Bareilly : 1990 में बरेली नगर निगम के तौर पहचान बनने के बाद से अब तक निगम की सीमाएं जस की तस हैं. बीते 23 सालों में शहर के पुराने चेहरे पर डेवलेपमेंट का रंग चढ़ा तो इसकी गिनती बेहतर टियर टू सिटीज में होने लगी. डेवलपमेंट हुआ तो पॉपुलेशन भी बढ़ी और इसी के साथ मकानों और कॉमर्शियल बिल्डिंग्स की तादाद भी. जब शहर की जमीनों पर नजर गड़ाना मुश्किल हुआ तो इससे सटे एरियाज में लीगल व इल्लीगल की परवाह किए बगैर कॉलोनीज बनी. अब हालत यह है कि इस शहर के बाहर एक और नए शहर ने खुद को बसा लिया है लेकिन निगम इसे अब तक गोद नहंी ले सका. 1982 में नगर महापालिका और 1990 में बतौर नगर निगम गठन के बाद भी 31 सालों से निगम अपनी सीमाओं का विस्तार नहीं कर सका है जिससे करोड़ों के नए टैक्स पाने से निगम दूर है.


नहीं बढ़ा सके अपनी सीमाएंपिछले 23 सालों से नगर निगम की सीमाएं परसाखेड़ा, पीर बहौड़ा, सैटेलाइट बस स्टॉप और बदांयू रोड पर बने एक पेट्रोल पंप तक खिंची हैं। इन सीमाओं से सटे एरियाज में नई कॉलोनीज के बसने के कारण हजारों लोग बरेली का हिस्सा बन चुके हैं। हालांकि इससे वह निगम की सुविधाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। अपनी सीमाओं से बाहर इन हजारों लोगों को निगम न तो सुविधाएं प्रोवाइड करा सका है और न ही उनसे टैक्स वसूली कर पाया है।शासन ने ठुकराया proposal


शहर के सुभाषनगर एरिया से जुड़े करगैना-करेली एरियाज को अपनी सीमा में लेने के लिए निगम ने 2004 में शासन को प्रपोजल भेजा था। निगम को उम्मीद थी कि इन एरियाज को अपनी सीमा में लाने पर यहां रुके डेवलेपमेंट को तेजी मिल सकेगी। लेकिन शासन ने उस समय इस प्रपोजल को पास करने में इंट्रेस्ट नहीं दिखाया। इसकी वजह से निगम के लिए आगे भी अपनी सीमाओं के विस्तार की प्लानिंग रुक गई। करीब 35 हजार मकान affected

निगम के मुताबिक उसकी मौजूदा सीमाओं से सटे कई एरियाज को खुद में शामिल किए जाने की जरूरत है। इनमें खासतौर से रुहेलखंड यूनिवर्सिटी के पीछे की सारी कॉलोनीज, बीडीए की रामगंगा आवास योजना, करगना-करेली और ट्रांसपोर्ट नगर शामिल हैं। इन एरियाज में करीब 35 हजार से ज्यादा रेजिडेंशियल और कॉमर्शियल मकान हैं। इन्हें टैक्स के तहत लाकर हर साल करोड़ों रुपए जेनरेट कर डेवलेपमेंट में यूज किया जा सकता है।ऐसे होता है सीमा विस्तारनगर निगम की सीमा से बाहर का रूरल एरिया ग्राम समाज की जमीन के तहत आता है। जहां निगम के बजाए नगर पंचायतों पर डेवलेपमेंट की जिम्मेदारी होती है। जब नगर पंचायत किसी एरिया को निगम की सीमा में लाए जाने को लेकर प्रपोजल पास करें और निगम भी इसे अपनी मंजूरी दें दे, तो यह प्रपोजल पास होने के लिए शासन को भेजा जाता है। शासन से हरी झंडी मिलते ही निगम पर अपनी सीमा में विस्तार कर इन एरियाज में बुनियादी सुविधाएं अवेलबेल कराता है। ऑफिशियल्स ने बताया कि सूबे में बने तमाम नगर निगम के गठन के बाद से सिर्फ झांसी और सहारनपुर नगर निगम में ही सीमाओं का विस्तार किया जा सका है। Tax recovery बड़ा अड़ंगा

निगम के लिए अपनी सीमाओं में इजाफा करने में टैक्स रिकवरी की नाकामयाबी सबसे बड़ा रोड़ा बनी है। निगम पिछले कई सालों से अपने तय बजट के मुताबिक आधा टैक्स वसूलने में भी फेल रहा है। साल 2013-14 के लिए निगम ने अपने हाउस टैक्स का बजट 12 करोड़ तय किया था, लेकिन 30 सितंबर तक पहली छमाही में टैक्स डिपार्टमेंट सिर्फ 3 करोड़ 20 लाख की ही वसूली कर सका। शहर में ही पूरा टैक्स वसूलने में हांफ रहे निगम के लिए सीमा विस्तार कर नए टैक्स पेयर से रिकवरी करा पाना कांटों भरी राह जैसा है।26 सालों से tax revised नहीं
निगम की नियमावली में मिनिमम हर पांच साल में एक बार टैक्स रिवाइज्ड होना जरूरी है। इससे नई दरों पर लागू टैक्स से पŽिलक को ज्यादा सुविधाएं दी जा सकें। लेकिन नगर निगम बरेली में 1987 से एक बार भी टैक्स रिवाइज्ड नहीं किया जा सका है। शुरू में कुछेक बार टैक्स रिवाइज्ड की जो कोशिशें हुई, वह भी बोर्ड की बैठक में पास न हो सकी। इससे शहर के हजारों मकान 26 साल पुरानी दरों पर ही टैक्स देकर मजे काट रहे हैं। अधिकारियों के मुताबिक 1998 में आए एक शासनादेश के तहत टैक्स रिवाइज्ड न होने पर निगम पुराने टैक्स के तहत रेजिडेंशिंयल मकानों पर 25 परसेंट और कॉमर्शियल पर 50 परसेंट टैक्स की बढ़ोतरी कर सकता है। पर जिम्मेदार यह भी लागू न करा सकें। इसकी वजह से निगम को मौजूदा समय में पांच गुना कम टैक्स का नुकसान झेलना पड़ रहा है।

Posted By: Inextlive