यहां तो जिम्मेदार ही बर्बाद कर रहे पानी
- सरकारी भवनों में नहीं लगा है वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
- जीडीए और नगर निगम ऑफिस तक नहीं लगा सके सिस्टम - लाखों लीटर पानी हर साल नाले से चला जाता है नदी और ताल में GORAKHPUR: चिराग तले अंधेरा। यह कहावत गोरखपुर महानगर के अधिकारियों पर सटीक बैठ रही है। जिन लोगों पर भूजल स्तर को बढ़ाने और पब्लिक को इसके प्रति जागरूक करने की जिम्मेदारी है, वे ही अपने मकान और ऑफिस में पानी बर्बाद करने में लगे हैं। शहर में ज्यादातर सरकारी भवन बिना वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के हैं। यहां से हर साल हजारों लीटर बारिश का पानी नाले के रास्ते नदी और तालों में पहुंचाकर बर्बाद हो रहा है। गिरते भूजल स्तर और बढ़ती पानी की किल्लत से अधिकारी सबक ना लेकर पुराने आदेश के भरोसे ही चल रहे हैं। कलेक्ट्रेट परिसरयहां कलेक्ट्रेट में ही डीएम और एसएसपी का ऑफिस है। यह ऑफिस लगभग 10 हजार स्क्वायर फीट में है। इस बिल्डिंग की स्थिति यह है कि इसकी छत पर एक बूंद पानी भी अगर गिरा तो वह सीधे नीचे आता है। अगर इसमें वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा दिया जाता तो कम से कम 100 लोगों के लिए एक साल तक पानी की आवश्यकता पूरी हो जाती।
विकास भ्ावन ऑफिसजिले का सबसे महत्वपूर्ण विभाग है। कमिश्नर कार्यालय के बगल में होने के बाद भी यहां पानी को संरक्षित करने का कोई इंतजाम नहीं है। यही वजह है कि इसकी छत पर गिरने वाला पानी नाले से होकर सीधे रामगढ़ताल में चला जाता है। लगभग पांच हजार स्क्वायर फीट में बनी इस बिल्डिंग से हर साल हजारों लीटर पानी बर्बाद हो रहा है। जबकि, ग्रामीण अंचल में पानी को लेकर पिछले दो साल से प्रॉब्लम है। गर्मी में पोखरे सूख जाते हैं और बरसात के समय कम वृष्टि की दशा में बोर तक पानी नहीं देते हैं।
जीडीए ऑफिस शहर में वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लागू करने वाले विभाग के ऑफिस में ही यह सिस्टम नहीं है। स्थिति यह है कि लगभग चार हजार स्क्वायर फीट में बनी इस बिल्िडग का भी पानी सीधे रामगढ़ताल में जा रहा है। अगर जीडीए अपने ऑफिस में ये सिस्टम लगा देता तो यहां से भी लगभग 100 लोगों की एक साल की पानी की जरूरत पूरी हो जाती। लेकिन लगता है जिम्मेदारों को इसकी कोई परवाह ही नहीं है। नगर िनगम ऑफिसशहरी व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी नगर निगम की होती है। निगम जल निकासी की व्यवस्था करता है तो प्यास बुझाने की भी जिम्मेदारी उसी की होती है। यहां की बात करें तो नगर निगम की लापरवाही और मनमर्जी के कारण अभी तक शहर में एक भी घर पर वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है। हद तो ये है कि खुद निगम के ऑफिस में ही यह सिस्टम नहीं लगा है। अगर विभाग चुस्त होता तो शहर में हर साल लाखों लीटर पानी सड़क और नालों में जाने की की जगह भूजल स्तर में इजाफा कर सकता था।
सभी करते हैं सिर्फ बातें शहर में पानी बचाने के लिए एनजीओ और सरकारी संस्थाएं हर माह मीटिंग करती हैं। वहीं, नगर निगम भी पानी बचाने के लिए जागरूकता फैलाने के नाम पर लाखों रुपए खर्च करता है। लेकिन अफसोस इस बात का है कि कोई भी पानी बचाने के इस आसान से तरीके को अपनाने की बात नहीं करता।