जल जाएंगे जंगल, तब जागेंगे अफसर
- जिले के जंगलों में आग बरपाने लगी कहर
- सुरक्षा के इंतजाम न होने से हर साल लगती आगGORAKHPUR: गर्मी का मौसम शुरू होने के पहले जंगलों में आग का कहर शुरू हो गया है। जिले के जंगलों में हर साल लगने वाली आग से निपटने का कोई ठोस उपाय नहीं है। कुसम्ही जंगल में आग से हर साल अफरा-तफरी मचती है। दो ओर से जंगलों से घिरे एयरफोर्स और एयरपोर्ट के लिए खतरा बढ़ जाता है। बुधवार को जंगल रामगढ़ बीट में तुर्रा नाला के पास लगी आग को बुझाने में दो घंटे से अधिक का समय लग गया था। वन कर्मचारियों, पब्लिक और अन्य की मदद से आग को काबू किया जा सका। आग लगने के बाद एक बार फिर जंगलों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। उधर, वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मौजूदा संसाधनों से जंगल को सुरक्षित रखा जाता है। जागरुकता के अभियान भी चलाए जाते हैं ताकि जंगलों को आग से सुरक्षित रखा जा सके।
हर साल आग से मचती तबाहीजाड़े के बाद पतझड़ से लेकर बरसात के शुरू होने तक जंगलों में आग लगने की घटनाएं होती हैं। इनमें सबसे ज्यादा घटनाएं कुसम्ही जंगल में होती हैं। जंगल में पब्लिक की आवाजाही होने से यहां हर साल कम से कम तीन-चार बार आग लगती है। कुसम्ही जंगल के बीच रास्ता होने से अक्सर लोग बीड़ी, सिगरेट पीकर पत्तियों में फेंक जाते हैं। सूखी पत्तियों का साथ पाकर मामूली सी चिंगारी भड़क उठती है। बुधवार शाम रामगढ़ बीट में तुर्रा नाला के पास अचानक आग लग गई। हवा के साथ आग के बढ़ने पर लोगों ने शोर मचाया। वन कर्मचारियों को इसकी सूचना दी गई। लोगों की मदद से आग को काबू किया गया। फायर ब्रिगेड की गाड़ी को बुलाया गया। इसमें दो घंटे का समय गुजर गया। पूर्व में जंगल में अगलगी की घटनाओं को काबू करने में एयरफोर्स की मदद लेनी पड़ी है। वर्ष 2016 में एक हफ्ते के भीतर सात बार आग लगी थी। इसके बाद से जंगलों की सुरक्षा को लेकर प्लान तैयार किया जा रहा है।
इन वजहों से लगती आग - जंगल में सिगरेट, बीड़ी जलती हुई फेंक देने से। - जंगल के आसपास भोजन पकाने, पूजापाठ के लिए आग जलाने। - ताल के किनारे मछली भूनकर आग को जलता हुआ छोड़ दिया जाता है। - जंगल में पेड़ों की अवैध कटान के सबूत मिटाने के लिए तस्कर आग लगा देते हैं।- जंगल से गुजरने वाली पब्लिक में जागरुकता और सुरक्षा की जानकारी का भारी अभाव।
वन मंत्रालय की गाइड लाइन - गर्मी के महीनों में जंगल की निगरानी के लिए पर्याप्त कर्मचारी रखे जाने चाहिए। - घास-फूस को जलाने के लिए तय समय को नियमित किया जाना जरूरी होता है। - वन विभाग के कर्मचारियों को वायरलेस सिस्टम से लैस किया जाना चाहिए। - जंगलों में फायर वाचर नियुक्त किए जाने चाहिए। - आसपास की पब्लिक को जागरूक कर उनकी मदद ली जानी चाहिए। - पेट्रोलिंग कर्मचारी अपने मोबाइल और वायरलेस हैंडसेट को हरदम चालू रखें। - रेंज में वन दरोगाओं और फॉरेस्ट गार्ड की टीम बनाकर जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए। - जंगल की निगरानी के लिए वॉच टॉवर का निर्माण कार्य हो जाना चाहिए। - आग बुझाने के लिए फायर टेंडर और छोटी गाडि़यां वन विभाग में उपलब्ध कराई जाएं। पहले की घटनाएं 14 फरवरी 2018: कुसम्ही जंगल के रामगढ़ बीट में अचानक आग से अफरा-तफरी, दो घंटे में आग को काबू किया गया। 01 अप्रैल 2017: रामगढ़ बीट में आग से अफरा-तफरी मची रही। वन कर्मचारियों ने पब्लिक की मदद से आग को काबू किया।30 अप्रैल 2016: कुसम्ही जंगल के रजही बीट में आग लगी। एयरफोर्स के वाटर टैंकर से जवानों ने आग बुझाई।
07 अप्रैल 2016: कैंपियरगंज के मोहनाग, भौराबारी और बइसी बीट में आग लगने पर गांव खाली कराए गए। तीन किमी तक आग फैली रही। वर्जन जंगलों में आग की घटनाएं रोकने के लिए उपाय किए जा रहे हैं। लोकल पब्लिक संग मीटिंग कर मदद मांगी जाएगी। जो भी संसाधन मौजूद हैं उनकी मदद से आग रोकने का प्रबंध किया जाता है। - डीएन पांडेय, डिप्टी रेंजर