GORAKHPUR : डॉक्टर को भगवान कहा जाता है. वह हर बीमारी का इलाज करता है. मगर एक ऐसी 'बीमारी' है जिससे खुद डॉक्टर परेशान है. अगर इस बीमारी का इलाज न हुआ तो लोग डॉक्टर बनना पसंद नहीं करेंगे. यह 'बीमारी' किसी बैक्टीरिया या वायरस का इफेक्ट नहीं बल्कि अधिक पढ़ाई और टाइम ड्यूरेशन का कॉकटेल है. अधिक टाइम ड्यूरेशन होने के कारण ऑलरेडी पहले ही एमबीबीएस का क्रेज यूथ के बीच कम हो रहा है. वहीं अगर एमसीआई के नए रूल 7.5 साल में एमबीबीएस कोर्स को लागू कर दिया गया तो तय है कि मेडिकल का चार्म जो युवाओं के दिल में था खत्म नहीं तो कम जरूर हो जाएगा. 18 साल में वे सुपर स्पेशलिस्ट बनेंगे. वहीं दो से तीन साल पढ़ाई कर उस पीरियड तक एक स्टूडेंट आईटी और इंजीनियरिंग के फील्ड में बादशाह बन चुका होगा. एमसीआई की इस सोच के बाद यह तय है कि रूरल एरिया में डॉक्टर्स की कमी नहीं होगी. मगर क्या ये डॉक्टर सही इलाज कर पाएंगे? क्योंकि सुपर स्पेशलिस्ट और सीनियर डॉक्टर के साथ पीजी में एडमिशन की प्रिपरेशन कर रहे स्टूडेंट भी मानते है कि एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाला स्टूडेंट डॉक्टर जरूर बन जाता है मगर नॉलेज बहुत अधिक नहीं रहता. ऐसे में ये डॉक्टर मैनपावर तो बढ़ा देंगे मगर सही मायने में एक अच्छे डॉक्टर की तरह इलाज नहीं कर पाएंगे. इसी कारण एमसीआई के इस नए रूल से एमबीबीएस स्टूडेंट्स से लेकर पीजी और सीनियर डॉक्टर भी खुश नहीं है.


ऐसे तो 18 साल में बन पाएंगे सुपर स्पेशलिस्टसुपर स्पेशलिस्ट बनने में एक मेडिकल स्टूडेंट को जितना समय लगेगा, उतने में एक स्टूडेंट ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी कर लेगा। एमसीआई के नए रूल लागू होने के बाद एक मेडिकल स्टूडेंट को सुपर स्पेशलिस्ट बनने में करीब 18 साल का समय लगेगा। क्योंकि एमबीबीएस में एडमिशन के लिए जनरल आईक्यू वाला स्टूडेंट कम से कम दो साल प्रिपरेशन करता है। फिर एडमिशन होने के बाद 7.5 साल में उसका एमबीबीएस कोर्स पूरा होगा। नार्मल स्टूडेंट को पीजी में एडमिशन के लिए कम से कम दो साल प्रिपरेशन में लग जाता है। फिर तीन साल पीजी करेगा। फिर प्रिपरेशन के बाद बाद दो साल तक सुपर स्पेशलिस्ट बनने के लिए पढ़ाई करेगा। दो साल नहीं और दो लाख


