विरोध प्रदर्शन का मतलब हिंसा और उग्रता ही नहीं होता। शांति और विनम्रता के साथ भी अपना विरोध दर्ज कराया जा सकता है। संस्था सात्विक द्वारा रविवार शाम एनसीजेडसीसी में मंचित नाटक जुलूस में यही संदेश दिया गया। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एवं युवा रंगकर्मी मोनू खान के निर्देशन मे मंचित नाटक 'जुलूस' अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों पर किये गये क्रूरता और बर्बरता पर आधारित हैं। नाटक की कहानी भारतीय देश भक्त इब्राहिम अली दरोगा बीरबल और उसकी पत्नी मिठ्ठन के इर्द गिर्द घूमती है। कहानी की शुरुआत में स्वराजियों के एक जुलूस पर अंग्रेज पुलिस के लाठीचार्ज को दिखाया गया है। इस दौरान दरोगा बीरबल की लाठी जुलूस में शामिल एक निहत्थे देशभक्त इब्राहिम अली के सिर पर पड़ती है। और वो वही लहूलुहान होकर गिर पड़ते है। अपने अंतिम समय में इब्राहिम अली के स्वर गूंजते है कि मेरी लाश को गंगा में नहला कर दफनाया जाये और मेरा कब्र पर स्वराज का झंडा खड़ा कर देना। इसी जुलूस में शामिल मिट्ठन अपने पति को कोसती है और फिर उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है। नाटक में इब्राहिम अली की भूमिका में मिथलेश पाण्डे, बीरबल की भूमिका में श्वेतांक मिश्रा, मिठ्ठन की भूमिका में जूही दुबे, इब्राहिम अली की भूमिका में दिव्या शुक्ला ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शको को बहुत प्रभावित किया। प्रस्तुति परिकल्पना सुबोध सिंह और निर्देशक मोनू खांन थे। निदेशक आकाशवाणी लोकेश शुक्ला रहे।

Posted By: Inextlive