ढेरों मेडल दर्जनों इंटरनेशनल प्लेयर्स देने वाले गोरखपुर में ही हॉकी का हाल सही नहीं है. मेहनत और कोशिशों से सींची गई यह हॉकी की नर्सरी अब मुरझाने लगी है.


गोरखपुर (ब्यूरो)।ऐसा नहीं है कि अब इसका कुछ नहीं हो सकता है। बल्कि अगर कुछ कदम आगे बढ़ाए जाएं और हॉकी खेलने वालों को भी वह सुविधाएं, वह सम्मान मिले, जो क्रिकेट को मिलता है तो हॉकी की भी मुरझा रही नर्सरी फिर से लहलहा उठेगी। हॉकी की हालत को लेकर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने अपने स्पेशल कैंपेन 'हॉकी को हक दोÓ में मौजूदा समय की हकीकत से रूबरू कराया। इस कड़ी में शहर के रिनाउंड लोगों के साथ ही इंटरनेशनल प्लेयर्स का जब दिल टटोला गया तो उन्होंने हॉकी को जीवन देने के लिए बेबाकी से अपने ख्याल रखे।स्कूल से बढ़ाई जाए हॉकी


हॉकी की दशा और दिशा को सही करने के लिए सबसे पहले जरूरत है कि स्कूल लेवल पर ही हॉकी को जिंदा किया जाए। हर स्कूल में यह जरूरी हो कि वह नेशनल गेम हॉकी को प्रमोट करें और उसके लिए टीम बनाएं। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में भी हॉकी की टीम बने, जिसमें से जिले और स्टेट की टीम का सेलेक्शन किया जाए। हॉकी से जुड़े एक्सपीरियंस्ड लोगों की मानें तो जब स्कूल में हॉकी शुरू हो जाएगी तो इस लेवल से हुनर को आसानी से तराशा जा सकेगा। जब यह कॉलेज में पहुंचेंगे तो वहां बेहतर खिलाड़ी मिलेंगे। यूनिवर्सिटी तक पहुंचते-पहुंचते प्रोफेशनल प्लेयर्स की फौज तैयार हो जाएगी।फंड की न हो कमीएक्सपट्र्स का कहना है कि स्कूल से लेकर ब्लॉक और जिले स्तर तक खेल के लिए बहुत फंड आते हैं, लेकिन इनका प्रॉपर इस्तेमाल नहीं हो पाता है। ऐसे में जरूरत है कि पहले तो हॉकी को बढ़ावा देने के रास्ते में फंड की कमी न आए, वहीं दूसरी ओर जो फंड मिल रहे हैं, उनका प्रॉपर इस्तेमाल किया जाएगा। खेल के नाम पर कोरम पूरा न हो और न ही मिलने वाले फंड का मिस्यूज किया जाए। जो सही मायने में हकदार हैं और बेहतर खेल सकते हैं उन्हें इस फंड के जरिए सपोर्ट किया जाए और लगातार महंगे हो रहे इक्विपमेंट्स मुहैया कराए जाएं, जिससे कि नेशनल प्लेयर की राह में सुविधाएं रोड़ा न बनने पाए। खेल से खत्म हो राजनीति

एक्सपट्र्स का कहना है कि खेलों में राजनीति का बोलबाला है। यहां हुकमरान खेल से न होकर पॉलिटिकल बैकग्राउंड से चुने जाते हैं। ऐसे में खिलाडिय़ों का भविष्य गर्त में चला जा रहा है। पॉलिटिकल इंटरफेयरेंस से टैलेंट खत्म हो जाता है। जो सेलेक्शन होते हैं, उसमें एसोसिएशन का दखल होता है और पॉलिटिकल होने की वजह से मनमाने तरीकों से सेलेक्शन किया जाता है। ऐसे में खिलाड़ी तो चुन लिए जाते हैं, लेकिन वह आगे जाकर परफॉर्म नहीं कर पाते, जिसकी वजह से एक हुनरमंद की जगह तो कटती है ही, जिले का नाम और रिकॉर्ड भी खराब होता चला जाता है। इससे बचना है तो यही मायने में खिलाडिय़ों को ही एसोसिएशन में जगह मिले, जिससे कि बेहतर खेल नजर आए।स्कूल में खेल होंगे तो बेहतर खिलाड़ी को शुरू से ही तराशा जा सकेगा। इससे बड़ा होते-होते वह इसमें महारत हासिल कर लेगा। इससे शहर को टैलेंट तो मिलेगा, देश को भी बेहतर खिलाड़ी मिल सकेंगे।- जिल्लुर्रहमान, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयरजो सुविधाएं खिलाडिय़ों को नेशनल लेवल पर सेलेक्ट होने के बाद मिलती हैं, वह सुविधाएं शुरू से ही मुहैया कराएं तो बेहतर खिलाड़ी मिलेंगे। एस्ट्रोटर्फ सबसे जरूरी है, वरना खिलाड़ी आगे जाकर स्टैंड नहीं कर पाते हैं। स्पोट्र्स इक्विपमेंट्स भी मुहैया कराए जाने चाहिए।- दिवाकर राम, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयरहॉकी को स्कूलों से ही शुरू किया जाए, तो इसका बेहतर रिजल्ट नजर आएगा। कुछ स्कूलों को छोड़ दें तो सभी जगह से हॉकी खत्म हो गई है। इसको दोबारा रिवाइव करने की जरूरत है।- गुलाम सरवर, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर

हॉकी को संवारने के फंड जरूरी है। खिलाड़ी बहुत हैं, लेकिन सुविधाओं के अभाव और महंगे हो रहे साजो-सामान की वजह से वह अपना टैलेंट लेकर आगे नहीं बढ़ पाते, इससे नुकसान होता है।- डॉ। त्रिलोक रंजन, सचिव, लक्ष्य स्पोट्र्स एकेडमी

Posted By: Inextlive