पूर्वोत्तर के भारतीयों के खिलाफ भड़काऊ लेख छापने वाली वेबसाइटों को चिन्हित करते हुए भारत सरकार ने 245 वेब पन्ने ब्लॉक किए हैं. इंटरनेट के इन पन्नों पर कम्प्यूटर से तैयार की गई भड़काऊ तस्वीरे और वीडियो भी डाले गए थे.

सरकार के अनुसार कुछ सोशल नेटवर्किंग साइट चलाने वाली कंपनियों का कहना है कि उनके वेबसाइटों पर डाली गई भड़काऊ सामाग्रियां भारत के अलावा अन्य देशों से भी डाली गई, जिसमें खास तौर पर पाकिस्तान शामिल है। पाकिस्तान से इंटरनेट पर अफवाह फैलाने में कथित तौर पर शामिल तत्वों के खिलाफ कार्रवाई के लिए भारत इस संबंध में मिली जानकारी पाकिस्तान की सरकार को देगा।

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में बताया, "इस संबंध में पाकिस्तान को सारे सबूत उपलब्ध कराए जाएंगे। हम कुछ और वेबसाइट ब्लॉक करने की योजना बना रहे है."एसएमएस और वेबसाइटों के जरिए फैली अफवाहों के चलते बैंगलौर और हैदराबाद जैसै शहरों में बसे पूर्वोत्तर के लाखों लोग वापस लौटने को मजबूर हुए थे। हालांकि अब स्थिति में सुधार है ओर पूर्वोत्तर के लोग अपने-अपने जगह वापस आ रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम से कम से कम चार लाख लोग प्रभावित हुए हैं।
असम में पिछले महीने हुई जातीय हिंसा के बाद की तस्वीरें और वीडियो को लोगों की भावनाओं को भड़काने के लिए इस्तेमाल किया गया था। सरकार का मानना है कि भय और अफवाह फैलाने के लिए शरारती तत्वों ने फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों का जमकर प्रयोग किया। इसी संबंध में भारत सरकार की इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने एक एडवायजरी जारी करते हुए भारतीय और विदेशी वेबसाइट संचालक कंपनियों को आपत्तिजनक सामग्री हटाने का भी आग्रह किया था।
'पाकिस्तान का हाथ'
गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और टेलिकॉम मंत्री कपिल सिब्बल इस मामले पर संसद को आज संबोधित कर सकते हैं। सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट कंपनियों के साथ सरकार की बातचीत के बाद भी उनकी प्रतिक्रिया से सरकार असंतुष्ट दिख रही है।
सोशल मीडिया - क्या नियमन उचित?
इन कंपनियों का तर्क है कि वेबसाइट पर भारत के बाहर से आपत्तिजनक सामग्री डाले जाने की सूरत में ऐसे यूजर्स के खिलाफ कार्रवाई का कोई रास्ता नहीं बचता, क्योंकि वो भारत की सीमा और कानून से बाहर होते है।
हालांकि इन वेबसाइटों पर कड़ी निगरानी रख रही सरकार कुछ ऐसे यूजर्स के खाते ब्लॉक कराने में सफल हुई है जिनके जरिए पूर्वोत्तर के भारतीयों के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिशें की जा रही थी।
आपत्तिजनक सामग्री

सरकारी एजेंसियों ने सोशल मीडिया वेबसाइटों से ऐसे यूजर्स की रजिस्ट्रेशन जानकारियां भी मांगी है जो भय पैदा करने की कोशिश कर रहे हों। पीटीआई ने गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि ज्यादातर आपत्तिजनक सामाग्रियां 13 जुलाई के बाद से सोशल मीडिया वेबसाइटों पर डाली गई जिसमें से ज्यादातर कम्पयूटर से तैयार की गई नकली तस्वीरें थी। सरकार के अनुसार आपत्तिजनक सामाग्रियां पाकिस्तान से भी डाले गए।
असम में बांग्लाभाषी मुसलमानों और बोडो आदिवासियों के बीच पिछले महीने शुरु हुई जातीय हिंसा में 80 लोग मारे गए थे। राज्य के कोकराझार और बोंगाइगांव इलाके में राहत शिविरों में अब तक हजारों शरणार्थी रह रहे हैं। असम हिंसा का हवाला देते हुए धमकी वाले एसएमएस और इंटरनेट पर डाले गए भड़काऊ लेख, तस्वीरें और वीडियो प्रमुख शहरों से पूर्वोत्तर के हजारों लोगों के पलायन का कारण बने।

Posted By: Inextlive