- आईनेक्स्ट की पहल से सेंट जोजफ इंटर कॉलेज सीतापुर रोड में आयोजित हुआ 'पैरेंटिंग टुडे' सेमिनार

- बच्चों के मनोभावों को पैरेंट्स को समझाने की एक्सप‌र्ट्स ने की कोशिश

LUCKNOW : लाइफ कोई रेस नहीं है, बल्कि यह एक मैराथन है, मतलब लंबी दौड़। अच्छे मा‌र्क्स नहीं हैं तो भी निराश होने की जरूरत नहीं है। अगर आपका बच्चा 90 परसेंट नंबर नहीं ला पाया तो आपको उसके स्किल पर शक करने की आवश्यकता नहीं है। आपको अपने बच्चे की स्किल को समझना होगा और डेवलप करने में उसकी मदद करनी होगी। वह खुद ही अपने आप अपने गोल को अचीव कर जाएगा। पैरेंट्स और बच्चों को बीच आज के समय बढ़ रही दूरियों को कम करने के लिए आई नेक्स्ट ने वेडनेसडे को सीतापुर रोड स्थित सेंट जोजफ इंटर कॉलेज में पैरेंटिंग टुडे सेमिनार का आयोजन किया। इसका विषय था सेल्फ इंस्टीम र्फाम टोलडर टू टीन: ए पैरेंट्स इंक्रजमेंट। इस इवेंट में राजधानी के जाने माने हस्तियों को पैरेंट्स को बच्चों से जुड़ी छोटी-छोटी जानकारियां देना, जिन्हें अक्सर पैंरेंट्स अनदेखी कर देते हैं। उसके बारे में जानकारी दी ताकि पैरेंट्स और बच्चों के बीच का रिश्ता दोस्तों जैसा बन सके।

बच्चे को समय दें

नेशनल पीजी कॉलेज के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड प्रो। पीके खत्री ने कहा कि आज के समय में पैरेंट्स बच्चों को समय नहीं देते हैं। आज के पैरेंट्स की सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह है कि हम दूसरे बच्चों से अपने बच्चों की तुलना करते है। पैरेंट्स और स्कूलों को इस मैंटेलिटी से बाहर निकलना होगा। 'डू योर बेस्ट' केवल यही होना चाहिए। अपने बच्चों की हर बात को सुनें और ताकि वह आप से कोई बात न छुपाएं। यह जरूर जानें कि उसका रूझान किस ओर है ताकि आपको अपने बच्चों पर ज्यादा मेहनत न करनी पड़े। यह छोटी-छोटी बाते हैं जो आमतौर पर पैरेंट्स दरकिनार कर देते हैं। प्रो। खत्री ने बताया कि लाइफ में तीन चीजें बहुत जरूरी हैं। लर्निग, वर्किंग और प्ले। यह तीनों चीजें लाइफ की हर स्टेज में जरूरी है। जब आप बढ़े होंगे तो काम ज्यादा हो जाएगा। खेलने का मतलब यह नहीं है कि आप वीडियो गेम खेलें बल्कि फिजिकली रूप से स्ट्रांग होना जरूरी है। अब तो बच्चे आउटडोर गेम खेलते ही नहीं है। फिजिकली तौर पर उन्हें स्ट्रांग होना जरूरी है। तुलना आपकी पोटेंशियल से की जानी चाहिए।

बच्चे की जानें स्किल

केजीएमयू के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ। सिद्धार्थ भटनागर ने कहा कि बच्चे की असफलता की वजह से आप निराश होकर न बैठें। बच्चों का एक फेलियर उसका भविष्य नहीं तय करता है। ऐसे समय में माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चे को प्रोत्साहित करें और उसे दोबारा तैयारी कर बेहतर रिजल्ट पाने में मदद करें। आमतौर पर पैरेंट्स बच्चे की एक असफलता को उसके पूरे करियर से जोड़ देते है। जो अच्छी निशानी नहीं है। पैरेंट्स को चाहिए की बच्चों की सेल्फ स्ट्रीम को पहचाने और उसे मजबूत करने में बच्चे की मदद करें।

जंक फूड से दूर रखें बच्चों को

लोहिया हॉस्पिटल की डायटीशियन डॉ। अंजुलता मिश्रा ने बताया कि आज की जनरेशन फास्ट फूड पर बहुत ज्यादा डिपेंड हो गई है। यह अच्छी बात नहीं है। स्टूडेंट्स को फिटनेस मैनटेन करने के लिए घर का खाना बहुत जरूरी है। इसके लिए उन्हें बैलेंस डाइट देना चाहिये। डॉ। मिश्रा ने बताया कि आमतौर पर पैरेंट्स ऐसी शिकायतें लेकर आते हैं कि उनका बच्चा खाना नहीं खाता है। खाने के समय वह काफी नखरे करता है। जैसे हरी सब्जी न खाना, दूध से दूरी व फल खाने से इंकार। ऐसे में पैरेंट्स को चाहिए की वह बच्चों को ऐसे फूड को डायरेक्ट न देकर उसमें कुछ बदलाव करें। जैसे हरी सब्जी देने के लिए आटे में सब्जी मिक्स कर उसकी पूरी बनाकर उन्हें दे। साथ ही दूध में कॉम्प्लान या खीर, दूध की दलिया दें। ऐसे कुछ बदलाव कर आप बच्चे को एक बैलेस डाइट दे सकते हैं।

बच्चों से शेयर करें अनुभव

केजीएमयू से रिटायर्ड सीनियर साइकियाट्रिस्ट डॉ। हरजीत सिंह ने कहा कि पेरेंट्स को समझना चाहिए कि वह अपने बच्चों को कितना समय दे रहे है। आजकल की प्रॉब्लम यही है कि पेरेंट्स के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है। लाइफ स्टाइल ऐसी बना रखी है बच्चा हमेशा मीडिया के साधनों से जुड़ा रहता है। बच्चों को इस दूर न करें पर उसे हर समय उसी पर डिपेंड न रहने दें। इसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन कोई भी चीज जब हर से ज्यादा हो जाती है तो वह नुकसानदायक होता हैं। यही इस समय के बच्चों के साथ हो रहा है। ऐसे में पेरेंट्स को बच्चों को साथ एक्सपीरियेंस शेयर करने चाहिए।

पैरेंट्स के मनोभाव को समझने में हेल्प होती है

सेंट जोजफ इंटर कॉलेज की वाइस प्रिंसिपल मनोहरा गोयल ने कहा कि बच्चों को मंजिल क्या होनी चाहिए। यह पेरेंट्स को नहीं तय करना चाहिए। इसे तय करने का अधिकार बच्चों के पास ही रहने दें। यदि आपके बच्चे का मन पेटिंग या किसी दूसरे फिल्ड में है तो उसे आप चाहकर भी डॉक्टर नहीं बना सकते है। उन्होंने कहा कि आईनेक्स्ट के इस सेमिनार से न केवल हमे बल्कि पेरेंट्स और बच्चों को भी आपसी बात समझने का मौका मिलता है। खासतौर पर एक टीचर को यह पता लगता है कि उसके स्टूडेंट्स के पेरेंट्स घर पर बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करते है, उसके साथ क्या प्रॉब्लम आ रही है, जिस कारण से उसका ग्रोथ वैसा नहीं हो रहा है। पैरेंट्स व टीचर चाहता है।

Posted By: Inextlive