सरकार नहीं, हमारी भी जागरुकता जरूरी
- जागरूकता से बचाई जा सकती है धरोहर
- सरकार पर निर्भर न रहकर पब्लिक को खुद उठाने होंगे कदम - बच्चों को बताएं धरोहरों का महत्व Meerut: सरकार पर निर्भर रहकर हम अपनी धरोहरों को सुरक्षित नहीं रख सकते। हमें यदि वास्तव में अपनी इमारतों व धरोहरों को जिंदा रखना है तो खुद एक कदम आगे आकर उनकी रक्षा करनी पड़ेगी। यानी आम पब्लिक के मन में धरोहरों को जिंदा रखना पड़ेगा। तभी जाकर हम उन्हे संजो सकते हैं। ये बात आईनेक्स्ट द्वारा आयोजित आपकी बात कार्यक्रम में एक्पर्ट के व्यूज में सामने आई। समझे अपनी विरासतहमारी इमारते तभी सुरक्षित रह सकती हैं। जब शहर के नागरिक धरोहरों को अपनी विरासत समझे। सिर्फ सरकार द्वारा संचालित एक विभाग धरोहरों को सुरक्षित नहीं रख सकता है। मेरठ जनपद विश्व विख्यात जनपद है। यहां कई धरोहरों को आज भी दीमक खा रही है। जैसे शाहपीर गेट, आबू का मकबरा, हस्तिनापुर, सरधना आदि। इनके सुंदरीकरण के लिए आम जनता को भी कदम उठाने होंगे।
वर्जनशहर में जितनी भी धरोहर हैं, ज्यादातर को जंग लग गई हैं। ज्यादातर में अराजक तत्वों का बोलबाला रहता है। पुलिस प्रशासन से बात कर ऐसे स्थानों पर पुलिस पिकेट या पीएसी पिकेट के तैनाती की मांग की जा रही है।
डॉ। मनोज गौतम, संग्रहालय प्रमुख यदि हमें अपने शहर की धरोहरों को संजो कर रखना है, तो विभागीय अधिकारी को जनता से सीधे जुड़ना पड़ेगा। साथ ही हर धरोहर के बारे में बच्चों को बताना पड़ेगा कि इतिहास के पन्नों में संबंधित धरोहर की यह भूमिका है। इसके साथ ही मीडिया को एक के बाद एक कैंपेन चलाना पड़ेगा। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को उनके बारे में पता चल सके। डॉ। प्रभात राय, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी धरोहरों को सुरक्षित रखने के लिए नई जनरेशन के मन में उन्हे जिंदा करना पड़ेगा। स्कूलों और अपने घरों में बच्चों को अपने इतिहास को बताना पडे़गा। यह काम मुश्किल जरूर है। लेकिन नामुमकिन नहीं है। यदि चंद व्यक्ति ही लक्ष्य मानकर मेरठ की धरोहरों के बारे में नई पीढ़ी को जागरूक करे, तो धरोहरों को सुरक्षित रखा जा सकता है। डॉ। के के शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर मुल्तानीमल मोदी कालेज मोदीनगर इन्हे संजोकर रखने की जरूरत तिलक लाइबे्ररी, शाहपीर गेट, टॉउन हॉल, आबू का मकबरा, विक्टोरिया पार्क स्थित क्रांति की जेल आदि। ----