- आकीदतमंदों ने पेश किए चादर और फूल, फातिहा के साथ हुई दुआ

GORAKHPUR: मियां बाजार स्थित मियां साहब इमामबाड़े की ख्याति हजरत सैयद रौशन अली शाह की वजह से है.जुमेरात को हजरत सैयद रौशन अली शाह का उर्स-ए-पाक अकीदतमंदों द्वारा मनाया गया। फातिहा ख्वानी व दुआ ख्वानी की गई। अकीदतमंदों ने चादर व फूल पेश किए। उर्स में हाफिज व कारी जमील मिस्बाही, कारी अफजल बरकाती, सैयद इरशाद अहमद, शकील शाही आदि ने शिरकत की।

हजरत सैयद रौशन अली शाह

हजरत सैयद रौशन अली शाह बुखारा के रहने वाले थे। वह मोहम्मद शाह के शासनकाल में बुखारा से दिल्ली और फिर गोरखपुर आए। मशायख-ए-गोरखपुर किताब में हैं कि आप हमेशा अल्लाह की इबादत में लगे रहते थे। सहाबा-ए-किराम व अहले बैत (पैगंबर-ए-आजम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के घराने वाले) से बहुत मुहब्बत रखते थे। हजरत सैयदना इमाम हुसैन व उनके साथियों की नियाज-फातिहा के लिए इमामबाड़ा स्थापित किया।

नमक नहीं खाते थे

हजरत सैयद रौशन अली शाह खास किस्म का पैरहन, सफेद साफा व सफेद चादर पहनते थे। खड़ाऊ पहनने की आदत थी। न गोश्त खाते थे और ही न नमक। चटाई पर बैठते थे। फारसी, उर्दू जानते थे मगर दस्तखत हमेशा हिंदी में करते थे। अपने करीब एक धुनी रखती थे, जो हमेशा सुलगती रहती थी। नमाज के पाबंद थे। आबिद दरवेश थे। आपने मस्जिद, पुल, कुंआ, इमामबाड़ा की मरम्मत, मुसाफिरों के लिए कुछ ठहरने की जगह, स्कूल, ग्यारहवीं शरीफ, ईद मिलादुन्नबी, मुहर्रम, बुजुर्गो की नियाज-फातिहा, उर्स, यतीमों व बेवाओं की मदद के लिए दिल खोल कर खर्च करते थे। सारी जिंदगी राहे खुदा में खर्च करते रहे। जिक्र व फिक्र का अभ्यास करते रहे।

इबादत में गुजरी जिंदगी

इमामबाड़ें से बाहर आप नहीं निकलते थे। यहीं फकीरों, दरवेशों और तालिबाने हक का एक मजमा लगा रहता था। आपने सारी जिंदगी इबादत, खिदमत में गुजार दी। गोरखपुर में उन्हें अपने नाना से दाऊद-चक नामक मुहल्ला विरासत में मिला था। उन्होंने यहां इमामबाड़ा बनवाया जिस वजह से इस जगह का नाम दाऊद-चक से बदलकर इमामगंज हो गया। मियां साहब की ख्याति की वजह से इसको मियां बाजार के नाम से जाना जाने लगा।

Posted By: Inextlive