चार दशक पहले घर से दीवार फांदकर 17-18 साल एक नौजवान मुंबई भाग गया. घरवालों से लेकर रिश्तेदार और पड़ोसी भी हैरान थे. लेकिन तब किसी ने सपने में नहीं सोचा था कि गली नुक्कड़ और चाय की दुकान पर अपनी देसी बातों से हंसाने वाला यह कनपुरिया छोरा पूरे देश के हंसने का अंदाज बदल देगा. इसकी यही छोटी-छोटी बातें इसे इतना बड़ा बना देंगी कि फिल्म जगत में वह अलग मुकाम हासिल करेगा और कानपुर का नाम भी देश दुनिया में फैलाएगा. लेकिन बिना किसी सपोर्ट और संसाधनों के अभाव में राजू श्रीवास्तव ने अपनी लगन मेहनत से यह कर दिखाया. स्टैंड कॉमेडी को एक नई पहचान दी. लेकिन पूरी जिंदगी लोगों को हंसाने में गुजारने वाला जाते-जाते इस कदर रुलाएगा इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी. 41 दिन तक मौत से लडऩे के बाद हंसी का यह बादशाह यह जंग हार गया और छोड़ गया गमआंसू और अनोखी यादें.

कानपुर (ब्यूरो) देश दुनिया को गुदगुदाने वाले राजू श्रीवास्तव बचपन से ही मिमिक्री आर्टिस्ट थे। इस हुनर के दम पर वह शुरू से ही एक कॉमेडियन बनना चाहते थे। घर में परिजनों और रिश्तेदारों, स्कूल में टीचर्स की मिमिक्री करते करते फिल्मी कलाकारों की आवाज निकालनी शुरू कर दी। स्टूडेंट लाइफ की वे शरारतें जिन्हें याद कर साथ के लोगों की आंखें नम हो जाती हैं। साथ पढऩे वाले मधुर बताते हैैं कि क्लास के बाहर खड़े होकर टीचर की आवाज निकालना और बच्चों के चुप होने पर सामने आकर सबको आश्चर्यचकित कर देना, अक्सर ऐसा करते करते एक दिन टीचर पीछे आकर खड़े हो गए। शरारत करते पकड़े गए तो बस उस दिन बेंत की मार पड़ी। इस घटना के बाद कभी स्कूल के टीचर तो कभी साथी उनसे मिमिक्री कर मजा लेते थे। यही मजा लेने वाले टीचर और साथी जब राजू को सुनहरे पर्दे पर देखते तो बस यही कहतेये अपना राजू है बेनया पुरवा मा रहत है। पूरा परिवार हमका जानत है हमरे साथै पढे रहांय।

फिल्मों मेें छोटे शॉट्स से शुरुआत
अपने करियर की शुरुआत में उन्होंने कई फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएं की मगर उन्हें असली पहचान कॉमेडी शो से ही मिली। राजू श्रीवास्तवनाम सुनते ही चेहरे पर मुस्कान खिल उठती है। दिमाग में गजोधर, संकठा, बैजनाथ और पुत्तन जैसे नाम घूम जाते हैं। राजू ने इन नामों का अपनी कॉमेडी में इतना प्रयोग किया कि यह नाम देशव्यापी हो गए। गजोधर तो इतना पॉपुलर हुआ, खुद राजू श्रीवास्तव का नाम पड़ गया।

सीने पर गिटार बनवाए थे
राजू श्रीवास्तव के मामा का घर उन्नाव के बीघापुर गांव में है। राजू बताया करते थे कि बचपन में जब हम मामा के घर जाते थे उस वक्त वहां बाल काटने के लिए एक नाई आता थे। उनका नाम गजोधर था। हमेशा उसके मजे लेते रहते थे। सीने पर गिटार का टैटू बनवाया था। कहते थे कि जब खुजली करता हूं तब ये बजता है। वह इतने मजाकिया थे कि उनका नाम मेरी जुबान पर चढ़ गया।

'बवालÓ हुआ चालान, राजू ने कराया था वापस
इसी साल 16 अप्रैल को शहर में शूटिंग के दौरान अभिनेता वरुण धवन के बिना हेलमेट बुलेट चलाने पर खूब 'बवालÓ मचा था। यहां तक कि ट्रैफिक विभाग को उनका चालान तक काटना पड़ा था। चालान कटा तो फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष रहे राजू श्रीवास्तव ने जिला प्रशासन से खास पैरवी की थी। उनका कहना था कि ऐसे कैसे फिल्मों के लिए माहौल तैयार होगा। इन हालात में तो कानपुर में कोई शूङ्क्षटग करने ही नहीं आएगा। राजू श्रीवास्तव ने तत्कालीन पुलिस आयुक्त से बात की थी। इसके बाद चालान खत्म हुए थे।

Posted By: Inextlive