मोबाइल फोन और लैपटॉप का ज्यादा इस्तेमाल आंखों के लिए ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है. इससे आंखों की कोशिकाएं सूख रही हैं और बच्चों की आंखों और रेटिना का साइज घट-बढ़ रहा है.


गोरखपुर (ब्यूरो)।इसकी वजह से छह माह के अंदर ऐसे मरीजों के चश्मों के नंबर में बदलाव करना पड़ रहा है। कोरोना महामारी के बाद यह प्रॉब्लम ज्यादा बढ़ी है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के आई डिपार्टमेंट में हर दिन 23 से 30 पेशेंट इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। इनमें 80 परसेंट बच्चे हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के आई एक्सपर्ट डॉ। रामकुमार जायसवाल ने बताया, मायोपिया और हाइपर मेट्रोपिया के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस बीमारी में बच्चों की आंखों से लेकर पुतलियों की तुलना में घट-बढ़ रहा है। समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होती जाएगी और एक समय ऐसा आएगा कि दिखना एकदम कम हो जाएगा। सूख रहीं आंखों की कोशिकाएं


बताया कि इसकी वजह यह है कि मोबाइल और लैपटॉप पर बच्चों का समय ज्यादा बीत रहा है। रेटिना में मोबाइल और लैपटॉप की रोशनी ऐसा असर डाल रही है कि आंखों के अंदर की कोशिकाएं सूखने लग रही हैं, जिसकी वजह से यह प्रॉब्लम बच्चों में हो रही हैं। बार-बार बदलना पड़ रहा चश्मे का नंबर

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ। कमलेश शर्मा ने बताया कि ऐसे मरीजों के चश्मे के नंबर बार-बार बदलने पड़ रहे हैं। जबकि पहले ऐसी प्रॉब्लम नहीं थी। एक बार अगर किसी को चश्मा लग गया तो कम से एक साल से तीन साल तक चश्मा का नंबर नहीं बदलना पड़ता था। लेकिन अब छह माह के अंदर ही चश्मे का नंबर बदलना पड़ रहा है। बताया कि हाइपर मेट्रोपिया में प्लस और मायोपिया में माइनस नंबर के चश्मे मरीजों को लगाने पड़ रहे हैं। घटा आंखों का साइज आई एक्सपर्ट डॉ। रामकुमार जायसवाल ने बताया, पहले मापोपिया और हाइपर मेट्रोपिया 35 साल से ऊपर के लोगों में देखने को मिलती थी। बताया कि सामान्य आंखों का साइज 20 से 23 मिलीमीटर होता है। जबकि पुतली का साइज 10 से 12 मिलीमीटर होता है। यह साइज तीन वर्ष से लेकर यंगस्टर होने तक का है। बीमारी की बात करें तो 18 से 10 मिलीमीटर आंखों का साइज और 8 से 9 मिलीमीटर पुतलियों का साइज देखने को मिल रहा है। आंखों पर दबाव पडऩे पर मांसपेशियां फैलने और घटने लगती हैं। एक मिमी। आंख बड़ी होने पर चश्मे का दो नंबर आमतौर पर बढ़ता है।केस 1

शाहपुर निवासी कमल कुमार की बेटी 12 वर्षीय शालिनी ने ऑनलाइन क्लास के लिए मोबाइल और लैपटॉप का इस्तेमाल किया। इस बीच वह खाली समय में मोबाइल पर गेम भी खेलती थी। इसकी वजह से उसे नजदीक देखने में प्रॉब्लम शुरू हो गई। टेस्ट में पता चला कि हाइपर मेट्रोपिया की प्रॉब्लम थी। सामान्य आंखों की तुलना में आंखें भी बड़ी हो गईं। प्लस नंबर का चश्मा लगना शुरू हो गया। केस 2रुस्तमपुर निवासी अंशुमान सिंह के बेटे 14 वर्षीय आर्यन ने कोरोना महामारी के दौरान मोबाइल और लैपटॉप से ऑनलाइन क्लास की। इसका असर यह रहा कि उसे आंखों से धुंधला दिखाई देने लगा। बीआरडी में इलाज के लिए गए तो आंख की पुतलियों की साइज बड़ा होने की प्रॉब्लम हुई। डॉक्टर ने माइनस नंबर का नश्मा लगाने की सलाह दी।

Posted By: Inextlive