Case 17 जून को कैंट थाने के बभिया में लूट की सूचना पर एसओ के नेतृत्व में पुलिस पहुंची और आरोपी छोटू के पिता कृष्णपाल को जीप में बैठा लिया. आरोपी ने अपने पिता को छुड़ाने के लिए एसओ के ड्राइवर अनिरुद्ध की गोली मारकर हत्या कर दी.Case 29 जून को भुता में लूट कर भाग रहे बदमाशों को पकडऩे का मुंशी रामपाल ने प्रयास किया. उन्होंने बदमाशों का पीछा किया. यहां भी पुलिस चकमा खा गई और बदमाशों की गोली का निशाना रामपाल बन गया. Case 3सहारनपुर में लूटकर भाग रहे बदमाशों को पकडऩे के लिए सीओ उमेश कुमार यादव अपनी टीम के साथ चिकारा एरिया में पहुंच गए. यहां पर बदमाशों ने गनर राहुल ढाका की गोली मारकर हत्या कर दी लेकिन बदमाश पुलिस का निशाना नहीं बन सके. Case 4प्रतापगढ़ के कुंडा में प्रधान के मर्डर के मामले में सीओ जिया-उल-हक अपनी टीम के साथ पहुंच गए. यहां पर सीओ की गोली मारकर हत्या कर दी गई लेकिन पुलिस कुछ भी नहीं कर पाई. इस मामले ने काफी तूल पकड़ा. Bareilly : बदमाश पुलिस पर भारी पड़ते जा रहे हैं. हाल ही में हुईं घटनाएं तो इसी तरफ इशारा कर रही हैं. बभिया कांड हो या फिर उससे पहले सिपाही प्रदीप को गोली मारकर घायल करने का मामला. गोली चलाते वक्त बदमाशों का निशाना नहीं चूकता. यही नहीं वे आसानी से पुलिस को चकमा देकर भाग निकलते हैं. वहीं एक भी बदमाश जवाबी फायरिंग में पुलिस की गोली का निशाना नहीं बनता है. कहीं न कहीं पुलिस खुद ही इसके लिए जिम्मेदार है. पुलिसवालों के जंग खाते हथियार जरूरत के टाइम उनका धोखा देना कई बार सामने आ चुका है. यही नहीं उनकी फायरिंग की ट्रेनिंग भी पूरी नहीं होती है. इन सभी वजहों से पुलिस ऐन मौके पर अपना काम करने से चूक जाती है.


गाड़ी और pistol का धोखाबरेली में बदमाश पुलिस पर हावी होते जा रहे हैं। बभिया कांड इसका जीता-जागता उदाहरण है। यहां पुलिस पर बदमाश ऐसे भारी पड़े कि सिपाही अनिरुद्ध को जान गवांनी पड़ी। इस दौरान पुलिस की जीप ने दगा दे दिया। सिपाही को गोली लगने के बाद पुलिस ने फायरिंग की पर एक भी निशाना बदमाशों को नहीं लगा। भगवतीपुर गांव में भी ऐसा ही हुआ। मुठभेड़ के दौरान पुलिस को नाकामी हासिल हुई क्योंकि पुलिस की पिस्टल ने धोखा दिया। नहीं होती पूरी firing


मुठभेड़ में निशाना ना चूके इसलिए पुलिसवालों को फायरिंग की ट्रेनिंग दी जाती है। हालांकि रिसोर्सेज की कमी से ये ट्रेनिंग पूरी नहीं हो पाती। बरेली पुलिस ने लास्ट ईयर भी निर्धारित फायरिंग पूरी नहीं की। इस साल फायरिंग की ट्रेनिंग ही नहीं हुई। जानकारी के मुताबिक, लास्ट ईयर सिविल पुलिस की करीब 20 परसेंट और आम्र्ड पुलिस की करीब 50 परसेंट ही फायरिंग हो सकी। किसको-कितनी firing

