फिर एक डॉक्टर की मौत..
-रेलबाजार में अकेले रहने वाली सीजीएचएस की रिटायर्ड डॉक्टर ने किया आत्मदाह
-तीन दिन में महिला डॉक्टर के जान देने का दूसरा मामला, दोनों की ही मौत के पीछे गलत ऑपरेशन भी वजहKANPUR : लोगों की जिंदगी बचाने वाले डॉक्टर्स को धरती के 'भगवान' का दर्जा दिया गया है, लेकिन अगर जिंदगी बचाने वाले ही जान देने लगेंगे तो क्या होगा? बीमारी के दौरान हर स्थिति से लड़ने के लिए अपने पेशेंट्स और उसके रिलेटिव्स का हौसला बांधने वाले डॉक्टर अगर हार मानने लगेंगे तो उम्मीद की किरण कौन जगाएगा? उन पेशेंट्स का क्या होगा जो पूरी तरह अपने डॉक्टर के भरोसे रहते हैं? कानपुर में सैटरडे को मेडिकल कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर अशर्फी त्रिपाठी ने अपार्टमेंट की छठवीं मंजिल से कूदकर सुसाइड कर लिया था। इसके ठीक दो दिन बाद एक बार फिर एक डॉक्टर ने आत्मदाह कर लिया। इस बार सीजीएचएस की रिटायर्ड डॉक्टर ने जिंदगी से हार मानकर आत्मदाह किया। तीन दिनों में दो डॉक्टर्स ने मौत को गले लगाकर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया?
कुछ दिन पहले कराया था ऑपरेशनरेलबाजार में रहने वाली सीजीएचएस की रिटायर्ड स्त्री रोग विशेषज्ञ ने कुछ दिनों पहले अपनी आंख का ऑपरेशन कराया था, लेकिन ऑपरेशन ठीक से नहीं होने की वजह से उनकी आंख की रोशनी जाने लगी इस वजह से वह बेहद तनाव में रहने लगी थीं। संडे को उन्होंने घर में ही आत्मदाह कर जान दे दी।
अकेले होने पर किया आत्मदाह सीजीएचएस की रिटायर्ड स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ। मंजुलिका गर्ग (62) शांति नगर में अपनी दो बहनों के साथ रहती थीं, उनकी दोनों बहनें भी सरकारी अधिकारी हैं। बताते हैं कि तीनों ही बहनों ने शादी नहीं की थी। मंडे को डॉ। मंजुलिका घर में अकेली थीं, जिसके बाद उन्होंने खुद को आग लगा ली। शोर शराबा होने पर इलाकाई लोगों ने आग बुझाई और पास के हॉस्पिटल ले गए, जहां डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पुलिस को मौके से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है। रेलबाजार इंस्पेक्टर सतीश कुमार सिंह के मुताबिक मामला सुसाइड का है। परिजनों ने डॉ। मंजुलिका की आंख में खराबी की वजह से तनाव में रहने की बात कही है। ----------------- दोनों के हुए गलत ऑपरेशनसैटरडे को कल्याणपुर में डॉ। अशर्फी त्रिपाठी की मौत का मामला हो या फिर मंडे को रेलबाजार में डॉ। मंजुलिका के खुद को आग लगा लेने का मामला हो, दोनों ही मामलों में एक बात जो कॉमन है वह ये कि दोनों के ही कुछ समय पहले ऑपरेशन हुए थे जिनके ठीक से नहीं होने की वजह से उनकी तबीयत बिगड़ गई और दोनों डॉक्टर्स तनाव में रहने लगीं। डॉ। अशर्फी त्रिपाठी को आंतों की टीबी होने की वजह से ऑपरेट कराना पड़ा था। वहीं डॉ। मंजुलिका का आंख का ऑपरेशन हुआ था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या डॉक्टर्स खुद डॉक्टर्स के इलाज में भी लापरवाही कर सकते हैं?