एमबीबीएस कोर्स का ड्यूरेशन दो साल बढ़ाने के एमसीआई के प्रस्ताव के बाद मेडिकल स्टूडेंट्स में रोष है। पढ़ाई का ड्यूरेशन बढऩे से न सिर्फ उनकी लाइफ के दो साल अधिक लगेंगे बल्कि दो लाख रुपए से अधिक का खर्च बढ़ जाएगा। परेशानी उन स्टूडेंट्स के लिए अधिक है, जो लोन या कर्जा लेकर अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैैं। क्योंकि दो साल बढऩे से न सिर्फ उन्हें अधिक लोन या कर्जा लेना पड़ेगा बल्कि उनकी इनकम का टाइम भी दो साल लेट डिले हो जाएगा। ये होगा नया रूलएमसीआई के नए रूल को अभी पूरी परमीशन नहीं मिली है। अगर इस रूल को परमीशन मिल गई तो एमबीबीएस कोर्स का ड्यूरेशन बढ़ कर 7.5 साल हो जाएगा। जबकि अभी तक एमबीबीएस का कोर्स 5.5 साल का है। पहले एमबीबीएस का कोर्स 4.5 साल का था और इंटर्नशिप एक साल की। जबकि नए रूल के अकार्डिंग एमबीबीएस का कोर्स 4.5 साल का ही होगा, मगर इंटर्नशिप दो साल की होगी। साथ ही सभी मेडिकल स्टूडेंट्स की पोस्टिंग एमबीबीएस कोर्स के दौरान ही एक साल के लिए रूरल एरियाज में होगी। मतलब 7.5 साल बाद ही स्टूडेंट्स पीजी के लिए अप्लाई कर सकेगा। पीजी कोर्स का ड्यूरेशन भी तीन साल का है। एक साल की एक्स्ट्रा इंटर्नशिप मेडिकल स्टूडेंट के लिए ठीक नहीं है। कॉलेज में एडमिशन लेते टाइम हमें सिर्फ साढ़े 4 साल का एमबीबीएस कोर्स और एक साल के इंटर्नशिप के बारे में बताया गया था। सरकार जो भी कर रही है वो सिर्फ अपने वोट बैैंक के लिए कर रही है। अरुण कुमार यादव, मेडिकल स्टूडेंट

एक्स्ट्रा इंटर्नशिप और कम्पल्सरी रूरल पोस्टिंग से मेडिकल स्टूडेंट पर एक्स्ट्रा प्रेशर पड़ेगा। जो स्टूडेंट लोन या कर्जा लेकर मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैैं, उन पर दो साल में करीब दो लाख रुपए से अधिक का लोड बढ़ जाएगा। सत्येंद्र वर्मा, मेडिकल स्टूडेंटनए रूल को लागू नहीं होना चाहिए। जब हमने एडमिशन लिया था, तब एमबीबीएस कोर्स का ड्यूरेशन 5.5 साल था। कोर्स के दौरान ड्यूरेशन कैसे बढ़ाया जा सकता है। खुश्बू सिंह, मेडिकल स्टूडेंटआखिर कितने साल तक हम पढ़ाई करेंगे। अगर एमबीबीएस कोर्स का ड्यूरेशन ही 7.5 साल हो जाएगा तो 12 से अधिक साल लग जाएंगे सुपर स्पेशलिस्ट बनने तक। क्योंकि एमबीबीएस के बाद पीजी की पढ़ाई भी करनी होगी। वैसे भी नया रूल नए बैच के लिए होना चाहिए।प्रियंका सिंह, मेडिकल स्टूडेंटअगर नया रूल लागू हो जाएगा तो गजब हो जाएगा। जितने साल में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी होगी, उतने में दो बार इंजीनियरिंग का कोर्स कंपलीट हो जाएगा। प्रियंका दूबे, मेडिकल स्टूडेंट

अगर एमबीबीएस कोर्स का ड्यूरेशन 7.5 साल हुआ तो स्टूडेंट्स को मेडिकल फील्ड के प्रति क्रेज कम होगा। ऑलरेडी मेडिकल फील्ड में स्टूडेंट्स कम आ रहे है। इस टाइम वे ही स्टूडेंट्स अधिक क्रेज दिखा रहे है, जिनकी फैमिली इस फील्ड से जुड़ी है। सरकार रूरल एरिया में एमबीबीएस स्टूडेंट को भेज कर मैन-पॉवर तो बढ़ा सकती है, मगर उनका नॉलेज बहुत लीमिट में रहता है। इसलिए यह कहना गलत होगा कि इससे रूरल एरिया में स्पेशलिस्ट डॉक्टर की कमी पूरी हो जाएगी। डॉ। वीएन अग्रवाल, सीनियर चेस्ट स्पेशलिस्टएमबीबीएस कोर्स का ड्यूरेशन दो साल बढ़ाने से मेडिकल स्टूडेंट्स को कई तरह की प्रॉब्लम फेस करनी पड़ेगी। अगर नया रूल लागू हुआ तो तय है कि मेडिकल के प्रति स्टूडेंट्स का क्रेज कम होगा। क्योंकि इसके चलते स्टूडेंट्स को साइकोलॉजिकल प्रेशर के साथ फाइनांसियल क्राइसिस से भी जूझना पड़ेगा।डॉ। प्रभु नारायण, ईएनटी सर्जनreport by : kumar.abhishekj@inext.co.in

Posted By: Inextlive