- नमाज अदा कर गुनाहों की मांगी माफी तलब कर रहे हैं रोजेदार

- मुकद्दस रमजान का तीसरा अशरा आज शाम से होगा शुरु

GORAKHPUR: शबे कद्र के मुतअल्लिक अल्लाह तआला फरमाता है कि बेशक हमनें कुरआन को शबे कद्र में उतारा। शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर है यानी हजार महीना तक इबादत करने का जिस कदर सवाब है उससे ज्यादा शबे कद्र में इबादत का सवाब है। जो आदमी इस एक रात को इबादत में गुजार दे उसने गोया 83 साल 4 माह से ज्यादा वक्त इबादत में गुजार दिया। यह बातें हाफिज सद्दाम हुसैन निजामी ने दीनी किताबों के हवाले से बताई। उन्होंने बताया कि पैगंबर-ए-आजम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया शबे कद्र अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत को अता की है। यह पहली उम्मतों को नहीं मिली। हजरत आयशा रदियल्लाहु अन्हा से मरवी है कि पैगंबर-ए-आजम ने फरमाया शबे कद्र को आखिरी अशरा की ताक रातों में तलाश करो यानी रमजान की 21, 23, 25, 27, 29 में तलाशो।

रात में जागकर करेंगे इबादत

रविवार को 19वां रोजा खैर व बरकत के साथ पूरा हो गया। इबादत का सिलसिला जारी है। नमाज व कुरआन-ए-पाक की तिलावत के जरिए अल्लाह को राजी किया जा रहा है। गुनाहों की माफी मांगी जा रही है। महिलाएं भी खूब इबादत कर रही हैं। बच्चे भी इबादत में पीछे नहीं हैं। मुक़द्दस रमजान का दूसरा अशरा 'मगफिरत' का 3 मई सोमवार की शाम समाप्त हो जाएगा और इसी के साथ तीसरा अशरा जहन्नम से आजादी का शुरु होगा। तीसरे अशरे में शहर की कई मस्जिदों में दस दिनों का एतिकाफ किया जाएगा। वहीं शबे कद्र की तलाश में रमजान की 21, 23, 25, 27 व 29 की रात में जागकर खूब इबादत की जाएगी। साप्ताहिक लॉकडाउन की वजह से मुस्लिम मोहल्लों से चहल पहल गायब है।

नहीं छोड़ना चाहिए एतिकाफ

- मकतब इस्लामियात के शिक्षक कारी मो। अनस रजवी ने बताया कि कोई खास मजबूरी न हो तो रमजान के आखिरी अशरा के एतिकाफ की सआदत हरगिज नहीं छोड़नी चाहिए।

- कम अज कम जिन्दगी में एक बार तो हर मुसलमान को रमजान के आखिरी अशरा का एतिकाफ करना ही चाहिए।

- एतिकाफ के माना है ठहरना या रुकना। मतलब यह है कि सब चीजें छोड़कर अल्लाह की बारगाह में उसकी इबादत पर कमर बस्ता हो कर ठहर या रुक कर पड़ा रहता है।

- उसकी यह धुन होती है कि किसी तरह उसका परवरदिगार राजी हो जाए।

- मस्जिद में अल्लाह के लिए ब नियत एतिकाफ ठहरना या रुकना एतिकाफ है।

- इसके लिए मुसलमान आकिल (अक्ल वाला) होना और नापाक, हैज, निफास से पाक होना शर्त है।

- बुलूग (बालिग) शर्त नहीं। बल्कि नाबालिग जो शऊर रखता है अगर ब नियत एतिकाफ में मस्जिद में ठहरे तो ये एतिकाफ सही है।

- पैगंबर-ए-आजम ने फरमाया जो शख्स रमजान के आखिरी दस दिनों में सच्चे दिल के साथ एतिकाफ करेगा, अल्लाह उसके नामाए आमाल में हजार साल की इबादत दर्ज फरमाएगा और कयामत के दिन उसको अपने अर्श के साए में जगह देगा।

- सोमवार 3 मई की शाम से एतिकाफ शुरु होगा।

गुरूबे आफताब से पहले मस्जिद पहुंचे

हाफिज अजीम अहमद ने बताया कि इस एतिकाफ में ये जरूरी है कि मुक़द्दस रमजान की बीसवीं तारीख गुरुबे आफताब (सूर्यास्त) से पहले-पहले मस्जिद के अंदर ब नियते एतिकाफ मौजूद हों और उन्तीसवीं के चांद के बाद या तीस के गुरुबे आफताब (सूर्यास्त) के बाद मस्जिद से बाहर निकलें। अगर गुरुबे आफताब के बाद मस्जिद में दाखिल हुआ तो सुन्नत एतिकाफ अदा न होगा। बल्कि सूरज डूबने से पहले मस्जिद में दाखिल हो चुके थे मगर नियत करना भूल गए थे यानी दिल में नियत ही नहीं थी क्योंकि नियत दिल के इरादे को कहते है इस सूरत में भी सुन्नत एतिकाफ अदा न होगा। अगर गुरुबे आफताब के बाद नियत की तो नफ्ली एतिकाफ हो गया। दिल में नियत कर लेना ही काफी है जबान से कहना शर्त नहीं। अलबत्ता दिल में नियत हाजिर होना जरूरी है साथ ही जबान से कह लेना बेहतर है।

Posted By: Inextlive