आम्र्ड और सिविल पुलिस के लिए फायरिंग की अलग-अलग ट्रेनिंग होती है। आम्र्ड पुलिस को सालाना 100 परसेंट फायरिंग करना होती है। जबकि सिविल पुलिस को इसका वन थर्ड करना होता है। सिविल पुलिस की तीन साल में एक महीने की सीईआर ड्यूटी लगती है। एक एसआई को फायरिंग के दौरान करीब 40 राउंड पिस्टल या रिवॉल्वर से फायरिंग करनी होती है। सिपाही को 25-35 राउंड फायरिंग करनी होती है। इसकी संख्या हर साल पुलिस हेडक्वार्टर से निर्धारित की जाती है। नहीं मिल पाते बटआदेश तो हर साल पूरी फायरिंग कराने का है लेकिन कुछ ऐसा हो नहीं पाता। मुख्य वजह फायरिंग के लिए बट ना मिल पाना है। पुलिस के पास अपना फायरिंग ग्राउंड कैंट एरिया में है लेकिन इसका एरिया कम है। यहां पर सिर्फ पिस्टल व रिवॉल्वर से फायरिंग हो सकती है। रायफल और एके 47 की फायरिंग के लिए बड़े ग्राउंड की जरूरत होती है। इसके लिए पुलिस को सेना से संपर्क करना होता है। सेना से बट तब ही मिलती है, जब वहां खाली होते हैं।Cartridge और staff कम

अक्सर पीएचक्यू से फायरिंग के लिए सफिशिएंट कारट्रेज नहीं मिल पाते हैं। स्टाफ भी कम है। इस वजह से पुलिसमेन ज्यादातर एक्स्ट्रा ड्यूटी में लगे रहते हैं। वे सीईआर के लिए आ ही नहीं पाते। आते भी हैं तो कई बार छुट्टी पर चले जाते हैं। इस साल अभी तक फायरिंग के लिए पीएचक्यू से कारट्रेज ही प्रोवाइड नहीं हुए हैं। वहीं कुंभ में पुलिस की ड्यूटी की वजह से स्टाफ भी कम ही रहा। वहीं पिस्टल और रिवॉल्वर को हमेशा होल्सटर में लगाकर रखना चाहिए। अधिकांश पुलिसकर्मी कमर में बिना होल्सटर के ही इसे लगाते हैं। इसकी वजह से हथियार में डस्ट चली जाती है और वह जाम हो जाते हैं।ग्लॉक पिस्टल से उठा भरोसाग्लॉक पिस्टल से अब पुलिसकर्मियों का भरोसा उठता जा रहा है। मौके पर ये अक्सर धोखा दे जाती हैं। भगवतीपुर गांव में छोटू से पुलिस मुठभेड़ के दौरान पुलिसकर्मी की ग्लॉक पिस्टल मिस कर गई थी। भगवान का शुक्र था कि उसे आरोपियों की गोली नहीं लगी। अब सिपाही ने उस पिस्टल को आर्मरी में जमा करा दिया है।टाइम पर नहीं होती सफाई
हथियारों की टाइम पर सफाई ना होने से ये मौके पर दगा दे जाते हैं। पुलिस के हथियार पुलिस लाइन स्थित आर्मरी व थानों में रखे जाते हैं। पुलिस लाइन से हथियार आम्र्ड पुलिस व सीईआर पर ड्यूटी करने वाले पुलिसवालों को उपलब्ध कराए जाते हैं। थानों में ड्यूटी करने वालों को हथियार थानों से ही उपलब्ध कराए जाते हैं। वैसे तो हथियारों की सफाई डेली होनी चाहिए लेकिन यहां सालों तक सफाई नहीं होती। हालांकि पुलिस लाइन में हथियारों की सफाई तो की जाती है। यहां इसके लिए पुलिसवालों की ड्यूटी तक लगाई गई है पर थानों में इनकी सफाई नहीं होती। जिस पुलिसकर्मी को हथियार दिया जाता है, सफाई की जिम्मेदारी उसकी ही होती है। कोई कमी दिखे तो आर्मरी से संपर्क कर हथियार की मरम्मत करानी चाहिए।'पुलिस का निशाना ठीक रहे इसके लिए सालाना फायरिंग कराई जाती है। फायरिंग 31 मार्च तक पूरी करानी होती है। लास्ट ईयर किन्हीं कारणों से फायरिंग पूरी नहीं हो सकी। इस साल पूरी फायरिंग कराई जाएगी। इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है। 'त्रिवेणी सिंह, एसपी सिटी बरेली

Report By-anil kumar

Posted By: Inextlive