टीबी के आंकड़े जुटाने में ही 'खांसने' लगा विभाग
- जिले के 32 हॉस्पिटल में सिर्फ 22 से मिलता आंकड़ा, बाकी के सामने विभाग लाचार
- जिले में टीबी के कुल मरीजों की संख्या से खुद विभाग ही अनजान - इस वर्ष जिला अस्पताल में 1297 नए मरीज पहुंचे इलाज कोGORAKHPUR: टीबी नियंत्रण की नई नीति के तहत स्वास्थ्य विभाग सरकारी अस्पतालों के साथ ही प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने वाले टीबी रोगियों का आंकड़ा जुटाने में लगा है। जिला अस्पताल में इस वर्ष टीबी के 1297 नए मरीज पहुंचे हैं। वहीं कुल 32 प्राइवेट अस्पतालों में 22 में इलाजरत टीबी रोगियों की संख्या से ही विभाग अपेड है। इनमें 24 मार्च 2015 से अब तक तीन हजार टीबी के मरीज मिले हैं। वहीं 10 अस्पताल विभाग को आंकड़ा ही नहीं देते। इससे जिले में टीबी रोगियों की वास्तविक संख्या से खुद विभाग ही अनजान बना हुआ है। जाहिर है कि इस कोशिश से तो इलाके को टीबी मुक्त नहीं किया जा सकता।
नई नीति भी काम की नहींरिवाइज्ड नेशनल ट्यूबरक्यूलॉसिस कंट्रोल प्रोग्राम (आरएनटीसीपी) के तहत टीबी को नियंत्रित करने के लिए जिला क्षय रोग विभाग में पहले भी हेल्थ सेंटर खोले गए थे। वहां दवा नि:शुल्क देने की कवायद तेज की गई थी लेकिन योजना सफल नहीं हुई। इसके बाद नई नीति तैयार की गई। तय हुआ कि निजी डॉक्टरों से इलाज करा रहे टीबी मरीजों के आंकड़ें जुटाए जाएं। पब्लिक प्राइवेट मिक्स के प्रभारी का कहना है कि टीबी के लिए बराबर अभियान चलते रहे हैं लेकिन बीच में ट्रेनिंग होने की वजह से अभियान कुछ दिनों के लिए प्रभावित हो गया था। मरीजों का आंकड़ा एकत्र करने के बाद उनके घर जाकर उनकी निगरानी की भी जिम्मेदारी है। जिसे बखूबी निभाई जाती है। उन्हें नियमित दवाइयां उपलब्ध कराई जाती हैं।
इसलिए जुटा रहे आंकड़ा टीबी मरीज के बीच में ही दवा छोड़ देने से एमडीआर टीबी (मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट ट्यूबरक्यूलॉसिस) का खतरा बढ़ जाता है। मरीजों की से एमडीआर के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इसलिए प्राइवेट अस्पतालों से भी इलाज कराने वाले मरीजों का आंकड़ा जुटाया जा रहा है। आंकड़ा एकत्र करने और मरीजों की देखभाल करने के लिए वालंटियर लगाए गए हैं। यह वालंटियर प्राइवेट डॉक्टर्स के पास जाकर मरीजों की पूरी डिटेंल्स ढूंढ़ने और दवा छोड़ने वालों को चिन्हित करते हैं। ये यह भी पता करते हैं कि टीबी मरीज के घर किसी अन्य मेंबर्स या पड़ोसी तो बीमारी से ग्रसित नहीं है। सिर्फ 35 स्टाफ के भरोसे कामटीबी नियंत्रण को लेकर क्षय रोग विभाग के पास सिर्फ 35 हेल्थ कर्मी हैं। इनमें एटीएस 20, एसटीएलएस 9 और सिटी के लिए हेल्थ वालंटियर 6 हैं। इतने कम एंप्लाइस से जिले में टीबी के पेशेंट्स तलाश पाना नामुमकिन साबित हो रहा है। जो प्राइवेट अस्पताल आंकड़ा नहीं दे रहे हैं, विभाग उनके खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं कर पा रहा।
2015 2016 (27 जून तक) गोरखपुर 446 124 बांसगांव 131 44 कैम्पियरगंज 368 85 गोला 206 52पिपराइच 290 77
सहजनवां 313 86 सरदार नगर 198 57 उरूवा 226 66 मेडिकल कॉलेज 611 150 बड़हलगंज 182 49बेलघाट 128 44
भटहट 177 61 ब्रम्हपुर 141 40 जंगल कौडि़या 141 45 गगहा 118 36 कौड़ीराम 152 46 खोराबार 155 50 पाली 141 50 पीपरौली 239 82 चरगांवा 174 53 (सभी प्राइवेट अस्पताल) जिला अस्पताल- 4587- 1297 वर्जन प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज करा रहे टीबी के पेशेंट्स की तलाश जारी है। पीपीएम वालिंटियर उन्हें ढूंढ रहे हैं। काफी मरीज भी पाए गए हैं। इसकी रिपोर्ट प्रतिमाह संबंधित विभाग को दी जाती है। - डॉ। पीके मिश्रा, जिला क्षय रोग अधिकारी