हंगामेदार रही इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की एग्जीक्यूटिव कमेटी की मिटिंग

यौन शोषण के आरोपों से घिरे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के एक प्रशासनिक ऑफिसर और एक टीचर को राहत मिलने के आसार बन गये हैं। दो टीचर्स को आरोप मुक्त होने के लिए इंतजार करना पड़ सकता है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की एग्जीक्यूटिव कमेटी की मिटिंग में फ्राइडे को यह मुद्दा गरम रहा। मिटिंग हंगामेदार रही और तमाम सवाल भी खड़े किये गये। शायद यही कारण था कि कार्य परिषद की मिटिंग में फाइनल डिसीजन क्या लिये गये? इस पर बोलने के लिए कोई भी अफसर तैयार नहीं हुआ।

रिव्यू कमेटी का किया गया गठन

मिटिंग लॉ फेकेलिटी हॉल में दिन में साढ़े तीन बजे शुरू हुई। एजेंडे में सबसे ऊपर तीन टीचर्स और एक प्रशासनिक ऑफिसर पर लगे यौन शोषण का आरोप था। सूत्रों का कहना है कि एक के प्रकरण की जांच के लिए रिव्यू कमेटी बना दी गयी है। एक को आलमोस्ट क्लीन चिट दे दी गयी है। बाकी दो के प्रकरण नेक्स्ट मिटिंग में भी चर्चा के लिए रखे जाएंगे। जिन दो शिक्षकों पर शिकंजा कसा जाना है, उनमें एक शिक्षक के मामले में कहा गया कि करीब दो साल पहले मौजूदा कुलपति के पास इविवि में महिला शिकायत प्रकोष्ठ के अध्यक्ष का प्रभार था। उनकी रिपोर्ट पर कार्य परिषद ने शिक्षक को पदावनत कर एसोसिएट प्रोफेसर से असिस्टेंट ग्रेड पर रखने का निर्णय लिया था। उनके वेतन में कटौती का प्रस्ताव भी पारित हुआ था। बैठक में उनकी सैलरी और पदनाम स्पष्ट करने किए जाने का प्रस्ताव रखा गया। ऐसे में इस प्रकरण में रिव्यू कमेटी गठित की गई है, जो प्रकरण का पुनर्मूल्यांकन कर रिपोर्ट सौंपेगी। जबकि, दूसरे शिक्षक के मसले पर यह तय हुआ कि प्रकरण फिर से अगली बैठक में रखा जाएगा।

इविवि को 13 करोड़ मुआवजे के रूप में मिले

फैजाबाद-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग पर चंद्रशेखर आजाद के नाम पर मलाक हरहर से स्टेनली रोड तक बनने वाले सिक्स लेन पुल के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की करीब 10 बिस्वा जमीन अधिग्रहित की गई है। मुआवजे के तौर पर 13 करोड़ 40 लाख 78 हजार 244 रुपये इविवि के खाते में जमा हो चुके हैं। यह जानकारी भी शुक्रवार को कार्य परिषद की बैठक में सदस्यों के सामने रखी गई।

हिंदी विभाग के नए अध्यक्ष की नियुक्ति पर सवाल

बैठक में इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता नरेश प्रजापति और वीरेंद्र पांडेय की तरफ से परिषद के सदस्यों को भेजे गए पत्र पर भी चर्चा हुई। आरोप लगाया गया कि सितंबर 2018 में तत्कालीन कुलपति प्रो। रतन लाल हांगलू ने प्रो। कृपाशंकर पांडेय को पदमुक्त कर दिया था। तब प्रो। पांडेय ने अपना दोष मानते हुए एफिडेविट दिया था। उनके खिलाफ जांच कमेटी भी गठित की गई थी। नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए सवाल किया गया कि उन्हें किस आधार पर रोटेशन पूरा किए बगैर पुन: विभागाध्यक्ष बना दिया गया।

Posted By: Inextlive