कहा जाता है कि स्मोकिंग इज इंजूरियस टू हेल्थ... लेकिन यंग एज में लोग हेल्थ के बारे में सोचते ही नहीं है और अपनी मनमानी करते हैं. ऐसे में इसका खामियाजा हमारे लंग्स को झेलना पड़ता है. जिला अस्पताल में मौसम के बदलने की वजह से कई तरह के पेशेंट्स आ रहे हैैं. इनमें अस्थमा टीबी और सीओपीडी के पेशेंट्स शामिल हैैं. सीओपीडी से कई युवा ग्रस्त हैैं.

बरेली (ब्यूरो)। कहा जाता है कि स्मोकिंग इज इंजूरियस टू हेल्थ लेकिन यंग एज में लोग हेल्थ के बारे में सोचते ही नहीं है और अपनी मनमानी करते हैं। ऐसे में इसका खामियाजा हमारे लंग्स को झेलना पड़ता है। जिला अस्पताल में मौसम के बदलने की वजह से कई तरह के पेशेंट्स आ रहे हैैं। इनमें अस्थमा, टीबी और सीओपीडी के पेशेंट्स शामिल हैैं। सीओपीडी से कई युवा ग्रस्त हैैं।

चेस्ट रिलेटेड बढ़ रही प्रॉब्लम
प्रदूषण हर बीमारी की एक बड़ी परेशानी बनी हुई है। लोगों पर आसपास के हो रहे एंवायरनमेंटल चेंज का काफी असर पड़ रहा है। इसके अलावा मौसम में हो रहे बदलाव भी परेशानी की वजह बने हुए हैैं। डॉ। नरेशन सिंह ने बताया कि हर दिन चेस्ट प्रॉब्लम को लेकर लगभग 150 से 200 लोग आ रहे हैैं। वहीं अगर एक दिन में 150 पेशेंट्स भी आते हैैं तो एक महीने में चार हजार पांच सौ लोग हो जाते हैैं, जो एक बड़ा नंबर है।

बीमारियों को न्योता
फेफ ड़ों से जुड़ी बीमारी हर दिन बढ़ती जा रही है। वहीं यह बीमारी सिर्फ लंग्स तक ही सीमित नहीं रह गई हैै बल्कि इसकी वजह से लोग कहीं न कहीं डिप्रेशन और एंग्जाइटी के भी शिकार हो रहे हैैं। इसके अलावा महिलाओं में टीवी, अस्थमा और अदर वायरल बीमारियां भी बढ़ रही हैैं। टीबी का रेशियो मेल और फीमेल में होने का फिफ्टी-फिफ्टी है। वहीं अस्थमा सबसे ज्यादा महिलाओं में देखा गया है।

क्या होता है सीओपीडी
सीओपीओ यानी की क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज या फिर क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव ब्रोंकाइटिस है। सीओपीडी में सांस लेने में तकलीफ होने लगती है और एयरफ्लो में ब्लॉकेज होने लगता है। यह बीमारी एयर पॉल्यूशन की वजह से होती है। इसमें लगातार ट्रीटमेंट की जरूरत होती है जिसकी मदद से इसे कंट्रोल किया जा सकता है। ऐसे में लंग्स का ख्याल रखना जरूरी है। बॉडी का रूटीन होता है कि कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालता है और ऑक्सीजन इनहेल करता है, लेकिन सीओपीडी में कार्बन डाइऑक्साइड बाहर नहीं निकल पाती है

ये हैं लक्षण
-सांस लेने में तकलीफ
-सीने में जकडऩ
-गहरी सांस लेने में तकलीफ या दर्द
-बीकनेस होना
-लगातार वेट लॉस होना
-रेस्पिरेटरी सिस्टम गड़बड़ाना
-पैरों में सूजन
-चलने-फिरने में सांस फूलना

सांस की परेशानी
सीओपीडी में पूरा रेस्पिरेटरी सिस्टम गड़बड़ा जाता है। लंग्स में जकडऩ की पेरशानी होने लगती है। वहीं खांसी की प्रॉब्लम भी होने लगती है। इसकी वजह फेफड़ों का खराब होना होता है। जैसे-जैसे सीओपीडी बिगड़ता है वैसे ही वैसे इसका खतरा और भी बढऩे लगता है। कई रिसर्च में भी यह माना गया है कि सीओपीडी होने वाले लोग 32 साल से 11 साल तक जिंदा रह सकते हैैं। इसलिए पेशेंट्स को प्रॉपर ट्रीटमेंट कराना चाहिए।

मेंटल हेल्थ भी प्रभावित
लोग स्मोकिंग कर करके खुद को कूल दिखाने की कोशिश करते हैैं, लेकिन यह ही उनकी परेशानी की वजह है। सबसे ज्यादा सीओपीडी मेल में देखी गई हैैं। इसका असर सिर्फ लंग्स पर नहीं, बल्कि मेंटल हेल्थ पर भी पड़ता है। लोग मेंटल प्रॉब्लम से भी ग्रस्त हो जाते हैैं। यह एंग्जायटी और डिप्रेशन को भी ट्रिगर करता है।

लाइफस्टाइल में बदलाव
डॉ। ज्ञानेंद्र गुप्ता के मुताबिक लाइफ स्टाइल में बदलाव भी इसकी वजह है। लोग एक समय पर इतने काम लेकर बैठ जाते हैं जिसमें वे खुद को फ्रस्टेटिड फील करने लगते हैैं जिसकी वजह से वे विकल्प ढूंढने लगते हैैं। स्मोकिंग उन्हें एक इजी टारगेट दिखता है। जिसे वे ओप्ट करते रहते हैैं। इसके साथ-साथ हमारी फूडिंग हैबिट भी बड़ी वजह हैै।

कैसे करें क्योर
-प्रॉपर ट्रीटमेंट लेना जरूरी है
-रेगुलर एक्सरसाइज करना चाहिए, जिससे लंग्स स्वस्थ रहें।
-भीड़-भाड़ वाली जगाहों से जाने से बचेें
-मास्क का इस्तेमाल करें
-धूल मिट्टïी से बचाव करें
-स्मोकिंग को पर पूरी तरह से रोक लगाएं
-प्रॉब्लम होने पर वैक्सीनेशन का सहारा ले

सीओपीडी स्मोकिंग की वजह से होता है। इसमें सबसे पहले इस बैड हैबिट से दूरी बनानी चाहिए। इसके साथ ही प्रॉपर ट्रीटमेंट की भी जरूरत होती है। इसके अलावा लोगों को पॉल्यूशन वाली जगहों पर जाने से परहेज करना चाहिए और मास्क जैसे चीजों को इस्तेमाल करें।
डॉ। मोहम्मद नासिर, पल्मोनोलॉजिस्ट

सीओपीडी सिर्फ बीड़ी, सिगरेट पीने की वजह से नहीं होता है, बल्कि मेंटल प्रेशर भी इसकी वजह है। जैसे-जैसे कल्चर बदल रहा है, लोगों का कन्संट्रेशन भी डेबिएट हो रहा है। ऐसे में लोग नए-नए रास्ते बनाने की कोशिश करते हैं, जिसमें स्मोकिंग, नशे जैसी चीजों को शामिल कर लेते हैैं। ऐसे में लोगों को पहले मेंटल पीस ढूंढना चाहिए।
डॉ। ज्ञानेंद्र गुप्ता, पल्मोनोलॉजिस्ट ,

Posted By: Inextlive