- उलेमा बयां कर रहे हैं रमजान की फजीलत, कुरआन की अहमित भी बता रहे हैं आलिम-ए-दीन

GORAKHPUR: आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने दुनिया को अल्लाह की इबादत का संदेश देकर अल्लाह की नाफरमानी से दूर रहने का पैगाम दिया। अल्लाह की इबादतों में अहम कड़ी बना रोजा। दीन-ए-इस्लाम में होश संभालने से लेकर मरते दम तक अल्लाह के कानून और उसके हुक्मों के मुताबिक जिंदगी गुजारना इबादत है। यह बातें मुफ्ती मो। अजहर शम्सी ने लोगों से शेयर कीं। उन्होंने बताया कि पवित्र कुरआन कहता है कि तुम वह बेहतरीन उम्मत हो, जिसे लोगों के लिए बनाया गया है। तुम्हारा काम है कि तुम लोगों को नेकी का हुक्म दो, बुराई से रोको, अल्लाह पर यकीन रखो।

सबसे ज्यादा ताकीद नमाज की

मुफ्ती अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि हमें मुकद्दस रमजान की कदर करनी चाहिए। दिन में रोजा रखें, पांचों वक्त की नमाज पाबंदी से अदा करें, क्योंकि ईमान के बाद सबसे ज्यादा ताकीद कुरआन व हदीस में नमाज के बारे में आई है। कल कयामत के दिन सबसे पहला सवाल नमाज ही के बारे में होगा। नमाजे तरावीह पढ़ें और अगर मौका मिल जाए तो चंद रकात नमाज रात के आखिरी हिस्से में भी अदा कर लें। रमजान का हर एक पल अल्लाह व रसूल के जिक्र में गुजारें। दरूदो-सलाम खूब पढ़ें।

अहम रात की इबादत के लिए एतिकाफ

मौलाना तफज्जुल हुसैन रजवी ने कहा कि रमजान के आखिरी दस दिनों में एक अहम रात है जिसे लैलतुल कद्र या शबे कद्र के नाम से जाना जाता है। जिसमें इबादत करने को अल्लाह तआला ने हजार महीनों यानी पूरी जिन्दगी की इबादत से ज्यादा अफजल करार दिया है। इसी अहम रात की इबादत को हासिल करने के लिए 2 हिजरी में रमजान के रोजे फर्ज होने के बाद से पैगंबर-ए-आजम हजरत मोहम्मद साहब हमेशा आखिरी अशरे का एतिकाफ फरमाया करते थे। अल्लाह हम सबको इस मुबारक महीने की कद्र करने वाला बनाए और शबे कद्र में इबादत करने की तौफीक अता फरमाए। रमजान के बचे रोजों में खूब इबादत कर अल्लाह को राजी कर लें।

रोजा, नमाज, जकात के जरिए सवाब बटोर रहे हैं रोजेदार

- मुकद्दस रमजान में की गई इबादत व नेकी का सवाब कई गुना बढ़ा कर मिलता है।

- इसीलिए अल्लाह के बंदे रोजा, नमाज, जकात, सदका-ए-फित्र, एतिकाफ आदि के जरिए खूब सवाब बटोर रहे हैं।

- वहीं बंदों द्वारा शबे कद्र की ताक रातों में जागकर खूब इबादत भी की जा रही है।

- कुरआन-ए-पाक की तिलावत मस्जिद व घरों में हो रही है।

- बुधवार को 22वां रोजा खैर के साथ बीता।

- तरावीह की नमाज अदा की जा रही है।

-कोरोना महामारी से हिफाजत की दुआ कसरत से मांगी जा रही है।

- सहरी व इफ्तार के वक्त रौनक बरकरार है।

इमाम अबु अब्दुल्लाह व हजरत किफायत अली का मनाया उर्स

द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र: चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में बुधवार को हजरत इमाम अबु अब्दुल्लाह मोहम्मद इब्ने माजा अलैहिर्रहमां व हिन्दुस्तान की पहली जंगे आजादी के अजीम मुजाहिद हजरत मौलाना सैयद किफायत अली काफी मुरादाबादी का उर्स-ए-पाक मनाया गया। कुरआन ख्वानी, फातिहा ख्वानी व दुआ ख्वानी की गई। हाफजि महमूद रजा कादरी ने कहा कि हजरत इमाम अबु अब्दुल्लाह मोहम्मद इब्ने माजा बहुत बड़े आलिम थे। आपकी 'सुनन इब्ने माजा' हदीस की किताब विश्व प्रसिद्ध है। आपका विसाल 22 रमजान 273 हिजरी को 64 साल की उम्र में हुआ। आपका मजार कजवीन ईरान में है।

जंगे आजादी के सच्चे योद्धा भी

उन्होंने आगे कहा कि हमारी आजादी की बुनियाद में कई शहीदों का ख़ून मिला है उन्हीं में से एक नाम हजरत मौलाना किफायत अली काफी मुरादाबादी का है। जो बहुत बड़े विद्वान होने के साथ ही जंगे आजादी के सच्चे योद्धा भी थे। आपने 1857 की क्रांति में भाग लिया था और उन्हें फांसी की सजा 22 रमजान 1274 हिजरी (6 मई 1858) को दी गई थी। आप इस्लामिक तालीमात के माहिर होने के साथ बहुत बड़े लेखक व कवि भी थे। आपने पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की शान में कई मशहूर नाते पाक लिखीं। जो बहुत प्रसिद्ध है। अंत में इमाम हसन, शारिक, शहाब अली, महबूब आलम ने सलातो सलाम पढ़कर कोरोना वबा से निजात की दुआ मांगी।

Posted By: Inextlive