Gorakhpur : भोजपुरी सिनेमा में कोई मापदंड तय नहीं है इसलिए सिनेमा के मूल्यों में गिरावट आ रही है. कोई भी व्यक्ति यहां पर डायरेक्टर और एक्टर बन जाता है. पैसा हो तो हीरो बनना आसान है इसलिए भोजपुरी सिनेमा अपने खास दर्शक वर्ग से बाहर नहीं निकल पा रहा है. यह कहना है करीब 30 भोजपुरी फिल्मों में म्यूजिक कंपोज कर चुके गुणवंत सेन का वेंस्डे को अपनी अगली फिल्म 'तोहरा नजरिया में के बा' के सिलसिले में सिटी में आए थे.

राजस्थान से लेकर मुंबई तक तय किया सफर
राजस्थान के रहने वाले म्यूजिक डायरेक्टर गुणवंत सेन की पूरी फैमिली सिनेमा से जुड़ी है। दिलीप सेन, ललित सेन, समीर सेन और भतीजे सोहेल सेन भी संगीत निर्देशन करते हैं। तानसेन से संगीत की बारीकियां सीखने के बाद बचपन में गुणवंत मुंबई आ गए। बचपन से रगो में म्यूजिक दौड़ता था इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। रवि किशन की फिल्म बाबुल प्यारे से भोजपुरी सिनेमा में संगीत का सफर शुरू हुआ।
भाषाओं के बंधन से मुक्त है म्यूजिक
भोजपुरी की बदौलत गुणवंत सेन को तेलगू फिल्म में काम का मौका मिला है। गुणवंत सेन का कहना है कि राजस्थानी होने के बावजूद भोजपुरी सिनेमा का म्यूजिक कंपोज करने में कोई दिक्कत नहीं हुई। अब तेलगू फिल्म मिली है तो वहां भी जमकर काम करेंगे। संगीत को भाषाओं की सीमा में नहीं बांधा जा सकता है।
मौलिकता के साथ फोक को दें तरजीह
सिंगर का एलबम हिट होते ही उसके गानों की कॉपी शुरू हो जाती है, कॉपी होने से तरह-तरह के आरोप लगते रहते हैं। भोजपुरी की मौलिकता भी खो रही है इसलिए अश्लीलता से परे मौलिकता और फोक को ध्यान में रखकर गाने बनाने की जरूरत है। भोजपुरी के दर्शक जागरूक हो गए है, झांसा देकर ज्यादा दिनों तक दुकानदारी नहीं चल पाएगी।

 

report by : arun.kumar@inext.co.in

Posted By: Inextlive