Students getting habitual of google: पेरेंट्स दें ध्यान, बच्चा ले रहा गूगल से ज्ञान
गोरखपुर (ब्यूरो).काउंसलर पुर्णेंदू शुक्ला ने बताया कि कोरोना काल के बाद से ही बच्चे मोबाइल के आदी हो गए हैं। अब उन्हें कुछ भी जानकारी चाहिए होती है तो वो अपने टीचर नहीं बल्कि, गूगल की मदद लेना अधिक उपयोगी समझते हैं। मैं ऐसे स्टूडेंट्स को बताना चाहूंगा कि गूगल एक नॉलेज सिस्टम नहीं है बल्कि इनफॉर्मेटिव है। गूगल की सूचना कभी अथेंटिक नहीं मानी जाती हैं। बच्चे उसी को सही मानकर चलते हैं। गूगल की सूचना का कंफर्मनेशन जरूर करना चाहिए। तभी उस पर विश्वास करना चाहिए। गूगल से कर रहे थे होमवर्क
एक स्कूल टीचर ने बताया कि मैं इधर कई बच्चों को जब होमवर्क दे रही थी, तो उसका आंसर जो बच्चे लिख रहे थे, वो एक दूसरे से काफी मिलता जुलता था। जबकि उसी क्वेश्चन का जवाब बच्चा स्कूल में कुछ और दे रहा था। टीचर ने बताया कि जब मैने बच्चे से पूछा कि कहां से आंसर लिखा है कि उसने बताया कि गूगल से सर्च किया है। टीचर ने बच्चे को गूगल के अच्छे और बुरे पार्ट दोनों समझाए। फैक्ट फाइल सीबीएसई स्कूल - 123आईसीएससीई स्कूल- 19यूपी बोर्ड स्कूल- 489
बहुत से बच्चे मैथ्स का सवाल तक गूगल के जरिए सॉल्व करते हैं। जबकि वो गलत है। गूगल की सूचना सही भी हो सकती है और गलत भी हो सकती है। इसलिए बच्चों को किताब या टीचर्स की बातों पर ही विश्वास जताना चाहिए। पुर्णेन्दू शुक्ला, काउंसलरजब तक जरूरी ना हो तब तक गूगल सर्च ना करें। आज उसमे अच्छा और बुरा दोनों कंटेंट मौजूद है। स्टूडेंट्स इसमे फंसकर गलत आदत का शिकार भी हो सकता है। स्कूल में तो मोबाइल यूज होता नहीं है, पेरेंट्स को घर पर ध्यान देना होगा।अजय शाही, डायरेक्टर, आरपीएम एकेडमीकोरोना काल के बाद से ही बच्चे मोबाइल के आदी हो गए हैं। किसी भी तरह इसके चंगुल से इन्हें बाहर निकालना होगा। इसके लिए जरूरी है कि स्कूल में बच्चों को मोबाइल या गूगल का अच्छा पार्ट और गलत पार्ट भी समझाया जाए।अमरीश चंद्रा, एक्जीक्यूटिव प्रिंसिपलकिताब से की गई पढ़ाई के लिए दिल और दिमाग की जरूरत होती है। किताब से पढ़ाई करने के बाद बच्चे उस चीज को भूल नहीं सकते हैं। वहीं जब बिना मेहनत किए गूगल से कोई चीज मिल जाती है वो कभी दिमाग में नहीं रहती है। चारू चौधरी, डायरेक्टर, गोरखपुर पब्लिक स्कूल