लॉकडाउन की वजह से ऑनलाइन हुई जकात
- जकात देकर खूब अज्र कमाने का चंद दिन और मौका
- रमजान में कई गुना बढ़ जाता है हर इबादत का सवाब - कुरआन में जिक्र, 8 तरह के लोगों को दी जा सकती है जकातGORAKHPUR: जकात हर साहबे हैसियत मुसलमान पर फर्ज है। साहबे हैसियत वह है जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या फिर बावन तोला चांदी हो या इसकी कीमत के बराबर कैश हो और इसे रखे हुए उसे एक साल गुजर गया हो। ऐसे मुसलमान को जकात निकालना जरूरी है। उसे अपने माल का ढाई फीसद बतौर जकात निकालकर गरीब और मिस्कीनों में देना होगा। दीनी मामलों के जानकार मोहम्मद शहाबुद्दीन सिद्दीकी ने बताया कि यह गरीबों का हक है और इसे निकालना जरूरी है। रमजान में जकात देने का खास अज्र है और यह सवाब कमाने का मौका महज कुछ दिन और बचा हुआ है। ऐसे में लोगों ने अब डिजिटल तरीके अपनाने शुरू कर दिए हैं। मोबाइल पर डायरेक्ट ट्रांसफर के साथ ही पे-टीएम और दूसरे ऑनलाइन ऑप्शन के जरिए भी जकात अदा की जा रही है।
हकदारों को ही दें जकातलॉकडाउन में अपने हाथ से जकात देने का रिवाज टूटा, तो ऑनलाइन जकात देने का नया ट्रेंड सेट कर लिया। इस रमजान बड़ी संख्या में लोगों ने ऑनलाइन बैंकिंग, फोन पे, गूगल पे और पेटीएम के जरिए अपनी जकात, फित्रा और सदका की रकम जरूरतमंद तक पहुंचायी है।
ताकि न मांगना पड़े अपना हक शहाबुद्दीन सिद्दीकी ने बताया कि ऐसा अक्सर देखा गया है कि गरीब और बेसहारा लोगों को घर-घर जाकर या मस्जिदों के बाहर खड़े होकर अपना हक मांगना पड़ता है। ऐसे लोगों को लोग चंद पैसे देकर चलता कर देते हैं और ऐसे लोगों को जकात की रकम दे देते हैं जो सही मायने में उसके हकदार नहीं हैं। असल में जकात के पैसों पर पहला हक इन्हीं लोगों का है। उन्होंने बताया कि लोग इनको मस्जिदों के बाहर भले ही कुछ पैसा दे दें, लेकिन जकात के नाम से जो पैसा निकलता है, उसमें से इनको हिस्सा नहीं मिलता है। जकात से दी जा सकती है जमानतमदरसा दारुल उलूम हुसैनिया के मोहम्मद आजम ने बताया कि पहले लोग गुलामों को आजाद कराकर भी जकात अदा करते थे। इसमें मालिकों से सौदा करके गुलाम को खरीदकर आजाद कर दिया जाता था। आज हमारे समाज में गुलाम नहीं हैं, लेकिन बहुत से लोग ऐसे है, जो किसी वजह से जेलों में बंद हैं, लेकिन अपनी गरीबी की वजह से जमानत की रकम नहीं जमा कर पाने से अब तक आजाद नहीं हो सके हैं। उनकी जमानत देने के लिए जकात के पैसों से मदद की जा सकती है, ताकि उन्हें गुलामों जैसी जिंदगी से रिहाई मिल सके।
इन्हें दे सकते हैं जकात फकीर, मिस्कीन, कर्मचारी (ऐसे लोग जो जकात की रकम इकट्ठा करने के लिए लगाए गए हों), तालीफे कल्ब, किसी को छुड़ाने में, कर्जदार, अल्लाह की राह में, परेशान मुसाफिर