इस शहर में बच्चे के लिए पेट फाड़ा जाता है
हकीकत बयान करते आंकड़ेडिलीवरी के मामले में अधिकांश महिलाएं आंख मूंदकर निजी हॉस्पिटल्स पर भरोसा करती हैं। यहां सरकारी अस्पताल का नाम लेते ही मन घबराने लगता है। पहला सवाल यही होता है कि वहां क्या सुविधा मिलेगी? ठीक से देखभाल नहीं होगी। जानबूझकर किसी को खतरे में नहीं डाला जा सकता। मगर आंकड़े गवाह हैं कि डिलीवरी के मामले में सरकारी अस्पताल आज भी बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।ये बिल दा मामला है
जागृति विहार में रहने वाली ममता की सिजेरियन डिलीवरी हुई है। वो नारमल भी हो सकती थी। दरअसल, सिटी में करीब 80 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं सर्जरी से ही बच्चे को जन्म दे रही हैं। इसके पीछे क्या है? वजह साफ है कि पैसे की होड़ में डॉक्टर पेशेंट्स पर जरा सा भी रहम नहीं खा रहे। आंकड़े जानने पर ये बात भी सामने आई कि सरकारी अस्पतालों में होने वाली डिलीवरी में नार्मल केसेज ज्यादा हैं जबकि प्राइवेट हॉस्पिटल्स में सर्जरी के मामले ज्यादा हैं।खर्चा ज्यादा समय कम
फैक्ट है कि नॉरमल डिलीवरी में पेशेंट का खर्च कम बैठता है जबकि यही डिलीवरी अगर ऑपरेशन से की जाए तो जो पेशेंट नॉरमल डिलीवरी में 5-7 हजार रुपये खर्च करता है तो ऑपरेशन के बाद यही खर्च 15-20 हजार रुपये तक बैठ जाता है। ये भी तब है जब डिलीवरी के दौरान किसी तरह की कोई कॉम्प्लीकेशंस न हों। वहीं नार्मल डिलीवरी में डॉक्टर को पेशेंट को काफी समय देना पड़ता है। कई बार ये समय दो से तीन घंटे तक का हो जाता है और सर्जरी में ऐसा नहीं होता। बिना किसी कॉम्प्लीकेशन होने वाली सर्जरी में डॉक्टर डिलीवरी का समय एक तिहाई तक ले आती हैं।सरकारी में नार्मल ज्यादा क्योंप्राइवेट हॉस्पिटल्स में नॉरमल डिलीवरी के केसेज सरकारी अस्पतालों की तुलना में एक चौथाई ही होते हैं। आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो सरकारी अस्पतालों में 60 से 70 फीसदी नारमल डिलिवरी होती है। जबकि सुविधाओं के मामले में सरकारी अस्पताल प्राइवेट हॉस्पिटल्स के कहीं पीछे हैं। फिर भी यहां नॉरमल डिलीवरी को बढ़ावा दिया जाता है। कहां कितनी डिलीवरीहॉस्पिटल सर्जरी नारमलमेडिकल कॉलेज 75 225डफरिन अस्पताल 150 150आनंद हॉस्पिटल 130 70सुशीला जसवंत राय 200 150मंगलम हॉस्पिटल 100 100कैलाश हॉस्पिटल 120 80युग हॉस्पिटल 80 70ये हैं फैक्ट्स
- पिछले कई सालों से डब्लूएचओ द्वारा दी जाने वाली रिपोर्ट में साफ हुआ है कि हमारे देश में माताओं के ज्यादातर सिजेरियन ऑपरेशन हॉस्पिटल्स द्वारा पैसा कमाने के मकसद से फिजूल में कराए जाते हैं। - विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा माता व नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य को लेकर किए गए वैश्विक सर्वे में भारत सहित नौ एशियाई देशों में 2007-08 में सिजेरियन ऑपरेशनों में 27 फीसदी की बढोतरी देखी गई। -देश में 18 फीसदी डिलीवरी सिजेरियन ऑपरेशन से हुई हैं। वहीं दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों के प्राइवेट अस्पतालों में इस तरह के मामले बढकर 65 फीसदी हो गए। हमारी कोशिश यही रहती है कि सर्जरी तब की जाए जब नॉरमल का ऑप्शन ही न हो। 50 परसेंट सर्जरी केसेज भी इसलिए होते हैं क्योंकि हमारे पास कॉम्प्लीकेटेड केसेज ज्यादा आते हैं।-डॉ। शशि सिंह, एसआईसी, डफरिन महिला जिला अस्पताल'हमारे पास रैफरल केसेज की तादात ज्यादा है और ये केसेज सीरियस होते हैं। इसलिए सर्जरी भी हमें काफी करनी पड़ती है। जब बच्चे या मां को जान का खतरा होता है तो हम सर्जरी करने का फैसला करते हैं.'-डॉ। अभिलाषा गुप्ता, एचओडी, गाइनोक्लॉजी डिपार्टमेंट, मेडिकल कॉलेज