूत करने में ऊपर के इशारे की बड़ी भूमिका रही। सूत्रों की मानें तो कथित सत्याग्रहियों के राशन कार्ड भी बनाए गए थे और बाग में रह रहे लोग आसपास के राशन डीलरों से माहवार सामग्री भी लेकर आते थे। जिला पूर्ति कार्यालय हालांकि इससे इंकार कर रहा है। कब्जाधारियों को बाहरी रसद में राशन और बिजली दोनों प्रमुख तौर पर मिलते रहे। सूत्रों का कहना है कि कथित सत्याग्रहियों के कब्जा जमाने के छह माह के बाद ही उनके राशन कार्ड बनाने का इशारा हो गया था। इस मौखिक इशारे के बल पर तमाम सत्याग्रहियों ने अपने राशन कार्ड बनवा लिए थे और वे हर महीने खाद्य सामग्री और मिट्टी का तेल भी लेकर आते रहे। भाजपा के संसदीय दल ने भी रविवार को यह आरोप लगाया है, जिसमें काफी दम बताया जा रहा है।

Posted By: Inextlive