लखनऊ (ब्यूरो)। टीबी से हर साल देश में करीब पांच लाख लोग दम तोड़ देते हैं। यह मौत टीबी के साथ अन्य बीमारियों से होती हैं। टीबी से इम्युनिटी कमजोर होते ही एचआईवी, डायबिटीज व कई अन्य बीमारियों के साथ मानसिक समस्याएं भी घेर लेती हैं। टीबी की पुष्टि होते ही अन्य जरूरी जांचें कराकर खतरे का पता लगाना जरूरी है, ताकि उच्च जोखिम वाले मरीजों का खास ख्याल रखकर जीवन बचाया जा सके। यह जानकारी वल्र्ड टीबी डे पर केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के एचओडी प्रो। सूर्यकांत ने दी।

ये समस्याएं हो सकती हैं

प्रो। सूर्यकांत ने बताया कि टीबी के साथ कुपोषण, हाई बीपी, पैरों में सूजन, रेस्परेटरी रेट, ब्लड शुगर, हीमोग्लोबिन, पल्स रेट, चेस्ट एक्स-रे, ऑक्सीजन सेचुरेशन और बॉडी मास इंडेक्स का असामान्य होना, एचआईवी, बलगम में खून और असामान्य तापमान जैसी असामान्यताएं स्थिति को गंभीर बना सकती हैं। इसलिए टीबी की पुष्टि के होते ही इन सब की जांच करवाना भी जरूरी है। इससे यह पता लगाया जा सकता है कि मरीज सामान्य टीबी की दवाओं से ठीक हो जाएगा या उसे अतिरिक्त देखभाल की जरूरत है।

35.8 फीसदी उच्च जोखिम वाले

डॉ। सूर्यकांत का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग ने अक्टूबर 2022 से प्रदेश के लखनऊ, कानपुर, बाराबंकी और उन्नाव के उच्च जोखिम वाले एक-एक क्षेत्रों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इसकी पहल की है। चार जिलों में चिन्हित चार केंद्रों पर रजिस्टर्ड 639 टीबी मरीजों में 229 यानि 35.8 प्रतिशत मरीज विभिन्न मानकों के आधार पर उच्च जोखिम में पाए गए। इनमें से भी 14 टीबी मरीजों की स्थिति गंभीर होने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया। आंकड़ों के मुताबिक, लखनऊ के ठाकुरगंज टीबी अस्पताल में 204 में से 103, कानपुर के उर्सला अस्पताल में 146 में से 44, बाराबंकी के जिला टीबी अस्पताल में 156 में से 56 और उन्नाव के जिला टीबी अस्पताल में 133 में से 26 टीबी मरीज उच्च जोखिम वाले मिले।

82.1 फीसदी में कम वजन मिला

वहीं, 229 उच्च जोखिम वाले टीबी मरीजों में से 188 यानि 82.1 प्रतिशत में वजन की कमी मिली और आधे से अधिक मरीजों में न्यून बाडी मॉस इंडेक्स मिला। इन टीबी मरीजों में कई तरह की शारीरिक असामान्यता भी पायी गयीं। अति गंभीर मरीजों को जिला स्तरीय अस्पताल में भेजा जाता है। जहां किसी भी तरह की विषम परिस्थिति को संभाला जा सके। मध्यम रूप से गंभीर मरीजों को सीएचसी-पीएचसी और हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर से संबद्ध कराया जाता है। सामान्य मरीजों की देखभाल पर नजर रखी जाती है। पायलट प्रोजेक्ट के बाद इन जिलों के सभी टीबी यूनिट पर ट्रेनिंग दी जा चुकी है। जहां से सभी टीबी मरीजों की जांच की जाएगी और फॉलोअप किया जायेगा। निकट भविष्य में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर को भी ट्रेनिंग देकर मरीजों की जांच और फॉलोअप का काम लिया जायेगा।