सीएसए एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के कृषि विज्ञानियों के अनुसंधान की हैदराबाद में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सब्जी तेल सम्मेलन में जमकर सराहना हुई. सरसों की चार प्रजातियों आजाद महक आजाद चेतना तपेश्वरी और सुरेखा को किसानों के लिए सीएसए का तोहफा बताया गया. वहां तय किया गया कि पुरानी प्रजातियों के बजाय पांच से 10 साल के दौरान विकसित प्रजातियों का ही बुवाई के लिए प्रयोग किया जाए.


कानपुर (ब्यूरो) अंतरराष्ट्रीय वनस्पति तेल सम्मेलन का आयोजन 17 से 21 जनवरी के दौरान भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान हैदराबाद में किया गया। इसमें राई, सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, अंडी, अलसी, नाइजर एवं तिलहन फसलों पर देश-विदेश के कृषि विज्ञानियों ने अपने अध्ययन पत्र प्रस्तुत किए। सीएसए के निदेशक बीज एवं प्रक्षेत्र डा। महक ङ्क्षसह ने बताया कि सीएसए के विज्ञानियों ने अब तक सरसों की 33 प्रजातियों का अनुसंधान किया है। सम्मेलन में कीट वैज्ञानिक डा। डीके ङ्क्षसह एवं प्रभाकर तिवारी ने भी हिस्सा लिया।

पांच साल पुरानी प्रजातियों की छुट्टी
डा। महक ङ्क्षसह ने बताया कि सम्मेलन में तय किया गया कि सरसों की पांच से 10 साल पुरानी प्रजातियों को चलन से बाहर किया जाएगा। इससे किसानों को नुकसान हो रहा है। नई प्रजातियों में उत्पादन अधिक है और तेल भी दो प्रतिशत ज्यादा मिल रहा है। सीएसए की चारों नई प्रजातियों से प्रति हेक्टेयर 28 ङ्क्षक्वटल तक उत्पादन मिल रहा है।

Posted By: Inextlive