Gorakhpur : अगर आप ट्रेन से सफर कर रहे हैं और खुद को सेफ समझते हैं तो इस मुगालते में मत रहिए. अगर आपको लगता है कि जीआरपी और आरपीएफ के भरोसे आप सुरक्षित अपनी मंजिल तक पहुंच जाएंगे तो यह आपकी भूल है. क्योंकि आरपीएफ और जीआरपी के पास पर्याप्त फोर्स ही नहीं है जिसके चलते वह चलती ट्रेन में एस्कार्ट ही नहीं करती है. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर चलती ट्रेन में कोई बड़ी वारदात होती है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा?


आई नेक्स्ट ने लिया जायजा दिल्ली-भागलपुर एक्सप्रेस में डकैती को मद्देनजर रखते हुए थर्सडे को जब आई नेक्स्ट ने गोरखपुर से चलने वाली ट्रेंस में चलने वाले आरपीएफ और जीआरपी के एस्कार्ट का जायजा लिया तो चौंकाने वाला मामला सामने आया। पिछले कई महीने से आरपीएफ द्वारा ट्रेन में एस्कार्ट नहीं की रही है है। वहीं जीआरपी द्वारा कुछ गाडिय़ों में ही एस्कार्टिंग हो रही है। इससे साफ है कि गोरखपुर से चढऩे वाले यात्री पुरी तरह से असुरक्षित हैं। करीब 80 हजार यात्री हैं असुरक्षित


गोरखपुर जंक्शन से रोजाना 28-32 हजार यात्री रिजर्व सीट्स पर सफर करते हैं, जबकि 40-45 हजार यात्री साधारण बोगी में सफर करते हैं। स्टेशन पर सिक्योरिटी को छोड़ दिया जाए तो ट्रेन में यात्री बिलकुल अनसेफ हैं। मानक के अनुरूप न तो जीआरपी स्टाफ चलता है और ना ही आरपीएफ स्टाफ। ऐसा भी नहीं है कि इस बात की जानकारी आरपीएफ और जीआरपी के अधिकारियों को नहीं है, लेकिन चाहकर भी वह कुछ नहीं कर पा रहे हैं।जीआरपी और आरपीएफ के पास नहीं है पर्याप्त फोर्स

अगर आरपीएफ के पास फोर्स की बात करें तो आरपीएफ के पास 1 प्रभारी, 4 एसआई, 6 एएसआई, 29 हेड कांस्टेबल, 64 कांस्टेबल मौजूद हैं। यह सभी जंक्शन पर ड्यूटी करते हैं। करीब 20 हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल की जरूरत है। तब जाकर ट्रेनों में एस्कार्टिंग हो सकेगी। वहीं जीआरपी के पास 1 प्रभारी, 1 एसएसआई, 4 एसआई, 1 एएसआई, 3 हेड कांस्टेबल और 120 कांस्टेबल हैं। जीआरपी के एस्कार्ट की कुछ चुनिंदा गाडिय़ों में ही ड्यूटी लगाई जाती है।चलती ट्रेन में अक्सर हम असुरक्षित महसूस करते हैं, कभी भी कोई घटना हो सकती है। मैने तो बोगी के अंदर चेकिंग करते न तो जीआरपी को देखा है और ना ही आरपीएफ को।अभिषेक कुमार सिंहएक महिला होने के नाते रात के वक्त अक्सर डर बना रहता है। जबकि चलती ट्रेन में आरपीएफ या फिर जीआरपी एस्कार्ट का होना जरूरी है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए महिला फोर्स भी होनी चाहिए।मान्वी सिंह ट्रेन में आरपीएफ और जीआरपी दोनों की ही ड्यूटी होती है, लेकिन दोनों को कभी भी ड्यूटी पर नहीं देखा। जब वह ड्यूटी पर ही नहीं होंगे तो कहां से यात्रियों की सुरक्षा करेंगे। आर.के शाह रात में सबसे ज्यादा डर लगता है। आज तक कभी भी मंैने आरपीएफ की महिला कांस्टेबल नहीं देखा है। जबकि महिला कांस्टेबल होनी चाहिए। प्रॉपर हेल्प लाइन नंबर होने चाहिए।सैंटा

रात के वक्त कुछ गाडिय़ों में आरपीएफ एस्कार्ट करती है। जीआरपी और आरपीएफ दोनों मिलकर अलग-अलग ट्रेनों में एस्कार्ट करते हैं। रहा सवाल यात्रियों की सुरक्षा का तो वह हमारी पहली प्राथमिकता में हैं।आर.के शर्मा, चीफ सिक्योरिटी कमिश्नर, एनई रेलवे हमारे यहां क्राइम का पैटर्न बिलकुल डिफरेंट है। ऐसा नहीं है ट्रेनों में एस्कार्ट नहीं होती है। वर्तमान में 14  ट्रेंस में एस्कार्ट की व्यवस्था है। टाइम टू टाइम ट्रेन में फोर्स बढ़ाई जाती है।वीके सिंह, एसपी जीआरपी गोरखपुर अनुभाग

Posted By: Inextlive