- शहर में गंदगी का दाग साफ करने में फिसड्डी साबित हो रहा नगर निगम

- चार जनवरी से होना है स्वच्छता सर्वेक्षण का काम

- सुस्त पड़े डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन, कूड़ा निस्तारण के काम

GORAKHPUR: स्वच्छता सर्वेक्षण में टॉप करने का ख्वाब देखने वाला गोरखपुर नगर निगम, इस बार भी फिसड्डी ही साबित होने वाला है। ये हम नहीं कह रहे, शहर में डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन और कूड़ा निस्तारण की सुस्त रफ्तार बयां कर रही है। ये हाल तब है जब स्वच्छता सर्वेक्षण में महज तीन महीने का समय बचा है। पिछले सर्वेक्षण में गोरखपुर पांच से दस लाख की आबादी वाले 425 शहरों में 226वें पायदान पर था। वहीं, प्रदेश के 64 शहरों में सिटी को 28वें रैंक हासिल हुई थी। अगले साल चार जनवरी से नया सर्वेक्षण होना है। सफाई व्यवस्था के नाम पर हर साल तकरीबन पचास करोड़ रुपए खर्च होते हैं। फिर भी शहर के ज्यादातर वार्डो में सफाई व्यवस्था बदहाल ही नजर आ रही। ऐसे हालातों में कह पाना मुश्किल ही है कि स्वच्छता रैंकिंग में गोरखपुर की स्थिति ज्यादा सुधर पाएगी।

नहीं लगा सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट

शहर के कचरे को व्यवस्थित करने के लिए सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की योजना 12 साल पहले 2006 में बनी थी। 30 करोड़ रुपए की लागत वाली इस योजना को 2012 में पूरा होना था। कचरे का प्रबंधन कर उससे बिजली उत्पादन भी करना था। कूड़ा समेटने और प्लांट बनाने का जिम्मा अलग-अलग कंपनियों को दिया गया था। लेकिन निगम अधिकारियों को प्रोजेक्ट के लिए जमीन तलाशने में चार साल लग गए। साल 2010 में जंगल बहादुर अली में 11.567 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित कर निर्माण के लिए जल निगम को सौंपा गया। जिसे अभी तक धरातल पर नहीं उतारा जा सका है। हालांकि जल निगम ने 2010 में काम शुरू कर दिया था लेकिन बारिश के कारण इसे बंद करना पड़ा। उसके बाद से योजना ठंडे बस्ते में है।

डेली निकलता 605 मीट्रिक टन कूड़ा

शहर से डेली 605 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है। लेकिन कूड़े के निस्तारण के लिए निगम के पास कोई ठोस उपाय नहीं है।

सफाई के लिए तैनात हैं 2725 कर्मचारी

शहर में सफाई व्यवस्था के लिए कुल 2725 कर्मचारी तैनात हैं। इनमें 725 नियमित एवं 2000 आउटसोर्सिग पर रखे गए हैं। कूड़ा उठाने के लिए 150 मैजिक, 225 हाथ ठेला है।

गढ्डा है सबसे बड़ा रोड़ा

सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट प्रोजेक्ट के लिए ली गई जमीन गड्ढे में होने के कारण बरसात के समय तीन माह यह जमीन पूरी तरह पानी में डूबी रहती है। प्रोजेक्ट स्थल तक पहुंचने के लिए अभी रास्ते का निर्माण नहीं हो सका है। जिससे कूड़ा लदे वाहन वहां तक नहीं पहुंच पाते।

इधर-उधर गिराया जा रहा कूड़ा

शहर में डेली निकलने वाले 605 मीट्रिक टन कूड़े को लो लैंड, खाली प्लॉटों, गड्ढों, बंधों से लेकर राष्ट्रीय राजमार्गो तक गिराया जा रहा है। कूड़े को लेकर सफाई कर्मियों और लोगों के बीच विवाद भी हो जाता है।

डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन में भी फेल

नगर निगम कचरा प्रबंधन एवं डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन में फेल है। नगर निगम की कोशिशों के बावजूद सभी 70 वार्डो में डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन नहीं हो रहा है। 15 वार्डो में ही ये सर्विस चल रही है।

कई तरह के हैं कचरे

घरेलू कचरा

घरों की रोजाना सफाई के दौरान धूल-मिट्टी के अलावा कागज, गत्ता, कपड़ा, प्लास्टिक, लकड़ी, धातु के टुकड़े, सब्जियों व फलों के छिलके, सड़े-गले पदार्थ, सूखे फूल, पत्तियां कचरे के रूप में निकलता है। समारोह व पार्टियों में इनकी मात्रा अधिक हो जाती है। इधर-उधर फेंके जाने से संक्रामक रोगों का खतरा रहता है।

औद्योगिक कचरा

गीडा के साथ छोटे-बड़े उद्योग व कारखानों से रोजाना बड़ी मात्रा में कचरा एवं अपशिष्ट पदार्थ निकलता है। इनमें धातु के टुकड़े, रासायनिक पदार्थ अनेक विषैले पदार्थ, तैलीय, अम्लीय तथा क्षारीय पदार्थ राखा आदि शामिल हैं।

बायो मेडिकल कचरा

सरकारी अस्पतालों व नर्सिग होम से निकलने वाली रूई, पट्टी, प्लास्टर, ग्लूकोज की बोतलें, एक्सपायरी दवाएं, रैपर, एक्सरे प्लेट, मानव अंग आदि अपशिष्ट मेडिकल कचरा में आते हैं। इनके भी निस्तारण के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं।

इलेक्ट्रॉनिक कचरा

बदलते दौर में ई-कचरा एक बड़ी समस्या बन गया है। खराब और पुराने टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से निकलने वाले कचरे जलाकर नष्ट किया जा रहा है, जिससे डायोक्सिन और फ्यूरान जैसे रसायन निकलते हैं जो पर्यावरण और सेहत के लिए बेहद हानिकारक हैं।

Posted By: Inextlive